موضوع الخطبة: ستة عشر درسا من الهجرة النبويةالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم:طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4Tशीर्षक:नबवी प्रवासन से व्युत्पन्न १६ सीख एवं लाभ।إن الحمد لله نحمده ، ونستعينه، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا ومن سيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدا عبده ورسوله.(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنْتُمْ مُسْلِمُونَ) (يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاءً وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ وَالْأَرْحَامَ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا)(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا)Ikz”kalkvksa ds Ik”pkr!loZJs’B ckr vYykg dh ckr gS ,oa सर्वोत्तम ekxZ eksg+Een lYyYykgq vySfg olYye dk ekxZ gSAnq’Vre pht+ /keZ esa vfo’dkfjr fcnv+r (uokpkj) gS vkSj izR;sd fcnv+r xqejkgh gS vkSj izR;sd xqejkgh ujd esa ys tkus okyh gSA ए मुसलमानो! अल्लाह से डरो एवं उसका भय अपनी बुद्धि एवं हृदय में जीवित रखो। उसकी आज्ञा करो एवं अवज्ञा से वंचित रहा करो। ज्ञात रखो कि अल्लाह तआ़ला ने अपने दूत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अवतार दूतों के चल बसने के एक लंबे समय के पश्चात किया जबकि इस धरती पर मूर्ति पूजा का चलन हो चुका था जिसमें इस धरती का सर्वश्रेष्ठ पाठ मक्का भी सम्मिलित था, इस कारणवश जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने परिवार के लोगों को इस्लाम की ओर आमंत्रित किया, उनमें से बहुत कम लोगों ने आपके आमंत्रण को स्वीकार किया, अधिकतम लोगों ने नकार दिया, चोरी छुपे यह प्रचार-प्रसार जारी था, क़ुरैश के काफ़िर इससे अनजान थे, परंतु जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार की सूचना दी, काफ़िरों के पूज्यों की कमी को बताया एवं स्पष्ट रूप से उनका खंडन किया, तो उनके हृदय में अपने पूज्यों की सुरक्षा हेतु पक्षपात (का दीप जल उठा।) एवं बहुदेव वादियों के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ गया। इस कारणवश उन्होंने आपको (अपने प्रचार-प्रसार से हट जाने हेतु) धन-दौलत का झांसा दिया कि आप इससे सर्वश्रेष्ठ धनी हो जाएंगे, विवाह के नाम पर बहकाया कि आपका विवाह क़ुरैश की सबसे सुंदर महिला से हो जाएगा, आपको यह प्रस्ताव दिया कि वे आपको अपना शासक स्वीकार कर लेंगे, आपको यह भी अधिकार दिया के आप उनके पूज्यों की एक वर्ष तक पूजा करेंगे एवं वे आपके पूज्य कि एक वर्ष तक पूजा करेंगे, परंतु आपने इन संपूर्ण प्रस्तावों को ठुकरा दिया।(وَدُّوا۟ لَوۡ تُدۡهِنُ فَیُدۡهِنُونَ.) (لقمان:09)अर्थात: "वे तो चाहते हैं कि आप ढीले पड़ जाएं तो वे भी ढीले पड़ जाएंगे।" उन्होंने आपके ऐसे आज्ञाकारों को दु: ख दिया एवं दंडित किया जो समाज में ना प्रभावशाली थे और ना ही उन्हें परिवार एवं जनजाति की सहायता प्राप्त थी। उन्हें बहुत ही दुखद यातना से दो-चार किया, ताकि वे बहुदेववाद की ओर पलट जाएं एवं इनके अतिरिक्त वो लोग जो अपने हृदय में इस्लाम के स्वीकार करने की इच्छा रखते हैं वे इन के प्रकोप से भयभीत हो जाएं।जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने देखा कि उनके सहाबा गंभीर परीक्षणों से पीड़ित हैं, एवं आप उनकी सहायता करने में भी असमर्थ हैं तो आपने उन्हें हबशा देश की ओर प्रवास करने की अनुमति दे दी। इस कारणवश सहाबा ने दो बार हबशा की ओर प्रवासन किया। प्रथम बार सन् पांच नबवी रहस्योद्घाटन (बेअ़सत-ए-नबवी) एवं द्वितीय बार सन् दस नबवी रहस्योद्घाटन (बेअ़सत-ए-नबवी) में, इसके पश्चात सहाबा ने मदीना की ओर प्रवास किया, फिर स्वयं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना की ओर प्रवास कर के सहाबा से भेंट किया ताकि इस्लाम के प्रचार-प्रसार का एवं अल्लाह की पूजा करने का लक्ष्य सफ़लतापूर्वक पूरा हो सके।ए मुसलमानो! नबवी प्रवासन की घटना में बुद्धि लगाने वालों को उसके भीतर बहुत सी बुद्धिमत्ता दिखाई देती है एवं वे इससे अधिक से अधिक सीख एवं लाभ प्राप्त करते हैं, निम्नलिखित में उनमें से कुछ का उल्लेख किया जा रहा है:(१) अल्लाह के मार्ग में धन, निवास एवं परिवार का बलिदान: नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मक्का से निकलने लगे तो मक्का की ओर मुड़कर फ़रमाया: "अल्लाह की क़सम! निःसंदेह तू अल्लाह की धरती में सर्वश्रेष्ठ है एवं अल्लाह की पृथ्वी में सबसे अधिक प्रिय धरती है, यदि मुझे तुझसे ना निकाला जाता तो मैं ना निकलता।" (इसे तिरमिज़ी: ३९२५ ने रिवायत किया है एवं अल्बानी ने सहीह कहा है।)(२) प्रवासन की घटना से एक सीख यह भी प्राप्त होती है कि जिस मनुष्य को इस्लाम का प्रचार-प्रसार करने से किसी स्थान पर रोक दिया जाए तो उसे द्वितीय स्थान की ओर प्रस्थान कर लेना चाहिए, जहां वह प्रचार-प्रसार का काम चालू रख सके। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब क़ुरैश के निर्देश प्राप्त करने से निराश हो गए तो आपने मदीना की ओर प्रस्थान कर लिया ताकि वहां लोगों को अल्लाह की ओर आमंत्रण देने का कार्य चालू रख सकें।(३) प्रवासन की घटना से एक सीख यह भी प्राप्त होती है कि कष्ट एवं परीक्षण का अल्लाह का जो सिद्धांत रहा है वह यहां अस्पष्ट है, क्योंकि स्वर्ग बहुमूल्य चीज़ है, जो शारीरिक विश्राम से प्राप्त नहीं हो सकती, बल्कि अल्लाह की आज्ञाकारीता हेतु परिश्रम करने एवं इस मार्ग में आने वाली कठिनाइयों पर धीरज रखने से प्राप्त होती है।أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُوا۟ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا یَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِینَ جَـٰهَدُوا۟ مِنكُمۡ وَیَعۡلَمَ ٱلصَّـٰبِرِینَ. (آل عمران: 142)अर्थात: "क्या तुम्हें यह भ्रम है कि तुम स्वर्ग में प्रवेश कर जाओगे हालांकि अल्लाह ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि कौन युद्ध लड़ने वाले हैं एवं कौन धीरज रखने वाले हैं?"सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ अल्लाह के लिए यह बहुत ही सरल बात थी कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हर प्रकार की कठिनाइयों एवं दुखों को दूर कर देते एवं क्षण भर में आपको मक्का से मदीना की ओर प्रस्थान कर देते, जैसा कि इसरा व मेअ़राज की रात्रि क्षण भर में "बुराक़" नामक सवारी के माध्यम से मक्का से बैतूल-मक़दिस प्रस्थान कराया, परंतु अल्लाह ने आपको परीक्षण से दो-चार करना चाहा ताकि आप अपने लोग एवं पश्चात में आने वाले लोगों हेतु प्रतिरूप बन सकें, धर्म का पालन एवं सत्यता की पहचान हो सके, अल्लाह के निकट आप का सवाब दोगुना हो जाए, एवं अल्लाह की ओर बुलाने वालों को आप से सीख मिल सके कि इस्लाम के प्रचार-प्रसार में जिन कठिनाइयों का सामना करना होता है उन पर धीरज रखना है।(४) प्रवासन की घटना से हमें यह शिक्षा भी प्राप्त होती है कि संवेदी एवं शारीरिक साधनों को भी अपनाना चाहिए, इससे स्पष्ट होता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्रवास के लिए संवेदी तैयारी की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक अल्लाह तआ़ला ने आपको अनुमति नहीं दी तब तक आपने प्रवास नहीं किया, इसके अतिरिक्त आपने धरोहर रखने वाले यात्रा संगी का चयन किया, जो कि अबू बक्र रज़ि अल्लाहू अ़नहु हैं। अ़ब्दुल्लाह बिन अबू बक्र रज़ि अल्लाहू अ़नहुमा की सहायता प्राप्त की ताकि वह आपको क़ुरैश की सूचना पहुंचाया करें, अबू बक्र रज़ि अल्लाहू अ़नहु के नौकर आ़मिर बिन फ़ुहैरा की भी सहायता प्राप्त की कि वह आप दोनों को दूग्ध पहुंचाया करें, वह अबू बक्र रज़ि अल्लाहू अ़नहु की बकरियां चराया करते थे, इसी प्रकार आपने पथों के दिशा-निर्देश प्राप्त करने हेतु अब्दुल्लाह बिन अरीक़त अल्-लैसी का सहयोग प्राप्त किया हालांकि वह बहुदेव वादी था परंतु वह धरोहर रखने वाला एवं पथों का महा ज्ञानी था। साधनों को अपनाने का एक उदाहरण यह भी है कि आपने ऐसे पथ का चयन किया जो अनजान था ताकि बहूदेव वादियों के आंखों में धूल झोंक सकें।साधनों को अपनाने का एक उदाहरण यह भी है मक्का के दक्षिण में पर्स्थित सौर नामक गुफ़ा के भीतर आप तीन यात्रियों तक छुपे रहे इसके अतिरिक्त आप गुफ़ा से निकलकर मदीना की ओर उस वक्त तक कूच नहीं किए जब तक की बहूदेव वादियों ने आपका पीछा करना छोड़ ना दिया।साधनों को अपनाने का एक उदाहरण यह भी है कि आपने अपने प्रवासन की बात को गुप्त रखा और केवल उन लोगों को इसकी सूचना दी जिन को बताना अति आवश्यक था। (ये वे लोग हैं जिन से आपने सहायता प्राप्त की) और उनका उल्लेख ऊपर हो चुका है।ये वे १० बातें हैं जिनसे योजना के महत्व एवं साधनों को अपनाने संबंध में नबवी स्वभाव के प्रतिरूप की अस्पष्टता होती है।(८) प्रवासन की घटना से हमें यह भी ज्ञात होता है कि जो व्यक्ति अल्लाह के लिए किसी चीज़ को त्याग देता है तो अल्लाह तआ़ला उस से अच्छा पुरस्कार उसे प्रदान करता है। इस कारणवश जब प्रवासियों ने अपना गृह, परिवार, संतान और धन एवं संपत्ति को (अल्लाह के लिए) त्याग दिया जो मानव की आत्मा हेतु सबसे अधिक प्रिय होते हैं तो अल्लाह ने उन्हें अच्छे परिणाम प्रदान किए वह इस प्रकार की संपूर्ण संसार में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सफ़लता दी, पूर्व से लेकर पश्चिम तक का उन्हें स्वामी बना दिया, शाम, पारस, मिस्र उनके अधीन हो गए, मुसलमानों ने सहाबा के युग के पश्चात दक्षिण अफ़्रीक़ा की ओर प्रस्थान किया एवं उनदुलुस पर सफ़लता प्राप्त की।(५) प्रवासन की घटना से हमें यह शिक्षा भी प्राप्त होती है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऊपर सूचीबद्ध संवेदी एवं शारीरिक साधनों पर ही निर्भर नहीं हुए, बल्कि आपके हृदय में केवल अल्लाह पर विश्वास था इसका साक्ष्य बहूदेव वादी जब गुफ़ा के निकट पहुंचेतो अबू बक्र ने कहा: हे अल्लाह के दूत! यदि उनमें से किसी ने भी अपने पैरों की ओर दृष्टि की तो नीचे हमें देख लेंगा। तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "तुम्हारा उन दो लोगों के संबंध में क्या विचार है जिनका तीसरा अल्लाह हो?" उन्हें कोई कष्ट नहीं हो सकता। (इसे बुख़ारी: ३६५३ एवं मुस्लिम: २३८१ ने रिवायत किया है एवं उल्लेख किए गए शब्द मुस्लिम के हैं)अल्लाह तआ़ला का सत्य कथन है:"यदि तुमने उनकी सहायता नहीं की तो अल्लाह नहीं उनकी सहायता की उस समय जबकि उन्हें काफ़िरों ने निकाल दिया था, दो में से द्वितीय जबकि वे गुफ़ा में थे जब वह अपने संगी से कह रहे थे: निराश ना हो अल्लाह हमारे साथ है। पालनहार ने अपनी ओर से शांति को अवतरित करके ऐसी सेनाओं के माध्यम से उनकी सहायता की जिन्हें तुमने देखा ही नहीं। उसने काफ़िरों की बात को पराजित कर दिया, एवं सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ बात तो अल्लाह ही की है जो
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