موضوع الخطبة:تعظيم شهر محرم، وفضل صوم يوم عاشوراءالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم:طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4Tशीर्षक:मोहर्रम के महीने का सम्मान एवं आशूरा के उपवास की श्रेष्ठताإنَّ الْحَمْدَ لِلَّهِ، نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِينُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوذُ بِاللَّهِ مِنْ شُرُورِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا، مَنْ يَهْدِهِ اللَّهُ فَلَا مُضِلَّ لَهُ، وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَا هَادِيَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنْ لَا إلـٰه إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ.(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُون).(يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالاً كَثِيراً وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبا).(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلاً سَدِيداً * يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزاً عَظِيما).iz”kalkvksa ds Ik”pkr:सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है। सबसे दुष्ट चीज़ इस्लाम में अविष्कार की गई नवोन्मेष हैं, प्रत्येक अविष्कार की गई चीज़ नवाचार है हर नवाचार गुमराही है एवं हर गुमराही नरक की ओर ले जाने वाली है।ए मुसलमानो! अल्लाह से डरो एवं उसका भय अपने हृदय में जीवित रखो। उसके आज्ञाकारी बनो एवं अवज्ञा से वंचित रहो। ज्ञात रखो कि अल्लाह तआ़ला के अपने सृष्टि का पालनहार होने का एक साक्ष्य यह भी है कि उसने कुछ समयों का चयन कर लिया है एवं उन्हें अन्य समय की तुलना में सम्मान एवं श्रेष्ठता प्रदान की है, उन समयों में से मोहर्रम का महीना भी है। यह एक महान एवं बरकत वाला महीना है। हिजरी वर्ष का यह प्रथम महीना है। यह उन निषिद्ध महीनों में से एक है जिनके संबंध में अल्लाह ताआ़ला का कथन है:(إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِنْدَ اللَّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللَّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنْفُسَكُمْ).अर्थात: "महीनों की गणना अल्लाह के निकट अल्लाह की पुस्तक में १२ की है, उसी दिन से जब से आकाश एवं पृथ्वी को उस ने पैदा किया, उनमें से चार निषिद्ध एवं विनम्र हैं, यही सत्य धर्म है, तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।"(तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) अर्थात: इन निषिद्ध महीनों में, क्योंकि अन्य महीनों की तुलना में इनमें पाप की गंभीरता अधिक बढ़ जाती है।अल्लाह का कथन: (तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) का उल्लेख करते हुए इब्ने अ़ब्बास रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा फ़रमाते हैं: "संपूर्ण महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार ना करो, फिर अल्लाह ने उनमें से ४ महीनों को चिन्हित किया एवं उन्हें निषिद्ध स्थित किया। उनकी निषिद्धता को महानता प्रदान की, उनमें किए जाने वाले पापों को अधिक गंभीर बताया एवं उनमें पुण्य-कर्म करने का सवाब एवं बदला कई गुना बढ़ा दिया।" इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा का कथन समाप्त हुआ।अल्लाह का कथन: (तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) का उल्लेख करते हुए क़तादा फ़रमाते हैं: "निषिद्ध महीनों में अत्याचार करने का पाप अन्य महीनों की तुलना में कहीं बड़ा एवं गंभीर होता है, यह और बात है कि अत्याचार प्रत्येक स्थिति में एक गंभीर अपराध है, परंतु अल्लाह तआ़ला जिस चीज़ को चाहता है श्रेष्ठ बना देता है।"इसके अतिरिक्त आप फ़रमाते हैं: अल्लाह ने अपनी सृष्टि में ऐसे कुछ दासों का चयन किया है, देवदूतों में से कुछ को राजदूत के रूप में एवं मनुष्य में से कुछ को दूत के रूप में चयन किया है। पृथ्वी में मस्जिदों का चुनाव किया है, महीनों में से रमज़ान एवं निषिद्ध महीनों को चुना है। दिनों में से शुक्रवार के दिन का चयन किया है, रात्रियों में से शुभरात्रि (शब-ए-क़द्र) को चुना है, इस कारणवश आप लोग भी उनका आदर कीजिए जिनको अल्लाह ने महान बनाया है, क्योंकि बुद्धिमान लोगों के निकट संपूर्ण चीज़ों की महानता की गुणवत्ता वही है जिसके माध्यम से अल्लाह ने उसको सम्मानित किया है। यह कथन इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह के उल्लेखनीय से संक्षेप के साथ प्रतिलिपि की गई है।अबू बकरा रज़ि अल्लाहू अ़नहु नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फ़रमाया: "वर्ष १२ महीनों का होता है इनमें से चार महीने निषिद्ध हैं, तीन तो लगातार, अर्थात: ज़िल्-क़ादा,ज़िल्-हिज्जा एवं मुहर्रम और चौथा रजब-ए-मुज़र जो जुमादल्-उख़रा एवं शाबान के बीच में पड़ता है।(इसे बुख़ारी:३१९७, एवं मुस्लिम: १६७९ ने रिवायत किया है।)मोहर्रम के महीने को यह नाम इसलिए दिया गया है कि वह निषिद्ध महीना है उसकी निषिद्धता एवं श्रेष्ठता की कठोरता के रूप में।रजब-ए-मुज़र को यह नाम इस कारणवश दिया जाता है क्योंकि मुज़र समाज इस महीने को अपने स्थान से नहीं फेरता था बल्कि उसके समय पर ही उसको स्थित मानता था, अ़रब के अन्य समाज के विरुद्ध, वे युद्ध की परिस्थिति में निषिद्ध महीनों को उनके वास्तविक समय से फिर देते थे। उनका यह कार्य अन्-निस्ई के नाम से जाना जाता है।अल्लाह तआ़ला ने इन महीनों को जो उच्च स्थान एवं सम्मान प्रदान किया है उनका ध्यान रखा जाना चाहिए, उदाहरण स्वरूप: इन महीनों में युद्ध लड़ना अवैध ठहराया है एवं पापों को करने से कठोरता के साथ रोका है।🔵 ए मोमिनो! सृष्टि पर अल्लाह के पालनहार होने का एक साक्ष्य यह भी है कि उसने कुछ दिनों का चयन कर लिया है, एवं उन दिनों में की जाने वाली उपासनाओं को अन्य दिनों की उपासना पर महानता एवं श्रेष्ठता प्रदान की है, उन्हीं दिनों में से आशूरा (१०वीं मुहर्रम) का दिन भी है,इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी वर्ष के मोहर्रम का यह १०वां दिन है, इस दिन की महानता की एक सुखद पृष्ठभूमि है, वह इस प्रकार की जब अल्लाह तआ़ला ने अपने दूत मूसा अलैहिस्सलाम को पानी में डूबने से बचा लिया एवं फ़िरऔ़न को उसके संगियों सहित पानी में डूबा दिया तो मूसा अलैहिस्सलाम ने इस वरदान पर अल्लाह को आभार व्यक्त करते हुए १०वीं मुहर्रम का उपवास रखा, इसके पश्चात अहल-ए-किताब -यहूद एवं नसारा- ने भी इस उपवास को रखना प्रारंभ कर दिया, फिर अज्ञानता युग के अ़रब लोग भी यह उपवास रखने लगे जो मूर्ति पूजा करते थे अहल-ए-किताब नहीं। इस कारणवश क़ुरैश समाज भी अपने अज्ञानता युग में इस दिन का उपवास रखा करता था। फिर जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्रवास करके मदीना पहुंचे तो आपने यहूदियों को इस दिन का उपवास रखते हुए देखा, तो आपने इसका कारण जानने हेतु प्रश्न किया: तुम इस दिन उपवास क्यों रखते हो? उन्होंने उत्तर देते हुए कहा: यह बहुत ही महान दिन है, इसी दिन अल्लाह तआ़ला ने मूसा अलैहिस्सलाम को बचाया था, एवं फ़िरौन और उसके संगियों को डुबो दिया था, उसका आभार व्यक्त करते हुए मूसा अलैहिस्सलाम ने इस दिन का उपवास रखा था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: तुम्हारी तुलना में मैं मूसा अलैहिस्सलाम से अधिक निकट हूं, इस कारणवश आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने स्वयं इस दिन का उपवास रखना प्रारंभ कर दिया एवं अपने साथियों (सहाबा) रज़ि अल्लाहू अ़न्हुम को भी इस उपवास के रखने का आदेश दिया।(इसे बुख़ारी: २००४, मुस्लिम: ११३० ने रिवायत किया है और उल्लेख किए गए शब्द मुस्लिम के हैं।)बल्कि इस दिन यहूदी त्यौहार मनाते थे, अपनी महिलाओं को आभूषण पहनाते थे एवं (सुंदर वस्त्रों को पहना कर) उन्हें सजाते और श्रृंगार करते थे।(इसे मुस्लिम:११३१ ने रिवायत किया है, इस अध्याय में अबू मूसा अशअ़री रज़ि अल्लाहू अ़नहु से भी हदीस मरवी है जिसे बुख़ारी: २००५ ने रिवायत किया।)अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा का कथन है कि यहूद एवं नसारा भी आशूरा के दिवस का सम्मान करते थे। (मुस्लिम:११३४)आइशा रज़ि अल्लाहू अ़नहा का कथन है कि "अज्ञानता युग में क़ुरैश के लोग भी आशूरा का उपवास रखते थे एवं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी इसे स्थित रखा था। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मदीना आगमन हुआ तो स्वयं आपने भी इस दिवस का उपवास रखा एवं अपने साथियों (सहाबा) रज़ि अल्लाहू अ़न्हुम को भी इस उपवास के रखने का आदेश दिया। परंतु जब रमज़ान का उपवास रखना अनिवार्य किया गया तो इसके पश्चात आप ने आदेश दिया कि जो चाहे आशूरा का उपवास रखे और जो चाहे ना रखे।"इसे बुख़ारी:२००२, मुस्लिम: ११२५ ने रिवायत किया है, इस अध्याय में इब्ने उ़मर रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा से भी हदीस मरवी है जिसे बुख़ारी:१८९२, मुस्लिम: ११२६ ने रिवायत किया है।)आइशा रज़ि अल्लाहू अ़नहा का कथन है: इसी दिन क़ुरैश काबा का आवरण किया करते थे। (बुख़ारी: १५९२)अर्थात: उस पर वस्त्र आदि डालकर उसके सम्मान का प्रदर्शन किया करते थे।जब अल्लाह तआ़ला ने रमज़ान के उपवास को अनिवार्य किया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को यह सूचना दी कि जो चाहे आशूरा का उपवास रखे और जो चाहे ना रखे, अर्थात आशूरा का उपवास रमज़ान के उपवास की तरह अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह उपवास मुस्तहब है, इस कारणवश जो व्यक्ति यह उपवास रखेगा वह इंशाल्लाह बड़े लाभ से सम्मानित किया जाएगा। एक व्यक्ति ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रश्न किया: आप कैसे उपवास रखते हैं? तो आप ने उत्तर दिया: "हर महीने में तीन उपवास एवं रमज़ान के उपवास सदैव उपवास रखने के समान हैं, अ़रफ़ा दिवस के उपवास के संबंध में मैं अल्लाह से आशा करता हूं कि वह १ वर्ष पूर्व एवं १ वर्ष पश्चात के पापों का कफ़्फ़ारा होगा एवं अल्लाह से यही आशा करता हूं कि आशूरा (१०वीं मुहर्रमुल्-हराम) का उपवास १ वर्ष पूर्व के पापों का कफ़्फ़ारा होगा।"(इसे मुस्लिम: ११६२ ने अबू क़तादह रज़ि अल्लाहू अ़नहु से रिवायत किया है।)वो संपूर्ण छोटे-छोटे पाप जो मनुष्य से पूर्व के १ वर्ष में हुआ करते हैं, उन संपूर्ण पापों को इस दिन के उपवास के माध्यम से क्षमा कर देता, रही बात बड़े पापों की तो यह सत्य पश्चाताप से ही क्षमा होते हैं, अल्लाह तआ़ला बड़ा ही कृपालु एवं दयालु है।🔵 ए सलमानो! आशूरा के उपवास के इसी उच्च स्थान के आधार पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत ही व्यवस्था पूर्वक इस उपवास को रखते थे, उदाहरण स्वरूप अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा का कथन है कि "मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आशूरा दिवस एवं रमज़ान के उपवास के अतिरिक्त अन्य दिनों में श्रेष्ठता का ज्ञात रखते हुए विशेष रुप से उपवास रखते नहीं देखा।(इसे बुख़ारी: २००६, मुस्लिम: ११३२ ने रिवायत किया है।
تم تحميل المحتوى من موقع
الجمهرة معلمة مفردات المحتوى الأسلامي