من حقوق المصطفى الحذر من معصيته
ماجد بن سليمان الرسيموضوع الخطبة : من حقوق المصطفى- الحذر من معصيتهالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي حفظه الله لغة الترجمة : الهنديةالمترجم : فيض الرحمن التيمي (@Ghiras_4T)शीर्षक:मुस्त़फा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक अधिकार आपकी अवज्ञा से बचना भी है।إن الحمد لله، نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، ومن سيئات أعمالنا من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُون ) (يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا) (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا) प्रशंसाओं के पश्चात! सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वोत्तम मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है। दुष्टतम चीज़ धर्म में अविष्कारित बिदअ़त (नवाचार) हैं और प्रत्येक बिदअ़त (नवोन्मेष) गुमराही है और हर गुमराही नरक में ले जाने वाली है। ऐ मुसलमानो! अल्लाह तआ़ला से डरो उसकी आज्ञाकारीता करो उसकी अवज्ञा से दूर रहो जान लो कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक अधिकार यह भी है कि आपकी अवज्ञा से बचा जाए अल्लाह के इस कथन में आपकी अवज्ञा से बचने का निर्देश है: (النساء:14) وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُ يُدْخِلْهُ نَارًا خَالِدًا فِيهَا وَلَهُ عَذَابٌ مُهِينٌअर्थात: " जो व्यक्ति अल्लाह तआ़ला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अवज्ञा करे और उसके निर्धारित सीमाओं से आगे निकले उसे वह नरक में डाल देगा जिसमें वह सदैव रहेगा इन्हीं लोगों के लिए अपमानजनक यातना है।"अल्लाह के इस कथन में भी यही निर्देश है:وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُبِينًا (الأحزاب:36)अर्थात: " (याद रखो!) जो भी अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा वह स्पष्ट गुमराही में में पड़ेगा।"अल्लाह ने अधिक फ़रमाया:(وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا[27] يَا وَيْلَتَى لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا[28] لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءَنِي وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنْسَانِ خَذُولًا) (الفرقان: 27-29)अर्थात: " उस दिन ज़ालिम (अत्याचारी) अपने हाथ चबाएगा कहेगा: ए काश! मैंने रसूल के साथ मार्ग अपनाया होता। (२७) हाय मेरा दुर्भाग्य! काश! मैंने अनूक व्यक्ति को मित्र ना बनाया होता। (२८) उसने मुझे भटका कर अनुस्मृति से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। शैतान तो समय पर मनुष्य का साथ छोड़ ही देता है। अल्लाह के इस कथन को भी देखें:وَمَن یُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُ ٱلۡهُدَىٰ وَیَتَّبِعۡ غَیۡرَ سَبِیلِ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصۡلِهِۦ جَهَنَّمَۖ وَسَاۤءَتۡ مَصِیرًا. (النساء:115) अर्थात: " और जो व्यक्ति इसके पश्चात भी कि, मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे, जिसको उसने अपनाया होगा, और उसे नरक में झोंक देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है."अल्लाह ने अधिक फ़रमाया:فَلۡیَحۡذَرِ ٱلَّذِینَ یُخَالِفُونَ عَنۡ أَمۡرِهِۦۤ أَن تُصِیبَهُمۡ فِتۡنَةٌ أَوۡ یُصِیبَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ. (النور:63) अर्थात: " अतः उनको जो उसके आदेश की अवहेलना करते हैं डरना चाहिए कि कहीं ऐसा ना हो कि उन पर कोई आज़माइश आ पड़े अथवा उन पर कोई दुखद यातना आ जाए।"इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह अल्लाह के इस कथन: فَلۡیَحۡذَرِ ٱلَّذِینَ یُخَالِفُونَ عَنۡ أَمۡرِهِۦۤ أَن تُصِیبَهُمۡ فِتۡنَةٌ أَوۡ یُصِیبَهُمۡ عَذَابٌ أَلِیمٌ. (النور:63)का उल्लेख करते हुए लिखते हैं: "अर्थात: ( जो व्यक्ति) रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश का अवज्ञा करते हैं, आपके आदेश का मतलब आपका मार्ग है, आपका शैली, आपकी सुन्नत एवं आप की लाई हुई शरीअ़त (इस्लाम धर्म) है, समस्त कार्यों एवं कथनों को आपके कार्य एवं कथन के आधार पर ही तौला जाएगा, जो आपकी सुन्नत के अनुसार होगा उसे स्वीकार किया जाएगा और जो उसके विरुद्ध होगा उसे उसके कहने या करने वाले पर लौटा दिया जाएगा। जैसा कि सही़है़न (बुख़ारी एवं मुस्लिम) आदि में विवरित है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:अर्थात: "जिस व्यक्ति ने हमारे धर्म में किसी ऐसी नई चीज़ का अविष्कार किया जो इसमें से नहीं है तो वह अस्वीकार करने योग्य है।"अर्थात: जो लोग आंतरिक अथवा बाह्य रूप से रसूल की लाई हुई शरिअ़त (इस्लाम धर्म) का उल्लंघन करते हैं उन्हें इस बात से डरना चाहिए कि कहीं उन्हें उत्पीड़न ना आ पकड़े, अर्थात: उनके हृदयों में कुफ़्र (नास्तिकता) अथवा मुनाफ़िक़त (पाखंडी) अथवा बिदअत (नवोन्मेष) ना जन्म ले ले, अथवा उन्हें दर्दनाक यातना ना आ पकड़े, अर्थात: दुनिया में हत्या एवं लूटपाट, दंड हिरासत आदि रूप के उत्पीड़नों से जूझना ना पड़े।"मामूली तसर्रुफ़ (उलटफेर) के साथ उनका कथन समाप्त हुआ। ह़दीस में भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरोध से रोका गया है, जैसा की ह़दीस में वर्णन है:अर्थात: " जब मैं तुम्हे किसी चीज़ से रोकूं तो तुम उससे रुक जाओ और जब मैं तुम्हें किसी बात का आदेश दूं तो तुम अपनी शक्ति के अनुसार उसे पूरा करो।"1﴿इसे बुख़ारी:( ७२८८), मुस्लिम:(१३३७) ने अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है।﴾ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अवज्ञा दुनिया व आख़िरत में यातना का कारण है, जैसा कि सलमा बिन (पुत्र) अलाकू कि सत्य ह़दीस है:अर्थात:" एक व्यक्ति ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास बाएं हाथ से खाया आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: दाएं हाथ से खाओ ,वह बोला: मुझसे नहीं हो सकता। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अल्लाह करे तुझसे ना हो सके! उसने अकड़ से ऐसा किया था, वह उस हाथ को मुंह तक ना उठा सका।"2﴿इसे मुस्लिम:(२०२१)ने रिवायत किया है।﴾ सईद बिन (पुत्र) मुसैय्यिब बिन ह़ज़्न 3﴿ह़ज़्न) "ज़" के सुकून(स्थिरता) के साथ कठोरता के अर्थ में है, इसका विपरीत (आसान) अर्थात सुविधा है, ह़दीस में आया है:अर्थात: " हे अल्लाह! कोई चीज़ आसान नहीं है, मगर जिस को तू आसान कर दे, और तू जब चाहता है कठिन चीज़ को भी आसान कर देता है।" इसे इब्न-ए-हिब्बान:९७४ ने अपने सही में रिवायत किया है, और अल्लामा अल्बानी ने इसको अल-सिलसिलह अल-सहीहह में २८८६ के अंतर्गत विवरण किया है।﴾ अपने पिता से रिवायत करते हैं कि उनके दादा ह़ज़्न पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में उपस्थित हुए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? उन्होंने कहा कि मेरा नाम "ह़ज़्न" है, पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम आसान हो, उन्होंने कहा कि मैं अपने पिता का रखा हुआ नाम नहीं बदल लूंगा। सईद बिन (पुत्र) मुसैय्यिब ने कहा कि उसके बाद अब तक हमारे परिवार में कठोरता एवं मुसीबत ही रही।"4﴿इसे बुख़ारी ६१९० ने वर्णन किया है।﴾ अबू हु़मैद अल-साइदी रज़ि अल्लाहु अन्हु वर्णन करते हैं कि हमने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ तबूक के युद्ध में भाग लिया, जब हम तबूक के स्थान पर पहुंचे तो आपने फ़रमाया: अर्थात: " आज रात बहुत तेज़ आंधी चलेगी, इसलिए कोई व्यक्ति खड़ा ना रहे, एवं जिसके पास ऊँट हों वह उसे बांध दे, इसलिए हमने ऊँट बांध लिए, और आंधी बहुत तेज़ आई, एक व्यक्ति खड़ा हो गया था तो हवा ने उसे "तै़ पहाङ" पर जा फेंका।"﴿इसे बुख़ारी:(१४८२), एवं मुस्लिम: (१३९२) ने वर्णन किया है।﴾ अर्थात: " अब्दुल्लाह बिन (पुत्र) अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने उल्लेख किया है कि पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक आ़राबी (ग्रामीण) कि बीमार पुर्सी के लिए गए,पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब भी किसी रोगी की बीमार पुर्सी के लिए जाते तो फ़रमाते: कोई बात नहीं, इनशाअल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा) तो यह बुख़ार पापों को धो देगा। पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस देहाती से भी यही कहा: कोई बात नहीं, इनशाअल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा) तो यह बुख़ार पापों को धो देगा। उसने कहा: आप कहते हैं, पापों को धोने वाला है बिल्कुल नहीं यह तो अति तीव्र रूप का बुख़ार है अथवा (कथावाचक ने) "तसूर" कहा (दोनों का अर्थ एक ही है।) कि बुख़ार एक अति बूढ़े व्यक्ति पर जोश मार रहा है जो क़ब्र तक पहुंचाए बिना नहीं छोड़ेगा। पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अच्छा तो फिर ऐसा ही होगा।"6﴿इसे बुख़ारी: (३६१६ )ने वर्णन किया है।﴾ ए मुसलमानो! पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अवज्ञा चार प्रकार के हैं:(१) सग़ीरा (छोटा) (२) कबीरा (बड़ा) (३) बिदअत (नवाचार) (४) कुफ़्र (नास्तिकता) ♦कबीरा का अर्थ: वह पाप है जिसके करने वाले के प्रति लानत, (अभिशाप) अथवा अल्लाह का क्रोध, अथवा नरक की चेतावनी, एवं दंड का उल्लेख है। कबीरा (बड़े पाप) का अपराधी आख़िरत में अल्लाह की मशीय्यत (चाहत) के अंतर्गत होगा। यदि अल्लाह चाहेगा तो उसे यातना देगा एवं चाहेगा तो छमा प्रदान करेगा। इस लिए कबाएर (बड़े पापों से बचना अति आवश्यक है। अल्लाह का कथन है: إِنْ تَجْتَنِبُوا كَبَائِرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَنُدْخِلْكُمْ مُدْخَلًا كَرِيمًا (النساء:31)अर्थात: " यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहे जिन से तुम्हें रोका जा रहा है तो हम तुम्हारे बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएंगे। "चोरी, शराब पीना, सूदख़ोरी ,बलात्कार ,संबंध तोड़ना एवं महिलाओं की बेपर्दगी जैसे कार्य बड़े पापों में शामिल हैं। इन समस्त कार्यों के प्रति सांसारिक अथवा उख़रवि दंड का उल्लेख आया है। ♦ सग़ीरा (छोटे पाप) का मतलब हर वह पाप है जिस के प्रति ना तो सांसारिक दंड का उल्लेख है और ना ही आख़िरत में कोई विशेष दंड का उल्लेख आया है। 7﴿देखें: मजमूअ-तुल-फ़तावा इब्न-ए-तैमिया, ११/६५०६५१, इब्न-ए-तैमिया इस कथन को इब्न-ए-अब्बास, अबू ओबैद अल-क़ासिम बिन (पुत्र) सलाम एवं इमाम अह़मद बिन हंबल आदि की ओर संबंधित किया है, और कहा है कि यह सर्वोत्तम कथन है।﴾ किंतु इस बात को समझना भी अवश्य है कि जब सग़ीरा (छोटे पापों) को कोई व्यक्ति लगातार करे और उस से तौबा ना करे तो वह कबीरा (बड़ा पाप) में परिवर्तन हो जाता है। इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्हु से वार्णित है कि पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: अर्थात:" छोटे-छोटे पापों से बचो क्योंकि वह जब मनुष्य के अंदर जमा हो जाते हैं तो उसे नष्ट कर देते हैं। पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन छोटे-छोटे पापों का उदाहरण उस समुदाय से दिया जो किसी रेगिस्तान में डेरा डाले और जब उनके खाना बनाने का समय हो जाए तो (उनमें) से कोई व्यक्ति (लकड़ी की खोज) में निकल पड़े, जब लकड़ी ले आए और दूसरा व्यक्ति भी लकड़ी लेकर आए यहां तक कि बहुत सी लकड़ियां जमा हो जाएं उसके पश्चात वह उन लकड़ियों को
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