وجوب إفراد الله بالعبادة
ماجد بن سليمان الرسيموضوع الخطبة : وجوب إفراد الله بالعبادةالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي حفظه الله لغة الترجمة : الهنديةالمترجم : فيض الرحمن التيميउपदेश का शीर्षक:पूजा में अल्लाह को एक मानना अनिवार्य है।प्रथम उपदेश:إن الحمد لله، نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، ومن سيئات أعمالنا من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ )(يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا ) (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا) प्रशंसाओं के पश्चात:सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वोत्तम मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है। दुष्टतम चीज़ धर्म में अविष्करित बिदअ़त (नवाचार) हैं और प्रत्येक बिदअ़त (नवोन्मेष) गुमराही है और हर गुमराही नरक में ले जाने वाली है।ए मुसलमानो! अल्लाह तआ़ला से डरो और उसका भय रखो उसकी आज्ञाकारिता करो और उसकी अवज्ञा से बचो और यह जान लो कि अल्लाह तआ़ला का सबसे बड़ा आदेश तौही़द (एकेश्वरवाद) है तौही़द का (अर्थ) है उपासना में अल्लाह को एक जानना और मानना (इस प्रकार कि) आप केवल उसी की पूजा करें उसके साथ किसी को साझी ना बनाएं वह ऐसा उद्देश है जिसके कारण ही अल्लाह ने मनुष्य एवं जिन्न को पैदा किया, अल्लाह रब्बुल आ़लमीन का कथन है:وَمَا خَلَقۡتُ ٱلۡجِنَّ وَٱلۡإِنسَ إِلَّا لِیَعۡبُدُونِ (الذاريات: 56) अर्थात: " मैंने मनुष्य एवं जिन्न को केवल अपनी पूजा के लिए पैदा किया। "इब्ने तैमिया रहमतुल्लाहि अलैहि फ़रमाते हैं:" नमाज़, ज़कात,( दान दक्षिणा) रोज़ा (उपवास) ह़ज, सच बोलना, अमानत को पूरा करना, माता पिता के साथ सुंदर व्यवहार करना, परिजनों के साथ उत्तम व्यवहार करना, पुण्य का आदेश देना, और पाप से रोकना, काफ़िर एवं कपटीयों से जिहाद करना, पड़ोसी, ग़रीब, यात्री और ग़ुलामों के साथ सुंदर व्यवहार करना, पशुओं के साथ अच्छा व्यवहार करना, प्रार्थना, ज़िक्र व अज़कार, पवित्र क़ुरआन का सस्वर पाठ और इस प्रकार के अन्य कार्य पूजा में शामिल होते हैं। इसी प्रकार अल्लाह और उसके रसूल (संदेशवाहक) से प्रेम करना, अल्लाह का भय रखना, और उसकी निकटता प्राप्त करना, अल्लाह के धर्म को शुद्ध करना, उसके आदेश पर सब्र करना, उसकी नेमत (कृपा) का धन्यवाद करना, उसके निर्णय से प्रसन्न होना, उस पर विश्वास करना, उसकी कृपा का आशा करना, उसकी यातना का भय रखना भी अल्लाह की पूजा में शामिल हैं।"इब्न-ए-तैमिया रहमतुल्लाहि अलैहि का कथन समाप्त हुआ। ए अल्लाह के बंदो (दास)! नि: संदेह पैग़बर और संदेशवाहकों की दावत तौहीद के इसी प्रकार अर्थात एकेश्वरवाद में शामिल थी।, अल्लाह का कथन है:وَمَاۤ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِیۤ إِلَیۡهِ أَنَّهُۥ لَاۤ إِلَـٰهَ إِلَّاۤ أَنَا۠ فَٱعۡبُدُونِ. (الأنبياء:25) अर्थात: " इससे पूर्व जो भी रसूल (संदेशवाहक) हम ने भेजा उसकी ओर यही वह़्य अवतरित की कि मेरे अतिरिक्त कोई सत्य परमेश्वर नहीं है, इसलिए तुम सब केवल मेरी ही पूजा करो।"समस्त पैग़ंबर (संदेशवाहक) अपने समुदाय से यही कहा करते थे:ٱعۡبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَـٰهٍ غَیۡرُهُ.(الأعراف:59)अर्थात: " अल्लाह की पूजा करो और उसके अतिरिक्त कोई तुम्हारा परमेश्वर नहीं।"ए मोमिनो! समस्त असत्य पर मेश्वरों की अतिरिक्त अल्लाह ही पूजा व उपासना का पात्र है, इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि उसने अकेले इस संसार को पैदा किया इसमें कोई उसका साझी एवं सहायक नहीं, रुबूबीयत के अंदर रचना, राजशाही, उपाय और रिज़्क़ प्रदान करना भी शामिल है। रचनाकार एवं पालनहार रोज़ी प्रदान करने वाला, आदेश देने वाला, और उपाय करने वाला केवल अल्लाह ही है। अल्लाह तआला रचना में अपने अकेलेपन का उल्लेख करते हुए फ़रमाया:ٱللَّهُ خَـٰلِقُ كُلِّ شَیۡءٍ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَیۡءࣲ وَكِیلࣱ. (الزمر:62) अर्थात: " अल्लाह हर वस्तु को पैदा करने वाला और हर चीज़ का ज़िम्मा लेने वाला है।"राजशाही में अपने अकेलेपन को स्पष्ट करते हुए फ़रमाया:ذَ ٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۚ وَٱلَّذِینَ تَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا یَمۡلِكُونَ مِن قِطۡمِیرٍ (فاطر:13) अर्थात: " वह अल्लाह तुम्हारा रब है, उसी की बादशाही है, उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वह एक खजूर की गुठली के छिलके का भी मालिक नहीं।""क़ितमीर" सफ़ेद पतले छिलके को कहते हैं, जो खजूर की गुठली पर होता है।आदेश लागू करने और उपाय करने में उसके अकेले होने का साक्ष्य यह है:وَإِلَیۡهِ یُرۡجَعُ ٱلۡأَمۡرُ كُلُّهُ. (هود:123) अर्थात: " और हर मामला उसी की ओर पलट ता है।"संसार का संचालन, जिसमें जीवन एवं मृत्यु देना, वर्षा एवं सूखा उत्पन्न करना, धनी एवं गरीब बनाना, स्वस्थ एवं रोगी करना, शांति प्रदान करना एवं भय उत्पन्न करना और इनके अतिरिक्त वे समस्त चीज़ें शामिल हैं, जो इस संसार में घटती हैं, वे समस्त अल्लाह के आदेश से ही घटते हैं।रोज़ी प्रदान करने में अल्लाह के अकेले होने का साक्ष्य अल्लाह का यह कथन है:إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلرَّزَّاقُ ذُو ٱلۡقُوَّةِ ٱلۡمَتِینُ. (الذاريات:58) अर्थात: " निश्चय अल्लाह ही रोज़ी देने वाला शक्तिशाली दृढ़ है।"ए मुसलमानो! एकेश्वरवाद का विपरीत अल्लाह के साथ बहुदेववाद करना है। बहुदेववाद यह है कि: किसी भी पूजा को अल्लाह के अतिरिक्त के लिए करना इस प्रकार के मनुष्य अल्लाह के लिए कोई ऐसा साझी बना ले जिसकी वह उसी प्रकार पूजा करे जिस प्रकार अल्लाह की पूजा करता है, उससे उसी प्रकार डरे जिस प्रकार वह अल्लाह से डरता है, किसी भी उपासना के माध्यम से उसी प्रकार उसकी निकटता प्राप्त करे जिस प्रकार अल्लाह की निकटता प्राप्त करता है, उन लोगों के जैसा जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, उनके लिए बलि चढ़ाते हैं उनका तवाफ़ (चक्कर) करते हैं, उनके चौखट को चूमते हैं, और उनसे बरकत प्राप्त करते हैं, उनका यह विश्वास होता है कि यह क़ब्र वाले रोज़ी-रोटी प्रदान करते हैं अथवा लाभ हानि पहुंचाते हैं इसी प्रकार अन्य कार्य पूरा करते हैं। यह ऐसे बहुदेववादी कार्य हैं जो दासों के लिए विश्वास प्रबल कर देते हैं की असत्य परमेश्वर के अतिरिक्त अल्लाह ही समस्त प्रकार की पूजाओं का पात्र है। अल्लाह के दासो! बहूदेववाद वह सबसे बड़ी अवज्ञा है जिससे अल्लाह ने रोका है अल्लाह तआ़ला ने अपने पैग़ंबर से फ़रमाया:وَلَقَدۡ أُوحِیَ إِلَیۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكَ لَىِٕنۡ أَشۡرَكۡتَ لَیَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ. بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّـٰكِرِینَ. (الزمر:65-66) अर्थात: " तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्य़ की जा चुकी है कि यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया धरा अनिवार्यत: अकारत हो जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़ने वालों में से हो जाओगे,बल्कि अल्लाह ही की बंदगी करो और कृतज्ञता दिखाने वालों में से हो जाओ।" नि: संदेह अल्लाह ने बहूदेववाद के लिए बड़ी यातना निश्चित की है अल्लाह का कथन है:إِنَّهُۥ مَن یُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِ ٱلۡجَنَّةَ وَمَأۡوَىٰهُ ٱلنَّارُۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارࣲ. (المائدة:72) अर्थात: " जो कोई भी अल्लाह का साझी ठहराएगा उस पर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम कर दिया कर दिया है और उसका ठिकाना नरक है अत्याचारों का कोई सहायक नहीं।"ऐ विश्वासियो ! अल्लाह ने बहूदेववाद को असत्य घोषित कर दिया है जिसके अनेक इस्लामी एवं तार्किक प्रमाण हैं, जहां तक इस्लामी साक्ष्य की बात है तो उसका उदाहरण अल्लाह का यह कथन है:إِنَّهُۥ مَن یُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَیۡهِ ٱلۡجَنَّةَ وَمَأۡوَىٰهُ ٱلنَّارُۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِینَ مِنۡ أَنصَارࣲ. (المائدة:72) अर्थात: " जो कोई भी अल्लाह का साझी ठहराएगा उस पर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम कर दिया है और उसका ठिकाना नरक है अत्याचारों का कोई सहायक नहीं।"जहां तक बहुदेववाद को असत्य कर देने वाले तार्किक साक्ष्य की बात है तो वे अनेक हैं सबसे महत्वपूर्ण यह दो साक्ष्य साक्ष्य हैं:१-प्रथम साक्ष्य यह है कि बहुदेववादी जिन परमेश्वरों की पूजा करते हैं उनके अंदर एकेश्वरवाद का कोई लक्षण नहीं पाया जाता है वे ऐसे जीव हैं जो रचना नहीं कर सकतीं, अपने पूजने वालों को लाभ पहुंचा सकतीं और न ही हानि पहुंचा सकतीं न उनकी मृत्यु व जीवन उनके हाथ में है, ना ही आकाश और पृथ्वी की कोई अन्य चीज़, और न ही वह अल्लाह को अपनी संपत्ति में साझी कर सकती हैं अल्लाह का कथन है:وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦۤ ءَالِهَةً لَّا یَخۡلُقُونَ شَیۡـًٔا وَهُمۡ یُخۡلَقُونَ وَلَا یَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ ضَرًّا وَلَا نَفۡعًا وَلَا یَمۡلِكُونَ مَوۡتًا وَلَا حَیَوٰةً وَلَا نُشُورًا. (الفرقان:3) अर्थात: " फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे इष्ट-पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते हैं, उन्हें ना तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और ना लाभ का और ना उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और ना ही जीवन का और ना दोबारा जीवित होकर उठने का।"अल्लाह तआ़ला ने इसके अतिरिक्त फ़रमाया:قُلِ ٱدۡعُوا۟ ٱلَّذِینَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ لَا یَمۡلِكُونَ مِثۡقَالَ ذَرَّةٍ فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَلَا فِی ٱلۡأَرۡضِ وَمَا لَهُمۡ فِیهِمَا مِن شِرۡكٍ وَمَا لَهُۥ مِنۡهُم مِّن ظَهِیرٍ. وَلَا تَنفَعُ ٱلشَّفَـٰعَةُ عِندَهُۥۤ إِلَّا لِمَنۡ أَذِنَ لَهُۥۚ حَتَّىٰۤ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمۡ قَالُوا۟ مَاذَا قَالَ رَبُّكُمۡۖ قَالُوا۟ ٱلۡحَقَّۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِیُّ ٱلۡكَبِیرُ. (سبأ:22-23) अर्थात: " कह दो, अल्लाह को छोड़कर जिनका तुम्हें (उपास्य होने का) दावा है उन्हें पुकार कर देखो वे ना आकाश में कण भर चीज़ के मालिक हैं और ना ही धरती में और ना उन दोनों में उनका कोई साझी है और उनमें से कोई उसका सहायक है। और उसके यहां कोई सिफारिश काम नहीं आएगी किंतु उसी की जिसे उसने (सिफारिश करने की) अनुमति दी हो, यहां तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाएगी तो वे कहेंगे: तुम्हारे रब ने क्या किया? वे कहेंगे: सर्वथा सत्य, और वह अत्यंत उच्च महान है जब उन परमेश्वर की यह स्थिति हो तो उनको परमेश्वर मानना प्रलय स्तर की मूर्खता और प्रलय स्तर की निराधार बात है।"२-अल्लाह के दासो! बहुदेववाद के असत्य होने का द्वितीय साक्ष्य यह है कि यह बहुदेववादी इस बात को मानते हैं कि नि: संदेह अल्लाह ही केवल पालनहार एवं रचनाकार है जिसके हाथ में हर चीज़ की बादशाहत है, वही मुक्ति प्रदान करता है, उसकी यातना से कोई मुक्ति देने वाला नहीं ( बहुदेववादीयों के इस विचार से) यह बात आवश्यक रूप से समझ में आती है कि वह एकेश्वरवाद में अल्लाह को एक मानते थे जिस प्रकार रुबूबीयत ( पालनहार मानना) में अल्लाह को एक मानते थे जैसा कि अल्लाह का कथन है:یَـٰۤأَیُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِی خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِینَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ. ٱلَّذِی جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَ ٰشࣰا وَٱلسَّمَاۤءَ بِنَاۤءࣰ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَاۤءِ مَاۤءࣰ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَ ٰتِ رِزۡقࣰا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُوا۟ لِلَّهِ أَندَادࣰا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ. (البقرة:21-22) अर्थात: "ए लोगो! बंदगी करो अपने रब की जिस ने तुम्हें और तुम से पहले के लोगों को पैदा किया ताकि तुम परहेज़गार बन सको वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श और आकाश को छत बनाया और आकाश से पानी उतारा फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोज़ी के लिए पैदा किया अत: जब तुम जानते हो तो अल्लाह के लिए सहकर्मी ना ठहराओ।"इन समस्त<
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