توقير الصحابة من أصول اعتقاد أهل السنة
ماجد بن سليمان الرسيموضوع الخطبة: توقير الصحابة من أصول اعتقاد أهل السنة والجماعةالخطيب : فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم: طارق بدر السنابلي (@Ghiras_4T)सहाबा का सम्मान अहले सुन्नत वल जमात की अटूट धारणासर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह ताला की है, एवं सबसे उत्तम सिद्धांत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम का सिद्धांत है और सब से घृणात्मक चीज धर्म में अविष्कार की हुई बिदअतें (नवाचार) हैं. हर नवोन्मेष गुमराही है, हर गुमराही नरक में ले जाने वाली है.ए मुसलमानो!अल्लाह त-आला से भय करो एवं उसी का डर सदैव अपने ह्रदय में जीवित रखो. उसी की आज्ञाकारीता करो एवं उस के आज्ञा का उल्लंघन करने से बचो. ध्यान रखो कि अहले सुन्नत वल जमात के बुनियादी धारणाओं में यह बात सम्मिलित है कि उनके सहाबियों (साथियों) की प्रतिष्ठा का ध्यान रखा जाए, एवं उनका सम्मान किया जाए, उनके साथ उत्तम व्यवहार किया जाए, उनके अधिकारों का ज्ञात रखा जाए, उनकी आज्ञाकारीता की जाए, उनकी प्रशंसा उत्तम रूप में की जाए उनके क्षमा के लिए प्रार्थना की जाए उनके व्यक्तिगत झगड़ों के प्रति चुपचाप रहा जाए उनके शत्रुओं से शत्रुता रखी जाए उनमें से किसी के प्रति जो नकारात्मक संदेश फैले हुए हैं जिन्हें कुछ इतिहासकारों, अज्ञानी कथावाचकों, गुमराह शीओं एवं नवोन्मेष के पालन करने वालों ने प्रतिलिपि की है, उन से दूर रहा जाए.क्योंकि यह लोग इसी प्रकार के संदेशों को फैलाने की योग्यता रखते हैं. किसी सहाबी को घृणात्मक रूप से याद ना किया जाए, नाही उनके किसी कार्य का उल्लंघन किया जाए, बल्कि उनके सकारात्मक रूपों को उजागर किया जाए एवं जो भी उनकी अच्छाइयां हैं उनकी प्रशंसा की जाएं, इसके अतिरिक्त जो भी अनुपयुक्त चीजें हैं उन पर चुप रहा जाए.शैख़ुल इस्लाम इब्ने तैमिया रहमतुल्लाही अलैह का वर्णन है: " अहले सुन्नत वल जमात के सिद्धांतों में से है कि उनके हृदय एवं जीभ सहाबा के प्रति पूर्णतः शुद्ध होती हैं. जैसा कि अल्लाह ताला ने इनके बारे में इस आयते करीमा में वर्णन किया: (وَالَّذِينَ جَاءُوا مِن بَعْدِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا وَلِإِخْوَانِنَا الَّذِينَ سَبَقُونَا بِالْإِيمَانِ وَلَا تَجْعَلْ فِي قُلُوبِنَا غِلًّا لِّلَّذِينَ آمَنُوا رَبَّنَا إِنَّكَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ (۱۰: سورة الحشر) अर्थात: "उनके लिए जो इन के पश्चात आएं जो कहेंगे कि ए हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे एवं हमारे उन भाइयों को भी जो हम से पहले ईमान स्वीकार चुके हैं, और इमान रखने वालों की ओर से हमारे हृदय में द्वेष (शत्रुता) ना डाल, ए हमारे रब! नि: संदेह तू बहुत बड़ा दयालु एवं कृपालु है."ए मोमिनो! सहाबा को अन्य व्यक्तियों पर यह श्रेष्ठता प्राप्त है कि अल्लाह ताला ने पूर्ण मनुष्य में उन्हें अपने दूत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम का संगी बनाया, उन्हें सांसारिक जीवन में आप का दर्शन करके मन को शांति प्रदान करने, आपके मुंह से पवित्र हदीस सुनने, आपसे धार्मिक रेखाओं को जानने, एवं आप जिन प्रकाश एवं निर्देश के साथ भेजे गए उन्हें पूर्ण रूप से संसार के कोने कोने तक पहुंचाने का काम दे कर विशेष सम्मान प्रदान किया.इस कारणवश आप की संगत में रहने, आपके साथ जिहाद करने, इस्लाम के प्रचार प्रसार करने एवं अन्य मनुष्यों को इसकी ओर निमंत्रण देने के कारण उन्हें बड़ी सफलता दी गई इन के पश्चात आने वालों को जितना सवाब मिलेगा उन्हें भी उतना ही सवाब मिलेगा क्योंकि उन्होंने ही इनको सत्य का मार्ग दर्शन कराया है और यह बात सभी जानते हैं कि जो व्यक्ति सच एवं सीधे मार्ग का निर्देश कराता है या उसकी ओर लोगों को निमंत्रण देता है उसे उतना ही सवाब मिलता है जितना उस पर चलने वाले को मिलता है और इस सवाब के कारण उन आज्ञाकारीयों के सवाब में कोई कटौती नहीं होती है.ए मोमिनो! अल्लाह ताला ने सहाबा की बहुत अधिक प्रशंसा की है एवं उनके गुणों को बयान किया है तौरात, इंजील एवं क़ुरआन में उनको उच्च स्थान प्रदान किया है, उनको बड़ी सफलता तथा माफ़ी का विश्वास दिलाया है, अल्लाह ताला का वर्णन है: (مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ اللَّـهِ ۚ وَالَّذِينَ مَعَهُ أَشِدَّاءُ عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاءُ بَيْنَهُمْ ۖ تَرَاهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ اللَّـهِ وَرِضْوَانًا ۖ سِيمَاهُمْ فِي وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ السُّجُودِ ۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِي التَّوْرَاةِ ۚ وَمَثَلُهُمْ فِي الْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَهُ فَآزَرَهُ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ ۗ وَعَدَ اللَّـهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا(۲۹: سورة الفتح) अर्थात: "मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम अल्लाह के दूत हैं और जो मनुष्य उनके साथ हैं वे काफ़िरों पर कठोर एवं आपस में दयालु हैं तू उनहें देखेगा कि वे रुकू एवं सजदा कर रहे हैं, अल्लाह ताला की कृपा एवं सहमति की जिज्ञासा में हैं, उनका चिन्ह उनके मुखड़ों पर सजदों के कारण हैं, उनका यही उदाहरण तौरात में है एवं उनका यही उदाहरण इंजील में है उस खेती के जैसा जिसने अपना अंखवा निकाला फिर उसे शक्तिशाली बनाया और वह मोटा हो गया फिर अपनी डाली पर सीधा खड़ा हो गया एवं अन्नदाताओं को प्रसन्न करने लगा ताकि इनके कारण वे काफिरों को चिड़ा सकें उन ईमान वालों और पूण्य करने वालों से अल्लाह ताला ने माफी एवं बड़े सवाब का विश्वास दिलाया है." इमाम कुर्तुबी रहमतुल्लाहि अलैह इस आयत की व्याख्या करते हुए लिखते हैं: "यह एक उदाहरण है जिसे अल्लाह ताला ने सहाबा के संदर्भ में प्रस्तुत किया है. जिसका अर्थ यह है कि वे पहले बहुत कम संख्या में होंगे, फिर उनकी संख्या अधिक हो जाएगी जब नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने दुर्बलता एवं असमर्थता की स्थिति में मनुष्य को धर्म की ओर आमंत्रण देना प्रारंभ किया तो एक-एक करके लोगों ने आपके इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया यहां तक कि आप का संदेश उस पौधे की तरह शक्तिशाली हो गया जो बीज बोते समय दुर्बल दिखता है फिर स्थिरता के साथ उसमें शक्ति आती जाती है यहां तक कि उसके सूंढ़ एवं डालियां शक्तिशाली हो जाती हैं इस प्रकार यह एक बहुत ही उपयुक्त उदाहरण सिद्ध हुआ."सहाबा की महानता एवं उनके उच्च स्थान का एक प्रमाण यह भी है कि अल्लाह ताला ने उनके बारे में यह सूचना दी है की वे पवित्रता की बात के ज़्यादा निकट थे जैसा कि सूरतु-उल-फतह में वर्णन हुआ:وَأَلۡزَمَهُمۡ كَلِمَةَ ٱلتَّقۡوَىٰ وَكَانُوۤا۟ أَحَقَّ بِهَا وَأَهۡلَهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَیۡءٍ عَلِيماً.(الفتح:26) अर्थात: "अल्लाह ताला ने मुसलमानों को पवित्रता(तक़वा) की बात पर जमाए रखा एवं वे इसके ज़्यादा योग्य थे, और अल्लाह ताला को प्रत्येक वस्तु के बारे में पूर्णत: ज्ञात है."इसके अतिरिक्त यह भी सूचना दी है कि यदि लोग उसी तरह ईमान स्वीकार कर लें जिस प्रकार सहाबा ने किया तो वे भी निर्देश को प्राप्त कर लेंगे.अल्लाह ताला का वर्णन है:فَإِنۡ ءَامَنُوا۟ بِمِثۡلِ مَاۤ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهۡتَدَوا۟ۖ . (البقرة:137) अर्थात: "यदि वे उसी प्रकार ईमान स्वीकार कर लें जैसा कि तुमने किया तो वे भी निर्देश (हिदायत) प्राप्त कर लेंगे."अल्लाह ताला ने सहाबा के पक्ष में यह गवाही दी है कि वे सत्य एवं ईमान के स्वीकार करने वाले हैं.अल्लाह ताला का वर्णन है:وَٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِی سَبِیلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِینَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوۤا۟ أُو۟لَـٰۤىِٕكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقّاًۚ لَّهُم مَّغۡفِرَةࣱ وَرِزۡقٌ كَرِیمٌ.(الأنفال: 74) अर्थात: "जिस मनुष्य ने ईमान स्वीकार किया, प्रवासी बने, अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया, जिन्होंने शरण दी, एवं सहयोग किया, यही लोग सत्य मोमिन हैं इनके लिए माफ़ी है एवं प्रतिष्ठा वाली रोज़ी है."क़ुरआन मजीद में दो स्थानों पर यह वर्णन आया है कि अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया वे दोनों आयतें निम्नलिखित हैं:(1) ۞ لَّقَدۡ رَضِیَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ إِذۡ یُبَایِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِی قُلُوبِهِمۡ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِینَةَ عَلَیۡهِمۡ وَأَثَـٰبَهُمۡ فَتۡحاً قَرِیباً.(الفتح:18) अर्थात: "नि: संदेह अल्लाह ताला मोमिनो से प्रसन्न हो गया जबकि वे पेड़ के नीचे तुझसे प्रतिज्ञा ले रहे थे, उनके हृदय में जो कुछ था उसने उसे ज्ञात कर लिया, उनको शांति एवं संतोष प्रकट किया एवं उन्हें शीघ्र ही सफलता प्रदान की."दूसरा स्थान सूरह-ए-तौबा है जिसमें वर्णन हुआ कि अल्लाह ताला उनसे प्रसन्न हो गया.وَٱلسَّـٰبِقُونَ ٱلۡأَوَّلُونَ مِنَ ٱلۡمُهَـٰجِرِینَ وَٱلۡأَنصَارِ وَٱلَّذِینَ ٱتَّبَعُوهُم بِإِحۡسَـٰنࣲ رَّضِیَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُوا۟ عَنۡهُ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَنَّـٰتࣲ تَجۡرِی تَحۡتَهَا ٱلۡأَنۡهَـٰرُ خَـٰلِدِینَ فِیهَاۤ أَبَداًۚ ذَ ٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِیمُ. (التوبة:100) अर्थात: " जो शरणार्थियों एवं उपयोगीयों (मुहाजिरीन-व-अंसार) भूतपूर्व एवं प्रथम हैं और जितने लोग सत्यता के साथ उनकी आज्ञाकारी हैं अल्लाह उन संपूर्ण लोगों से प्रसन्न हो गया एवं वे सभी लोग भी अल्लाह ताला से खुश हो गए और अल्लाह ताला ने उनके लिए ऐसे बग़ीचे उपलब्ध कर रखे हैं जिनके नीचे नेहरें बह रही होंगी जिनमें वे सदैव रहेंगे यह बड़ी सफ़लता है."अल्लाह ताला ने अपने दूत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उन सहाबा से परामर्श लेने का आदेश दिया.अल्लाह ताला का वर्णन है:وَشَاوِرۡهُمۡ فِی ٱلۡأَمۡرِۖ فَإِذَا عَزَمۡتَ فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ.(آل عمران:159) अर्थात: "कार्यों का परामर्श उन (सहाबा) से क्या करें जब आप की प्रतिबद्धता ठोस हो जाए तो अल्लाह ताला पर विश्वास रखें."इन के पश्चात आने वाले मुसलमानों को भी यह निर्देश दिया है कि वे उनकी क्षमा या माफ़ी के लिए अल्लाह ताला से प्रार्थना करें एवं मोमिनों के प्रति अपने हृदय में द्वेष न रखें.अल्लाह ताला का वर्णन है:وَٱلَّذِینَ جَاۤءُو مِنۢ بَعۡدِهِمۡ یَقُولُونَ رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا وَلِإِخۡوَ ٰنِنَا ٱلَّذِینَ سَبَقُونَا بِٱلۡإِیمَـٰنِ وَلَا تَجۡعَلۡ فِی قُلُوبِنَا غِلّاً لِّلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ رَبَّنَاۤ إِنَّكَ رَءُوفٌ رَّحِیمٌ. (الحشر:10) अर्थात: "उनके लिए जो इन के पश्चात आएं जो कहेंगे कि ए हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे एवं हमारे उन भाइयों को भी जो हम से पूर्व ईमान स्वीकार कर चुके हैं एवं इमान वालों की ओर से हमारे हृदय में द्वेष ( शत्रुता) ना डाल ए हमारे रब! नि: संदेह तू कृपालु एवं दयालु है."नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने स्पष्टता के साथ कहा कि सर्वश्रेष्ठ युग सहाबा का युग था, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वर्णन है: जिसका अर्थ यह है: "संपूर्ण मनुष्य में सर्वश्रेष्ठ लोग मेरे युग के लोग हैं फिर जो उनके निकट हैं फिर जो उनके निकट हैं."( बुख़ारी:2652, मुस्लिम:5233 ने अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि अल्लाअल्लाहु अनहु सर प्रतिलिपि की
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