إبراهيم

تفسير سورة إبراهيم

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الر ۚ كِتَابٌ أَنْزَلْنَاهُ إِلَيْكَ لِتُخْرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِ رَبِّهِمْ إِلَىٰ صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ﴾

अलिफ़, लाम, रा। ये (क़ुर्आन) एक पुस्तक है, जिसे हमने आपकी ओर अवतरित किया है, ताकि आप लोगों को अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लायें, उनके पालनहार की अनुमति से, उसकी राह की ओर, जो बड़ा प्रबल सराहा हुआ है।

﴿اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَوَيْلٌ لِلْكَافِرِينَ مِنْ عَذَابٍ شَدِيدٍ﴾

अल्लाह की ओर। जिसके अधिकार में आकाश और धरती का सब कुछ है तथा काफ़िरों के लिए कड़ी यातना के कारण विनाश है।

﴿الَّذِينَ يَسْتَحِبُّونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا عَلَى الْآخِرَةِ وَيَصُدُّونَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَيَبْغُونَهَا عِوَجًا ۚ أُولَٰئِكَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ﴾

जो सांसारिक जीवन को परलोक पर प्रधानता देते हैं, अल्लाह की डगर ( इस्लाम) से रोकते हैं और उसे कुटिल बनाना चाहते हैं, वही कुपथ में दूर निकल गये हैं।

﴿وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ رَسُولٍ إِلَّا بِلِسَانِ قَوْمِهِ لِيُبَيِّنَ لَهُمْ ۖ فَيُضِلُّ اللَّهُ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ﴾

और हमने किसी (भी) रसूल को उसकी जाति की भाषा ही में भेजा, ताकि वह उनके लिए बात उजागर कर दे। फिर अल्लाह जिसे चाहता है, कुपथ करता है और जिसे चाहता है, सुपथ दर्शा देता है और वही प्रभुत्वशाली और ह़िक्मत वाला है।

﴿وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ بِآيَاتِنَا أَنْ أَخْرِجْ قَوْمَكَ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَذَكِّرْهُمْ بِأَيَّامِ اللَّهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ﴾

और हमने मूसा को अपनी आयतों (चमत्कारों) के साथ भेजा, ताकि अपनी जाति को अन्धेरों से निकालकर प्रकाश की ओर लायें और उन्हें अल्लाह के दिनों (पुरस्कार और यातना) का स्मरण करायें। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, प्रत्येक अति सहनशील, कृतज्ञ के लिए।

﴿وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِ اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ أَنْجَاكُمْ مِنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَسُومُونَكُمْ سُوءَ الْعَذَابِ وَيُذَبِّحُونَ أَبْنَاءَكُمْ وَيَسْتَحْيُونَ نِسَاءَكُمْ ۚ وَفِي ذَٰلِكُمْ بَلَاءٌ مِنْ رَبِّكُمْ عَظِيمٌ﴾

तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को याद करो, जब उसने तुम्हें फ़िरऔनियों से मुक्त किया, जो तुम्हें घोर यातना दे रहे थे, तुम्हारे पुत्रों को वध कर रहे थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते[1] थे और इसमें तुम्हारे परलनहार की ओर से एक महान परीक्षा थी।

﴿وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّكُمْ لَئِنْ شَكَرْتُمْ لَأَزِيدَنَّكُمْ ۖ وَلَئِنْ كَفَرْتُمْ إِنَّ عَذَابِي لَشَدِيدٌ﴾

तथा (याद करो) जब तुम्हारे पालनहार ने घोषणा कर दी कि यदि तुम कृतज्ञ बनोगे, तो तुम्हें और अधिक दूँगा तथा यदि अकृतज्ञ रहोगे, तो वास्तव में मेरी यातना बहुत कड़ी है।

﴿وَقَالَ مُوسَىٰ إِنْ تَكْفُرُوا أَنْتُمْ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا فَإِنَّ اللَّهَ لَغَنِيٌّ حَمِيدٌ﴾

और मूसा ने कहाः यदि तुम और सभी लोग जो धरती में हैं, कुफ़्र करें, तो भी अल्लाह निरीह तथा[1] सराहा हुआ है।

﴿أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَأُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ ۛ وَالَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ ۛ لَا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا اللَّهُ ۚ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَرَدُّوا أَيْدِيَهُمْ فِي أَفْوَاهِهِمْ وَقَالُوا إِنَّا كَفَرْنَا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ وَإِنَّا لَفِي شَكٍّ مِمَّا تَدْعُونَنَا إِلَيْهِ مُرِيبٍ﴾

क्या तुम्हारे पास उनका समाचार नहीं आया, जो तुमसे पहले थे; नूह़, आद और समूद की जाति का और जो उनके पश्चात् हुए, जिन्हें अल्लाह ही जानता है? उनके पास उनके रसूल प्रत्यक्ष प्रमाण लाये, तो उन्होंने अपने हाथ अपने मुखों में दे[1] लिए और कह दिया कि हम उस संदेश को नहीं मानते, जिसके साथ तुम भेजे गये हो और वास्तव में, उसके बारे में संदेह में हैं, जिसकी ओर हमें बुला रहे हो, (तथा) द्विधा में हैं।

﴿۞ قَالَتْ رُسُلُهُمْ أَفِي اللَّهِ شَكٌّ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ يَدْعُوكُمْ لِيَغْفِرَ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرَكُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ قَالُوا إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا تُرِيدُونَ أَنْ تَصُدُّونَا عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آبَاؤُنَا فَأْتُونَا بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ﴾

उनके रसूलों ने कहाः क्या उस अल्लाह के बारे में संदेह है, जो आकाशों तथा धरती का रचयिता है। वह तुम्हें बुला[1] रहा है, ताकि तुम्हारे पाप क्षमा कर दे और तुम्हें एक निर्धारित[2] अवधि तक अवसर दे। उन्होंने कहाः तो तुम हमारे ही जैसे एक मानव पुरुष हो, तुम चाहते हो कि हमें उससे रोक दो, जिसकी पूजा हमारे बाप-दादा कर रहे थे। तुम हमारे पास कोई प्रत्यक्ष प्रमान लाओ।

﴿قَالَتْ لَهُمْ رُسُلُهُمْ إِنْ نَحْنُ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يَمُنُّ عَلَىٰ مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ ۖ وَمَا كَانَ لَنَا أَنْ نَأْتِيَكُمْ بِسُلْطَانٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ﴾

उनसे उनके रसूलों ने कहाः हम तुम्हारे जैसे मानव पुरुष ही हैं, परन्तु अल्लाह अपने भक्तों में से जिसपर चाहे, उपकार करता है और हमारे बस में नहीं कि अल्लाह की अनुमति के बिना कोई प्रमाण ले आयें और अल्लाह हीपर ईमान वालों को भरोसा करना चाहिए।

﴿وَمَا لَنَا أَلَّا نَتَوَكَّلَ عَلَى اللَّهِ وَقَدْ هَدَانَا سُبُلَنَا ۚ وَلَنَصْبِرَنَّ عَلَىٰ مَا آذَيْتُمُونَا ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ﴾

और क्या कारण है कि हम अल्लाह पर भरोसा न करें, जबकि उसने हमें हमारी राहें दर्शा दी हैं? और हम अवश्य उस दुःख को सहन करेंगे, जो तुम हमें दोगे और अल्लाह हीपर भरोसा करने वालों को निर्भर रहना चाहिए।

﴿وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِرُسُلِهِمْ لَنُخْرِجَنَّكُمْ مِنْ أَرْضِنَا أَوْ لَتَعُودُنَّ فِي مِلَّتِنَا ۖ فَأَوْحَىٰ إِلَيْهِمْ رَبُّهُمْ لَنُهْلِكَنَّ الظَّالِمِينَ﴾

और काफ़िरों ने अपने रसूलों से कहाः हम अवश्य तुम्हें अपने देश से निकाल देंगे अथवा तुम्हें हमारे पंथ में आना होगा। तो उनके पालनहार ने उनकी ओर वह़्यी की कि हम अवश्य अत्याचारियों को विनाश कर देंगे।

﴿وَلَنُسْكِنَنَّكُمُ الْأَرْضَ مِنْ بَعْدِهِمْ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَافَ مَقَامِي وَخَافَ وَعِيدِ﴾

और तुम्हें उनके पश्चात् धरती में बसा देंगे, ये उसके लिए है, जो मेरे महिमा से खड़े[1] होने से डरा तथा मेरी चेतावनी से डरा।

﴿وَاسْتَفْتَحُوا وَخَابَ كُلُّ جَبَّارٍ عَنِيدٍ﴾

और उन (रसूलों) ने विजय की प्रार्थना की, तो सभी उद्दंड विरोधी असफल हो गये।

﴿مِنْ وَرَائِهِ جَهَنَّمُ وَيُسْقَىٰ مِنْ مَاءٍ صَدِيدٍ﴾

उसके आगे नरक है और उसे पीप का पानी पिलाया जायेगा।

﴿يَتَجَرَّعُهُ وَلَا يَكَادُ يُسِيغُهُ وَيَأْتِيهِ الْمَوْتُ مِنْ كُلِّ مَكَانٍ وَمَا هُوَ بِمَيِّتٍ ۖ وَمِنْ وَرَائِهِ عَذَابٌ غَلِيظٌ﴾

वह उसे थोड़ा-थोड़ा गले से उतारेगा, मगर उतार नहीं पायेगा और उसके पास प्रत्येक स्थान से मौत आयेगी जबकि वह मरेगा नहीं और उसके आगे भीषण यातना होगी।

﴿مَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ ۖ أَعْمَالُهُمْ كَرَمَادٍ اشْتَدَّتْ بِهِ الرِّيحُ فِي يَوْمٍ عَاصِفٍ ۖ لَا يَقْدِرُونَ مِمَّا كَسَبُوا عَلَىٰ شَيْءٍ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الضَّلَالُ الْبَعِيدُ﴾

जिन लोगों ने अपने पालनहार के साथ कुफ़्र किया, उनके कर्म उस राख के समान हैं, जिसे आँधी के दिन की प्रचण्ड वायु ने उड़ा दिया हो। ये लोग अपने किये में से कुछ नहीं पा सकेंगे, यही (सत्य से) दूर का कुपथ है।

﴿أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۚ إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ﴾

क्या तूने नहीं देखा कि अल्लाह ही ने आकाशों तथा धरती की रचना सत्य के साथ की है, यदि वह चाहे, तो तुम्हें ले जाये और नई उत्पत्ति ले आये?

﴿وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ﴾

और वह अल्लाह पर कठिन नहीं है।

﴿وَبَرَزُوا لِلَّهِ جَمِيعًا فَقَالَ الضُّعَفَاءُ لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ أَنْتُمْ مُغْنُونَ عَنَّا مِنْ عَذَابِ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ ۚ قَالُوا لَوْ هَدَانَا اللَّهُ لَهَدَيْنَاكُمْ ۖ سَوَاءٌ عَلَيْنَا أَجَزِعْنَا أَمْ صَبَرْنَا مَا لَنَا مِنْ مَحِيصٍ﴾

और सब अल्लाह के सामने खुलकर[1] आ जायेंगे, तो निर्बल लोग उनसे कहेंगे, जो बड़े बन रहे थे कि हम तुम्हारे अनुयायी थे, तो क्या तुम अल्लाह की यातना से बचाने के लिए हमारे कुछ काम आ सकोगे? वे कहेंगेः यदि अल्लाह ने हमें मार्गदर्शन दिया होता, तो हम अवश्य तुम्हें मार्गदर्शन दिखा देते। अब तो समान है, चाहे हम अधीर हों या धैर्य से काम लें, हमारे बचने का कोई उपाय नहीं है।

﴿وَقَالَ الشَّيْطَانُ لَمَّا قُضِيَ الْأَمْرُ إِنَّ اللَّهَ وَعَدَكُمْ وَعْدَ الْحَقِّ وَوَعَدْتُكُمْ فَأَخْلَفْتُكُمْ ۖ وَمَا كَانَ لِيَ عَلَيْكُمْ مِنْ سُلْطَانٍ إِلَّا أَنْ دَعَوْتُكُمْ فَاسْتَجَبْتُمْ لِي ۖ فَلَا تَلُومُونِي وَلُومُوا أَنْفُسَكُمْ ۖ مَا أَنَا بِمُصْرِخِكُمْ وَمَا أَنْتُمْ بِمُصْرِخِيَّ ۖ إِنِّي كَفَرْتُ بِمَا أَشْرَكْتُمُونِ مِنْ قَبْلُ ۗ إِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾

और शैतान कहेगा, जब निर्णय कर दिया[1] जायेगाः वास्तव में, अल्लाह ने तुम्हें सत्य वचन दिया था और मैंने तुम्हें वचन दिया, तो अपना वचन भंग कर दिया और मेरा तुमपर कोई दबाव नहीं था, परन्तु ये कि मैंने तुम्हें (अपनी ओर) बुलाया और तुमने मेरी बात स्वीकार कर ली। अतः मेरी निन्दा न करो, स्वयं अपनी निंदा करो, न मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ और न तुम मेरी सहायता कर सकते हो। वास्तव में, मैंने उसे स्वीकार कर लिया, जो इससे पहले[2] तुमने मुझे अल्लाह का साझी बनाया था। निःसंदेह अत्याचारियों के लिए दुःखदायी यातना है।

﴿وَأُدْخِلَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ ۖ تَحِيَّتُهُمْ فِيهَا سَلَامٌ﴾

और जो ईमान लाये और सदाचार करते रहे, उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दिया जायेगा, जिनमें नहरें बहती होंगी। वे अपने पालनहार की अनुमति से उसमें सदा रहने वाले होंगे और उसमें उनका स्वागत ये होगाः तुमपर शान्ति हो।

﴿أَلَمْ تَرَ كَيْفَ ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا كَلِمَةً طَيِّبَةً كَشَجَرَةٍ طَيِّبَةٍ أَصْلُهَا ثَابِتٌ وَفَرْعُهَا فِي السَّمَاءِ﴾

(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह ने कलिमा तय्येबा[1]( पवित्र शब्द) का उदाहरण एक पवित्र वृक्ष से दिया है, जिसकी जड़ (भूमि में) सुदृढ़ स्थित है और उसकी शाखा आकाश में है?

﴿تُؤْتِي أُكُلَهَا كُلَّ حِينٍ بِإِذْنِ رَبِّهَا ۗ وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ﴾

वह अपने पालनहार की अनुमति से प्रत्येक समय फल दे रहा है और अल्लाह लोगों को उदाहरण दे रहा है, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।

﴿وَمَثَلُ كَلِمَةٍ خَبِيثَةٍ كَشَجَرَةٍ خَبِيثَةٍ اجْتُثَّتْ مِنْ فَوْقِ الْأَرْضِ مَا لَهَا مِنْ قَرَارٍ﴾

और बुरी[1] बात का उदाहरण एक बुरे वृक्ष जैसा है, जिसे धरती के ऊपर से उखाड़ दिया गया हो, जिसके लिए कोई स्थिरता नहीं है।

﴿يُثَبِّتُ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ ۖ وَيُضِلُّ اللَّهُ الظَّالِمِينَ ۚ وَيَفْعَلُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ﴾

अल्लाह ईमान वालों को स्थिर[1] कथन के सहारे लोक तथा परलोक में स्थिरता प्रदान करता है तथा अत्याचारियों को कुपथ कर देता है और अल्लाह जो चाहता है, करता है।

﴿۞ أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ بَدَّلُوا نِعْمَتَ اللَّهِ كُفْرًا وَأَحَلُّوا قَوْمَهُمْ دَارَ الْبَوَارِ﴾

क्या आपने उन्हें[1] नहीं देखा, जिन्होंने अल्लाह के अनुग्रह को कुफ़्र से बदल दिया और अपनी जाति को विनाश के घर में उतार दिया।

﴿جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا ۖ وَبِئْسَ الْقَرَارُ﴾

(अर्थात) नरक में, जिसमें वे झोंके जायेंगे और वह रहने का बुरा स्थान है।

﴿وَجَعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا لِيُضِلُّوا عَنْ سَبِيلِهِ ۗ قُلْ تَمَتَّعُوا فَإِنَّ مَصِيرَكُمْ إِلَى النَّارِ﴾

और उन्होंने अल्लाह के साझी बना लिए, ताकि उसकी राह (सत्धर्म) से कुपथ कर दें। आप कह दें कि तनिक आनन्द ले लो, फिर तुम्हें नरक की ओर ही जाना है।

﴿قُلْ لِعِبَادِيَ الَّذِينَ آمَنُوا يُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُنْفِقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا بَيْعٌ فِيهِ وَلَا خِلَالٌ﴾

(हे नबी!) मेरे उन भक्तों से कह दो, जो ईमान लाये हैं कि नमाज़ की स्थापना करें और उसमें से, जो हमने प्रदान किया है, छुपे और खुले तरीक़े से दान करें, उस दिन के आने से पहले, जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मैत्री।

﴿اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ ۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ الْفُلْكَ لِتَجْرِيَ فِي الْبَحْرِ بِأَمْرِهِ ۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ الْأَنْهَارَ﴾

और अल्लाह वही है, जिसने तुम्हारे लिए आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति की और आकाश से जल बरसाया, फिर उससे तुम्हारी जीविका के लिए अनेक प्रकार के फल निकाले और नौका को तुम्हारे वश में किया, ताकि सागर में उसके आदेश से चले और नदियों को तुम्हारे लिए वशवर्ती किया।

﴿وَسَخَّرَ لَكُمُ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ دَائِبَيْنِ ۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ﴾

तथा तुम्हारे लिए सूर्य और चाँद को काम में लगाया, जो दोनों निरन्तर चल रहे हैं और तुम्हार लिए रात्री और दिवस को वश में[1] कर दिया।

﴿وَآتَاكُمْ مِنْ كُلِّ مَا سَأَلْتُمُوهُ ۚ وَإِنْ تَعُدُّوا نِعْمَتَ اللَّهِ لَا تُحْصُوهَا ۗ إِنَّ الْإِنْسَانَ لَظَلُومٌ كَفَّارٌ﴾

और तुम्हें उससब में से कुछ दिया, जो तुमने माँगा[1] और यदि तुम अल्लाह के पुरस्कारों की गणना करना चाहो, तो भी नहीं कर सकते। वास्तव में, मनुष्य बड़ा अत्याचारी कृतघ्न (ना शुकरा) है।

﴿وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَٰذَا الْبَلَدَ آمِنًا وَاجْنُبْنِي وَبَنِيَّ أَنْ نَعْبُدَ الْأَصْنَامَ﴾

तथा (याद करो) जब इब्राहीम ने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस नगर (मक्का) को शान्ति का नगार बना दे और मुझे तथा मेरे पुत्रों को मूर्ति-पूजा से बचा ले।

﴿رَبِّ إِنَّهُنَّ أَضْلَلْنَ كَثِيرًا مِنَ النَّاسِ ۖ فَمَنْ تَبِعَنِي فَإِنَّهُ مِنِّي ۖ وَمَنْ عَصَانِي فَإِنَّكَ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

मेरे पालनहार! इन मूर्तियों ने बहुत-से लोगों को कुपथ किया है, अतः जो मेरा अनुयायी हो, वही मेरा है और जो मेरी अवज्ञा करे, तो वास्तव में, तू अति क्षमाशील, दयावान् है।

﴿رَبَّنَا إِنِّي أَسْكَنْتُ مِنْ ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيْرِ ذِي زَرْعٍ عِنْدَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُوا الصَّلَاةَ فَاجْعَلْ أَفْئِدَةً مِنَ النَّاسِ تَهْوِي إِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُمْ مِنَ الثَّمَرَاتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُونَ﴾

हमारे पालनहार! मैंने अपनी कुछ संतान मरुस्थल की एक वादी (उपत्यका) में तेरे सम्मानित घर (काबा) के पास बसा दी है, ताकि वे नमाज़ की स्थापना करें। अतः लोगों के दिलों को उनकी ओर आकर्षित कर दे और उन्हें जीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ हों।

﴿رَبَّنَا إِنَّكَ تَعْلَمُ مَا نُخْفِي وَمَا نُعْلِنُ ۗ وَمَا يَخْفَىٰ عَلَى اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ﴾

हमारे पालनहार! तू जानता है, जो हम छुपाते और जो व्यक्त करते हैं और अल्लाह से कुछ छुपा नहीं रहता, धरती में और न आकाशों में।

﴿الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي وَهَبَ لِي عَلَى الْكِبَرِ إِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ ۚ إِنَّ رَبِّي لَسَمِيعُ الدُّعَاءِ﴾

सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसने मुझे बुढ़ापे में (दो पुत्र) इस्माईल और इस्ह़ाक़ प्रदान किये। वास्तव में, मेरा पालनहार प्रार्थना अवश्य सुनने वाला है।

﴿رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي ۚ رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ﴾

मेरे पालनहार! मुझे नमाज़ की स्थापना करने वाला बना दे तथा मेरी संतान को। हे मेरे पालनहर! और मेरी प्रार्थना स्वीकार कर।

﴿رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ﴾

हे मेरे पालनहार! मूझे क्षमा कर दे तथा मेरे माता-पिता और ईमान वालों को, जिस दिन ह़िसाब लिया जायेगा।

﴿وَلَا تَحْسَبَنَّ اللَّهَ غَافِلًا عَمَّا يَعْمَلُ الظَّالِمُونَ ۚ إِنَّمَا يُؤَخِّرُهُمْ لِيَوْمٍ تَشْخَصُ فِيهِ الْأَبْصَارُ﴾

और तुम कदापि अल्लाह को, उससे अचेत न समझो, जो अत्याचारी कर रहे हैं! वह तो उन्हें उस[1] दिन के लिए टाल रहा है, जिस जिन आँखें खुली रह जायेँगी।

﴿مُهْطِعِينَ مُقْنِعِي رُءُوسِهِمْ لَا يَرْتَدُّ إِلَيْهِمْ طَرْفُهُمْ ۖ وَأَفْئِدَتُهُمْ هَوَاءٌ﴾

वे दौड़ते हुए अपने सिर ऊपर किये हुए होंगे, उनकी आँखें उनकी ओर नहीं फिरेंगी और उनके दिल गिरे[1] हुए होंगे।

﴿وَأَنْذِرِ النَّاسَ يَوْمَ يَأْتِيهِمُ الْعَذَابُ فَيَقُولُ الَّذِينَ ظَلَمُوا رَبَّنَا أَخِّرْنَا إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ نُجِبْ دَعْوَتَكَ وَنَتَّبِعِ الرُّسُلَ ۗ أَوَلَمْ تَكُونُوا أَقْسَمْتُمْ مِنْ قَبْلُ مَا لَكُمْ مِنْ زَوَالٍ﴾

(हे नबी!) आप लोगों को उस दिन से डरायें, जब उनपर यातना आ जायेगी। तो अत्याचारी कहेंगेः हमारे पालनहार! हमें कुछ समय तक अवसर दे, हम तेरी बात (आमंत्रण) स्वीकार कर लेंगे और रसूलों का अनुसरण करेंगे, क्या तुम वही नहीं हो, जो इससे पहले शपथ ले रहे थे कि हमारा पतन होना ही नहीं है?

﴿وَسَكَنْتُمْ فِي مَسَاكِنِ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ وَتَبَيَّنَ لَكُمْ كَيْفَ فَعَلْنَا بِهِمْ وَضَرَبْنَا لَكُمُ الْأَمْثَالَ﴾

जबकि तुम उन्हीं की बस्तियों में बसे हो, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किया और तुम्हारे लिए उजागर हो गया है कि हमने उनके साथ क्या किया? और हमने तुम्हें बहुत-से उदाहरण भी दिये हैं।

﴿وَقَدْ مَكَرُوا مَكْرَهُمْ وَعِنْدَ اللَّهِ مَكْرُهُمْ وَإِنْ كَانَ مَكْرُهُمْ لِتَزُولَ مِنْهُ الْجِبَالُ﴾

और उन्होंने अपना षड्यंत्र रच लिया तथा उनका षड्यंत्र अल्लाह के पास[1] है और उनका षड्यंत्र ऐसा नहीं था कि उससे पर्वत टल जायें।

﴿فَلَا تَحْسَبَنَّ اللَّهَ مُخْلِفَ وَعْدِهِ رُسُلَهُ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ ذُو انْتِقَامٍ﴾

अतः कदापि ये न समझें कि अल्लाह अपने रसूलों से किया वचन भंग करने वाला है, वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।

﴿يَوْمَ تُبَدَّلُ الْأَرْضُ غَيْرَ الْأَرْضِ وَالسَّمَاوَاتُ ۖ وَبَرَزُوا لِلَّهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ﴾

जिस दिन ये धरती दूसरी धरती से तथा आकाश बदल दिये जायेंगे और सब अल्लाह के समक्ष[1] उपस्थित होंगे, जो अकेला प्रभुत्वशाली है।

﴿وَتَرَى الْمُجْرِمِينَ يَوْمَئِذٍ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ﴾

और आप उस दिन अपराधियों को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेंगे।

﴿سَرَابِيلُهُمْ مِنْ قَطِرَانٍ وَتَغْشَىٰ وُجُوهَهُمُ النَّارُ﴾

उनके वस्त्र तारकोल के होंगे और उनके मुखों पर अग्नि छायी होगी।

﴿لِيَجْزِيَ اللَّهُ كُلَّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ﴾

ताकि अल्लाह प्रत्येक प्राणी को, उसके किये का बदला दे। निःसंदेह अल्लाह शीघ्र ह़ीसाब लेने वाला है।

﴿هَٰذَا بَلَاغٌ لِلنَّاسِ وَلِيُنْذَرُوا بِهِ وَلِيَعْلَمُوا أَنَّمَا هُوَ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ وَلِيَذَّكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ﴾

ये मनुष्यों के लिए एक संदेश है और ताकि इसके द्वारा उन्हें सावधान किया जाये और ताकि वे जान लें कि वही एक सत्य पूज्य है और ताकि मतिमान लोग शिक्षा ग्रहण करें।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: