من حقوق المصطفى طاعته
ماجد بن سليمان الرسيموضوع الخطبة : من حقوق المصطفى : طاعتهالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي حفظه الله لغة الترجمة : الهنديةالمترجم : فيض الرحمن التيمي(@Ghiras_4T)मुस्त़फा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का एक अधिकार आज्ञाकारी ता भी है।प्रथम उपदेश:إن الحمد لله، نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، ومن سيئات أعمالنا من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله. (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ) (يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا) (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا) प्रशंसाआें के पश्चात ! सर्वोत्तम बात अल्लाह की बात है और सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का मार्ग है,दुष्टतम चीज़ धर्म में अविष्कारित बिदअतें (नवाचार) हैं,और धर्म में अविष्कारित प्रत्येक चीज़ बिदअत है, प्रत्येक बिदअत गुमराही है और प्रत्येक गुमराही नरक में ले जाने वाली हैं। ए मुसलमानो! अल्लाह तआला का भय रखो ,जान लो कि इस उम्मत को अल्लाह ने यह सम्मान प्रदान किया है कि सर्वोत्तम मख़लूक (जीव) को उनका नबी एवं पैग़ंबर बनाया जोकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम है। वह निःसंदेह नैतिक एवं व्यवहार, ज्ञान एवं कार्य के विषय में सर्वोत्तम थे अल्लाह तआला ने आप के साथ उत्तम व्यवहार का आदेश दिया है :عن تميم الداري:[إنَّ الدِّينَ النَّصيحةُ، إنَّ الدِّينَ النَّصيحةُ، إنَّ الدِّينَ النَّصيحةُ. قالوا: لمَن يا رسولَ اللهِ؟ قال: للهِ، وكتابِه، ورسولِه، وأئمةِ المؤمنين، وعامَّتِهم، وأئمةِ المسلمينَ وعامَّتِهم] مسلم): ५५( अर्थात: "तमीम दारी रज़ि अल्लाहू अन्हू से मर्वी है कि पैग़ंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: धर्म शुभ चिंता एवं सुंदर व्यवहार का नाम है, (सहाबा) ने पूछा किसके लिए? आपने फ़रमाया: अल्लाह, उसकी पुस्तक उसके पैग़ंबर, मुसलमानों के इमामों, (धार्मिक मार्गदर्शक) एवं उनके अनुयायियों के लिए."﴿1- इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम(५५ ) ने रिवायत किया है।﴾ पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के प्रति शुभ चिंतन एवं सुंदर व्यवहार के अर्थ क्या हैं? इसको स्पष्ट करते हुए नौव्वी रहमतुल्लाहि अलैहि मैं एक विद्वान के कथन का उल्लेख किया है: पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के शुभ चिंतन एवं उत्तम व्यवहार का अर्थ यह है कि आपकी रिसालत व पैग़ंबरी ( संदेशवाहक एवं प्रवर्तन) की पुष्टि की जाए, आप की शिक्षाओं पर ईमान लाया जाए, आपने जिन बातों का आदेश दिया है और जिन चीज़ों से रोका है उन सब में आपकी आज्ञा मानी जाए, आपके जीवन में और आप की मृत्यु के पश्चात भी आपकी सहायता की जाए, आपके शत्रुओं से शत्रुता रखी जाए, और आपके मित्र से मित्रता रखी जाए, आपके अधिकारों का सम्मान किया जाए, आप की दावत (शिक्षा) का प्रचार एवं प्रसार किया जाए, आपकी शरीअत (धर्म एवं धार्मिक शिक्षा) का प्रसारण किया जाए शरीअत (धर्म एवं धार्मिक शिक्षा) के प्रति प्रसारित निराधार तोहमत (बदनामी) का खंडन किया जाए, शरई( इस्लामी)शिक्षाओं का प्रसारण किया जाए, उसके मूल अर्थ से अवगत हुआ जाए, इसकी ओर लोगों को बुलाया जाए, इसकी शिक्षाओं के सीखने एवं सिखाने में सौम्यता एवं कृपा से काम लिया जाए, इसके स्थान एवं प्रतिष्ठा का पालन-पोषण किया जाए, इसको सीखते समय शिष्टाचार एवं आदर को अपनाया जाए, इस विषय में ज्ञान के बिना कोई बात ना कही जाए, शरई उलूम ( इस्लामी शिक्षाओं) के विशेषज्ञों का मान-सम्मान किया जाए, क्योंकि वे इन शिक्षाओं से निस्बत (संबंध) रखते हैं,आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नैतिकताओं एवं शिष्टाचारों को अपने जीवन में लागू किया जाए, आपके अहल-ए-बैत (परिवार) एवं सहाबा (साथी गण) से प्रेम रखा जाए, आप की सुन्नत (पैग़ंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के कार्य एवं कथन) में बिदअत (नवोन्मेष) को जन्म देने वाले एवं आदरणीय सहाबा (साथी गण) के सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर उंगली उठाने वाले अभिमानी उसे दूर रहा जाए। ﴿2-शरह अल-नौव्वी अला सही मुस्लिम﴾समाप्त।ऐ मुसलमानो! पैग़ंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारी करना, आपके साथ उत्तम व्यवहार एवं शुभ चिंतन का एक महत्वपूर्ण रूप है,जैसा कि विद्वानों के उपयुक्त कथनों में इसका उल्लेख मिलता है,और ऐसा क्यों ना हो जबकि अल्लाह तआला ने अपने आज्ञाकारीत के साथ पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारीता का उल्लेख किया है और अपनी मख़लूक़ (जीव/ मानवजाति) को यह शिक्षा दिया है कि जिसने रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का आज्ञा माना, उसने अल्लाह का आज्ञा माना,अल्लाह तआला का कथन है:مَّن یُطِعِ ٱلرَّسُولَ فَقَدۡ أَطَاعَ ٱللَّهَۖ وَمَن تَوَلَّىٰ فَمَاۤ أَرۡسَلۡنَـٰكَ عَلَیۡهِمۡ حَفِیظࣰا. (النساء:80 )अर्थात: " जिसने रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारीता की उसने अल्लाह का आज्ञा माना, और जिसने मुंह मोड़ लिया तो हमने आपको उन पर अभिभावक बनाकर नहीं भेजा है।"इसका कारण यह है कि पैग़ंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम इस धर्म को अल्लाह तआला के पास से लेकर आए, वह अल्लाह तआला के संदेशवाहक एवं उपदेशक थे, आपने अपनी ओरे से कोई चीज़ नहीं बताई, अल्लाह तआला ने अपने पैग़ंबर से कहा: قُلۡ إِنَّمَاۤ أَنَا۠ بَشَرࣱ مِّثۡلُكُمۡ یُوحَىٰۤ إِلَيَّ. (الكهف110:) अर्थात: " आप कह दीजिए कि मैं तुम जैसा ही एक मनुष्य हूं, मेरी ओर वह्य (आकाशवाणी प्रकाशन) की जाती है।"अल्लाह तआला ने पवित्र क़ुरआन में ३३ स्थानों पर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारीता का आदेश दिया है। ﴿3-शैख़ु-उल-इस्लाम इब्ने तैमिया रहमतुल्लाही अलैहि फ़रमाते हैं : अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम मैं ३० से अधिक स्थानों पर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारीता का उल्लेख किया है, अपने विरोध के साथ रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के विरोध का उल्लेख किया है, इसके अतिरिक्त अपने नाम के साथ आपके नाम का उल्लेख किया है, इसीलिए अल्लाह तआला के उल्लेख के साथ आप का भी उल्लेख किया जाता है। ( मजमूअ-तुल-फ़तावा(१९/२०३) आजुर्री ने अपनी पुस्तक अल-शरिआ पृष्ठ: ४८ में इसी बात का उल्लेख किया है।﴾ उदाहरण स्वरूप अल्लाह ने फ़रमाया: وَمَاۤ ءَاتَىٰكُمُ ٱلرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَىٰكُمۡ عَنۡهُ فَٱنتَهُوا۟ۚ. (الحشر 07:) अर्थात: " तुम्हें जो कुछ रसूल दें उसे ले लो और जिस से रोकें रुक जाओ!"इसके अतिरिक्त अल्लाह ने फ़रमाया:فَإِن تَوَلَّوۡا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا یُحِبُّ ٱلۡكَـٰفِرِینَ. (آل عمران:32) अर्थात: " यदि वे मुंह मोड़ लें तो नि: संदेह अल्लाह तआला काफ़िरों (अविश्वासकार्यों) को पसंद नहीं करता." अल्लाह ताला का कथन है:یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوۡا۟ عَنۡهُ وَأَنتُمۡ تَسۡمَعُونَ. (الأنفال20:) अर्थात: " ईमान वालो (विश्वासयो)! अल्लाह एवं उसके रसूल की बात मानो और उसकी बात मानने से मुंह मत मोड़ो सुनते जानते हुए."अल्लाह ताला अधिक फ़रमाता है:یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَأُو۟لِی ٱلۡأَمۡرِ مِنكُمۡۖ. (النساء59: )अर्थात:" ईमान वालो (विश्वासयो)! अल्लाह, रसूल एवं अपने शासकों की आज्ञाकारिता करो"पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस (आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कार्य एवं कथन) में भी आज्ञाकारीता के प्रति प्रोत्साहन दिया गया है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मार्गों पर चलने, आपकी सुन्नत (कार्य एवं कथन) का पालन करने, और आपने जिन चीज़ों का आदेश दिया है और जिन चीज़ों से रोका है उनके आदर के प्रति प्रोत्सािहत किया गया है। इस विषय में अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू अन्हू से मर्वी है कि रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: " كُلُّ أُمَّتِي يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ إِلَّا مَنْ أَبَى ". قَالُوا : يَا رَسُولَ اللَّهِ، وَمَنْ يَأْبَى ؟ قَالَ : " مَنْ أَطَاعَنِي دَخَلَ الْجَنَّةَ، وَمَنْ عَصَانِي فَقَدْ أَبَى ". (البخاري7280:) अर्थात: " समस्त उम्मत स्वर्ग में जाएगी सिवाय उनके जिन्होंने अस्वीकार किया। सहाबा (साथी गण) ने प्रश्न किया: ए अल्लाह के रसूल! कौन अस्वीकार करेगा? आपने फ़रमाया: जिसने मेरी आज्ञा मानी वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा और जो अवज्ञा किया उसने अस्वीकारा।"﴿4-इसे बुखा़री (7280) ने रिवायत किया है। ﴾हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से मर्वी है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: " مَنْ أَطَاعَنِي فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ، وَمَنْ عَصَانِي فَقَدْ عَصَى اللَّهَ، وَمَنْ أَطَاعَ أَمِيرِي فَقَدْ أَطَاعَنِي، وَمَنْ عَصَى أَمِيرِي فَقَدْ عَصَانِي ". (البخاري:7137، مسلم1835:) अर्थात: "जिसने मेरी आज्ञा मानी उसने अल्लाह की आज्ञा मानी और उसने मेरी अवज्ञा कि उसने अल्लाह की अवज्ञा की।"﴿5- इसे बुखा़री(7137) और मुस्लिम(1835) ने रिवायत किया है।﴾ अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू अन्हु से मर्वी है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:فَإِذَا نَهَيْتُكُمْ عَنْ شَيْءٍ فَاجْتَنِبُوهُ، وَإِذَا أَمَرْتُكُمْ بِأَمْرٍ فَأْتُوا مِنْهُ ما استطعتم. (البخاري:7288، مسلم1337:) अर्थात: " मैं तुम्हें किसी चीज़ से रोकूं, तो तुम भी उस से बचो और जब मैं तुमको किसी बात का आदेश दूं तो तुम उसको पूरा करो जितना तुम में शक्ति हो।"﴿6- इसे बुखा़री(7288) और मुस्लिम(1337) ने रिवायत किया है। ﴾अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:والذي نفسي بيده لتدخلن الجنة كلكم إلا من أبى وشرد على الله كشراد البعير قالوا يا رسول الله ومن يأبى أن يدخل. (صحيح ابن حبان :197-1/196 )अर्थात: " उस ज़ात का शपथ जिसके हाथ में मेरा प्राण है! तुम समस्त लोग स्वर्ग में प्रवेश करोगे सिवाय उनके जो अस्वीकार करते हैं ऊंट के बिदकने ﴿7-अर्थात: इसी प्रकार बिदके जिस प्रकार ऊंट अपने मालिक से बिदक कर भाग जाता है, बिदकने का मतलब अल्लाह की आज्ञाकारिता से मुंह मोड़ना है। ﴾के समान (अल्लाह एवं उसके रसूल की) आज्ञाकारीता से बग़ावत कर जाते हैं। सहाबा ने पूछा भला स्वर्ग में प्रवेश करने को कौन अस्वीकारता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: जिसने मेरी आज्ञा मानी वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा एवं जिसने मेरी अवज्ञा की उसने गोया स्वर्ग में प्रवेश होने से अस्वीकारा।" ﴿8-इसे इब्न-ए-हिब्बान १/१९६-१९७ ने (१७) नम्बर के अंतर्गत रिवायत किया है, इसके रोवात (कथावाचक) वही है जो मुस्लिम के रोवात हैं, इस हदीस के शवाहिद (साक्षी) भी हैं जिनसे शक्ति मिलती है, उदाहरण स्वरूप अबू हुरैरा की उपर्युक्त हदीस और वह हदीस जिसे अह़मद (२/३६१) आदि ने वर्णन किया है, जिसके सनद (कथावाचकों की श्रृंखला) शैख़ैन (बुख़ारी व मुस्लिम) की शर्त पर है जैसा कि हा़फ़िज़ इब्ने ह़जर ने फ़तहु-ल-बारी में ह़दीस नंबर (७२८०) के अंतर्गत उल्लेख किया है उपर्युक्त ह़दीस पर शैख़ शोऐब के ह़ाशिया से संक्षिप्त के साथ व्युत्पन्न है।﴾अल्लाह ताआला मेरे एवं आपके लिए क़ुरआन करीम को बा बरकत(सौभाग्यशाली)बनाए मुझे और आप सबको आयतों एवं हिकमतों (बुद्धिमत्ताऔं) पर आधारित परामर्श से लाभ पहुंचाए, मैं अपनी यह बात करते हुए हर प्रकार के पापों से अल्लाह के समक्ष क्षमा चाहता हूं।आप भी उसके समक्ष अपने पापों की क्षमा चाहें। नि: संदेह वह ताैबा स्वीकार करने वाला एवं अति क्षमा प्रदान करने वाला वाला है। द्वितीय उपदेश:الحمد لله وكفى وسلام على عباده الذين اصطفى، أما بعد! ऐ मुसलमानो! पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आज्ञाकारीता में यह भी शामिल है कि विरोध के समय आपकी और लौटा जाए।अल्लाह ताआला का कथन है: یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ أَطِیعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِیعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَأُو۟لِی ٱلۡأَمۡرِ مِنكُمۡۖ فَإِن تَنَـٰزَعۡتُمۡ فِی شَیۡءࣲ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمۡ تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡیَوۡمِ ٱلۡـَٔاخِرِۚ ذَ ٰلِكَ خَیۡرࣱ وَأَحۡسَنُ تَأۡوِیلًا. (النساء59:) अर्थात: "मोमिनो! अल्लाह एवं उसके पैगं
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