خصائص الأيام العشر من ذي الحجة
ماجد بن سليمان الرسيموضوع الخطبة:خصائص الأيام العشر من ذي الحجة وفضائلهاالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم:طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4Tशीर्षक: ज़िलहिज्जा के १० दिनों की विशेषताएं एवं श्रेष्ठताऐं!إن الحمد لله نحمده ، ونستعينه، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا ومن سيئات أعمالنا، من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدا عبده ورسوله.ए मुसलमानो! अल्लाह से डरो एवं उसका भय अपने हृदय में जीवित रखो। उसके आज्ञाकारी बनो एवं अवज्ञा से वंचित रहो। ज्ञात रखो कि अल्लाह तआ़ला के पालनहार होने के साक्ष्यों का एक पाठ यह भी है कि वह अपनी सृष्टि में से जिसे चाहता है सर्वश्रेष्ठ बना देता है, चाहे वे मनुष्य हों, स्थान हों, समय हों अथवा उपासनाएं हों। इसके पीछे अल्लाह की बुद्धिमत्ता ही कार्य करती है जिससे वही भली-भांति अवगत रहता है। अल्लाह का कथन है: (وَرَبُّكَ یَخۡلُقُ مَا یَشَاۤءُ وَیَخۡتَارُۗ.)अर्थात: "और आपका पालनहार जो चाहता है पैदा करता है एवं जिसे चाहता है चयन कर लेता है।"हम इस उपदेश में जितना भाग में होगा ज़िलहिज्जा के प्रारंभिक १० दिनों की उन विशेषताओं का उल्लेख करेंगे जिनसे अल्लाह ने इन १० दिनों को संबंधित किया है एवं ये वे विशेषताएं हैं जिन्होंने इन १० दिनों को वर्ष के अन्य दिनों से विशिष्ट एवं सर्वश्रेष्ठ बनाया है, जिन में सर्वप्रथम विशेषता यह है कि अल्लाह ने इन १० दिनों का उल्लेख क़ुरआन में विशेष रूप से किया है, अल्लाह का कथन है:(لِّیَشۡهَدُوا۟ مَنَـٰفِعَ لَهُمۡ وَیَذۡكُرُوا۟ ٱسۡمَ ٱللَّهِ فِیۤ أَیَّامࣲ مَّعۡلُومَـٰتٍ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّنۢ بَهِیمَةِ ٱلۡأَنۡعَـٰمِۖ.)अर्थात: "अपने लाभों को प्राप्त करने हेतु आ जाएं एवं उन नियत दिनों में अल्लाह का नाम लें और उन पशुओं पर जो पालतू हैं।"यहां "अय्याम-ए-मअ़लूमात" का अर्थ ज़िलहिज्जा के १० दिन हैं, जिसका साक्ष्य इब्ने अ़ब्बास रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा से वर्णित एक रिवायत है कि "अय्याम-ए-मअ़लूमात" का अर्थ ज़िलहिज्जा के १० दिन हैं। (इसे बुख़ारी ने सेग़ह-ए-जज़्म के निलंबन के साथ अपनी सहीह में रिवायत क्या है, देखें: किताबुल्-ई़दैन, बाबू-फ़ज़्लिल्-अ़मलि फ़ी अय्यामित्-तशरीक़।) 🔵 ज़िलहिज्जा के १० दिनों की श्रेष्ठता का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह ने अपने कथन में इनके रात्रियों की क़सम खाई है, (وَٱلۡفَجۡرِ० وَلَیَالٍ عَشۡر)अर्थात: "क़सम है प्रातः के समय की एवं १० रात्रियों की।"इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह का कथन है:"१० रात्रि का अर्थ ज़िलहिज्जा के १० दिन हैं जैसा कि इब्नेने अ़ब्बास, इब्ने ज़ुबैर, मुजाहिद एवं उनके अतिरिक्त पूर्व व पश्चात में से कई एक व्याख्याकारों का कथन है। इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह का कथन समाप्त हुआ। 🔵 ज़िलहिज्जा के १० दिनों की श्रेष्ठता का एक साक्ष्य यह भी है कि संपूर्ण वर्ष की तुलना में इन दिनों में किए जाने वाले पुण्य को श्रेष्ठाता प्राप्त है। उदाहरण स्वरुप इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा से मरवी है, वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि उन्होंने फ़रमाया: "ज़िलहिज्जा के १० दिनों की तुलना में अन्य कोई दिन ऐसा नहीं है जिसमें पूण्य कार्य अल्लाह को इन दिनों से अधिक प्रिय हों।" लोगों ने प्रश्न किया: ए अल्लाह के दूत! अल्लाह के मार्ग में युद्ध लड़ना भी नहीं? तो अल्लाह के दूत ने फ़रमाया: "अल्लाह के मार्ग में युद्ध लड़ना भी नहीं, उस व्यक्ति को छोड़कर जो अपने प्राण एवं धन दोनों लेकर अल्लाह के मार्ग में निकला फिर किसी वस्तु के साथ वापस नहीं आया।" (बुख़ारी: ९६९, अहमद: १/३३८-३३९, उल्लेख किए गए शब्द अहमद के हैं।)इब्ने रजब रहिमहुल्लाह के कथन का सारांश: "यह हदीस बहुत ही सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोच्च है और यह इस बात का उल्लेख है कि छोटा पुण्य कार्य भी श्रेष्ठता के स्थान को प्राप्त कर लेता है, (परंतु इस शर्त के साथ कि) जब उस कार्य को श्रेष्ठ समय में क्या गया हो, यहां तक कि वह श्रेष्ठ समय में पूर्ण होने के कारण अन्य श्रेष्ठ कार्यों पर भी श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है और उन्हीं में से ज़िलहिज्जा के १० दिनों के भी पुण्य कार्य हैं जो अन्य श्रेष्ठता वाले कार्य से भी सर्वश्रेष्ठ हैं एवं इससे युद्ध के सर्वश्रेष्ठ प्रकार के अतिरिक्त कोई भी पुण्य कार्य अलग नहीं है और यह वह व्यक्ति है जो अपने प्राण एवं माल के साथ युद्ध में निकले और कुछ भी लेकर ना लौटे। एवं यह हदीस इस बात पर भी साक्ष्य है कि ज़िलहिज्जा के १० दिनों के नफ़्ली उपासना रमज़ान के १० दिनों के नफ़्ली उपासना की तुलना में श्रेष्ठ है, इसी प्रकार ज़िलहिज्जा के १० दिनों के अनिवार्य उपासना रमज़ान के १० दिनों के अनिवार्य उपासना की तुलना में श्रेष्ठ है। इब्ने रजब रहिमहुल्लाह के कथन का सारांश समाप्त हुआ। (फ़तहुल्-बारी:९/११-१६, प्रकाशक: मकतबतुल्-ग़ुरबा-आल्-असरिया मदीना)🔵 ज़िलहिज्जा के १० दिनों की श्रेष्ठता का एक साक्ष्य यह भी है कि इसमें अ़रफ़ा का दिन आता है, जिस दिन अल्लाह तआ़ला ने अपने धर्म को पूर्ण किया एवं इस श्लोक को अवतरित किया: (ٱلۡیَوۡمَ أَكۡمَلۡتُ لَكُمۡ دِینَكُمۡ وَأَتۡمَمۡتُ عَلَیۡكُمۡ نِعۡمَتِی وَرَضِیتُ لَكُمُ ٱلۡإِسۡلَـٰام دينا.)अर्थात: "आज हमने तुम्हारे हेतु तुम्हारे धर्म पर पूर्ण विराम लगा दिया, एवं अपनी वरदानें तुम पर पूरी कर दीं और तुम्हारे लिए धर्म के रूप में इस्लाम से प्रसन्न हो गया।"🔵 ज़िलहिज्जा के १० दिनों की श्रेष्ठता का एक साक्ष्य यह भी है कि इसमें बलिदान देने का दिन है जो सबसे बड़े हज का भी दिन है। और यही वह दिन है जिसमें बहुत सारे उपासना इकट्ठा हो जाते हैं, वो ये हैं: बलिदान देना, चक्कर लगाना, दौड़ना, बाल मुंडवाना अथवा कटवाना, कंकर मारना (रम्यि जमरात करना)' नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कथन है: " अल्लाह तआ़ला के निकट सर्वश्रेष्ठ दिन बलिदान का दिन (१० वीं ज़िलहिज्जा का दिन) है, फिर विश्राम लेने का दिन (११वीं ज़िलहिज्जा का दिन) है।" (इसे अबू दाऊद: १७६५ ने अब्दुल्लाह बिन फ़ुर्त रज़ि अल्लाहू अ़नहु की हदीस से प्रतिलिपि की है एवं अल्लामा अल्-बानी ने सहीह कहा है।) 🔷 ए मुसलमानो! इन १० दिनों में निम्नलिखित ६ पुण्य कार्यों को करना बहुत ही बहुमूल्य, महत्त्वपूर्ण एवं श्रेष्ठ है:(१) अधिक से अधिक अल्हमदुलिल्लाह, ला-इलाह-इल्लल्लाह एवं अल्लाहू-अकबर को पढ़ना, अब्दुल्लाह बिन उ़मर रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा से मरवी है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "अल्लाह के निकट इन १० दिनों की तुलना में किसी भी दिन पुण्य कार्य करना अधिक प्रिय एवं बड़ा नहीं है,इस कारणवश इन दिनों में अल्हमदुलिल्लाह, ला-इलाह-इल्लल्लाह एवं अल्लाहू-अकबर अधिकतम् पढ़ा करो।" (इसे अहमद: २/१३१ ने रिवायत किया है, एवं अल्-मुस्नद: ६१५४ के शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह हदीस सहीह है।)बुख़ारी रहिमहुल्लाह का कथन है: "इब्ने उ़मर एवं अबू हुरैरा इन १० दिनों में मंडी की ओर निकलते तो उच्च स्वर के साथ तकबीर पढ़ते, इस कारणवश लोग भी उन्हें देखकर तकबीर कहने लगते।" (इसे बुख़ारी ने किताबुल्-ई़दैन, बाबू-फ़ज़्लिल्-अ़मलि फ़ी अय्यामित्-तशरीक़ में रिवायत किया है।)तकबीर का रूप यह है: "अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला-इलाह-इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, वालिल्लाहिल हम्द।"ज्ञात हुआ के इन १० दिनों में अल्हमदुलिल्लाह, ला-इलाह-इल्लल्लाह एवं अल्लाहू-अकबर को पढ़ना वैध है। मस्जिदों, गृहों, पथों एवं हर उस स्थान पर इनको पढ़ा जा सकता है जहां अल्लाह का स्मरण करना वैध है, ताकि उपासना का प्रदर्शन एवं अल्लाह के सर्वोच्च होने का प्रचार-प्रसार हो सके। वह इस प्रकार की पुरुष इन मंत्रों का उच्च स्वर के साथ सस्वर पाठ करे एवं महिलाएं यदि पुरुषों के बीच हों तो धीमी स्वर में पढ़े।आज के युग में तकबीर की सुन्नत को त्याग दिया गया है, आप बहुत कम लोगों को तकबीर का सस्वर पाठ करते हुए सुनेंगे, इस कारणवश इस सुन्नत को जीवित करने, एवं लापरवाहों को सावधान एवं सचेत करने हेतु उच्च स्वर के साथ तकबीर का सस्वर पाठ करना चाहिए, ताकि देखा देखी लोग तकबीर पढ़ने की ओर जागरूक हों, प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से तकबीर पढ़े, एक स्वर में समग्र रूप से तकबीर पढ़ना अवैध है।(२) इन १० दिनों में जो पुण्य कार्य वैध हैं उनमें एक उपवास रखना भी है, इस कारणवश मुस्लिम दास हेतु यह बहुत ही मुस्तहब कार्य है कि वह ज़िलहिज्जा के ९ दिनों में उपवास रखे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़िलहिज्जा के ९ दिनों में उपवास रखा करते थे। हुनैदा बिन ख़ालिद अपनी पत्नी से और वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नियों से रिवायत करती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़िलहिज्जा के ९ उपवास, आ़शूरा के दिन ( १० वीं मुहर्रम को) एवं प्रत्येक महीने में तीन उपवास रखते एवं प्रत्येक महीने के प्रथम सोमवार को और उसके पश्चात वाले गुरुवार को फिर उसके पश्चात वाले गुरुवार को उपवास रखते थे। (इसे अबू दाऊद: २४३७ एवं नसई: २४१७ ने रिवायत किया है, उल्लेख किए गए शब्द नसई के हैं एवं अल्लामा अल्-बानी ने इसे सहीह कहा है।)अबू उमामा अल्-बाहिली रज़ि अल्लाहू अ़नहु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रश्न ने किया: (मुझे ऐसे कार्य का आदेश दीजिए जो मेरे हेतु लाभदायक हो)' आपने फ़रमाया: "तुम व्यवस्था पूर्वक उपवास रखो क्योंकि इसका कोई उदाहरण नहीं है।" (इसे नसई: २८४० एवं अहमद: ५/२४९ ने रिवायत किया है, उल्लेख किए गए शब्द नसई के हैं, अहमद के शब्द ये हैं: मैंने कहा: मुझे ऐसे कार्य का आदेश दीजिए जो मुझे स्वर्ग में प्रवेश करवा दे, आपने फ़रमाया: "तुम व्यवस्था पूर्वक उपवास रखो क्योंकि इसका कोई उदाहरण नहीं है।" फिर द्वितीय बार आप के निकट आया तो आपने मुझसे कहा: "व्यवस्था पूर्वक उपवास रखो।" इस हदीस को अल्लामा अल्-बानी ने सहीह कहा है एवं अल्-मुस्नद के शोधकर्ताओं ने कहा है: इसकी सनद मुस्लिम की शर्त पर सहीह है।)(३) इन १० दिनों में जो पुण्य कार्य वैध हैं उनमें अ़रफ़ा के दिन का उपवास रखना भी है, इसका साक्ष्य नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कथन है: "अ़रफ़ा के दिन का उपवास ऐसा है कि मैं अल्लाह पाक से आशा करता हूं कि एक वर्ष पूर्व एवं एक वर्ष पश्चात के पापों का कफ़्फ़ारा हो जाए।"(४) इन १० दिनों में जो पुण्य कार्य वैध हैं उनमें एक ईद की नमाज़ पढ़ना भी है, जो कि एक प्रसिद्ध बात है। (५) इन १० दिनों में जो पुण्य कार्य वैध हैं उनमें
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