النساء

تفسير سورة النساء

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاءً ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ وَالْأَرْحَامَ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا﴾

हे मनुष्यों! अपने[1] उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया तथा उसीसे उसकी पत्नी (हव्वा) को उत्पन्न किया और उन दोनों से बहुत-से नर-नारी फैला दिये। उस अल्लाह से डरो, जिसके द्वारा तुम एक-दूसरे से (अधिकार) मांगते हो तथा रक्त संबंधों को तोड़ने से डरो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।

﴿وَآتُوا الْيَتَامَىٰ أَمْوَالَهُمْ ۖ وَلَا تَتَبَدَّلُوا الْخَبِيثَ بِالطَّيِّبِ ۖ وَلَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَهُمْ إِلَىٰ أَمْوَالِكُمْ ۚ إِنَّهُ كَانَ حُوبًا كَبِيرًا﴾

तथा (हे संरक्षको!) अनाथों को उनके धन चुका दो और (उनकी) अच्छी चीज़ से (अपनी) बुरी चीज़ न बदलो और उनके धन, अपने धनों में मिलाकर न खाओ। निःसंदेह ये बहुत बड़ा पाप है।

﴿وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا فِي الْيَتَامَىٰ فَانْكِحُوا مَا طَابَ لَكُمْ مِنَ النِّسَاءِ مَثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰ أَلَّا تَعُولُوا﴾

और यदि तुम डरो कि अनाथ (बालिकाओं) के विषय[1] में न्याय नहीं कर सकोगे, तो नारियों में से जो भी तुम्हें भायें, दो से, तीन से, चार तक से विवाह कर लो और यदि डरो कि (उनके बीच) न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही से करो अथवा जो तुम्हारे स्वामित्व[2] में हो, उसीपर बस करो। ये अधिक समीप है कि अन्याय न करो।

﴿وَآتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً ۚ فَإِنْ طِبْنَ لَكُمْ عَنْ شَيْءٍ مِنْهُ نَفْسًا فَكُلُوهُ هَنِيئًا مَرِيئًا﴾

तथा स्त्रियों को उनके महर (विवाह उपहार) प्रसन्नता से चुका दो। फिर यदि वे उसमें से कुछ तुम्हें अपनी इच्छा से दे दें, तो प्रसन्न होकर खाओ।

﴿وَلَا تُؤْتُوا السُّفَهَاءَ أَمْوَالَكُمُ الَّتِي جَعَلَ اللَّهُ لَكُمْ قِيَامًا وَارْزُقُوهُمْ فِيهَا وَاكْسُوهُمْ وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَعْرُوفًا﴾

तथा अपने धन, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन स्थापन का साधन बनाया है, अज्ञानों को न[1] दो। हाँ, उसमें से उन्हें खाना-कपड़ा दो और उनसे भली बात बोलो।

﴿وَابْتَلُوا الْيَتَامَىٰ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ فَإِنْ آنَسْتُمْ مِنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوا إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ ۖ وَلَا تَأْكُلُوهَا إِسْرَافًا وَبِدَارًا أَنْ يَكْبَرُوا ۚ وَمَنْ كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ ۖ وَمَنْ كَانَ فَقِيرًا فَلْيَأْكُلْ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ فَأَشْهِدُوا عَلَيْهِمْ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ حَسِيبًا﴾

तथा अनाथों की परीक्षा लेते रहो, यहाँ तक कि वे विवाह की आयु को पहुँच जायें, तो यदि तुम उनमें सुधार देखो, तो उनका धन उन्हें समर्पित कर दो और उसे अपव्यय तथा शीघ्रता से इसलिए न खाओ कि वे बड़े हो जायेंगे और जो धनी हो, तो वह बचे तथा जो निर्धन हो, वह नियमानुसार खा ले तथा जब तुम उनका धन उनके ह़वाले करो, तो उनपर साक्षी बना लो और अल्लाह ह़िसाब लेने के लिए काफ़ी है।

﴿لِلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ ۚ نَصِيبًا مَفْرُوضًا﴾

और पुरुषों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा है तथा स्त्रियों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो, वह थोड़ा हो अथवा अधिक, सबके भाग[1] निर्धारित हैं।

﴿وَإِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ أُولُو الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينُ فَارْزُقُوهُمْ مِنْهُ وَقُولُوا لَهُمْ قَوْلًا مَعْرُوفًا﴾

और जब मीरास विभाजन के समय समीपवर्ती[1], अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उन्हें भी थोड़ा बहुत दे दो तथा उनसे भली बात बोलो।

﴿وَلْيَخْشَ الَّذِينَ لَوْ تَرَكُوا مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةً ضِعَافًا خَافُوا عَلَيْهِمْ فَلْيَتَّقُوا اللَّهَ وَلْيَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا﴾

और उन लोगों को डरना चाहिए, जो अपने पीछे निर्बल संतान छोड़ जायें और उनके नाश होने का भय हो, अतः उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और सीधी बात बोलें।

﴿إِنَّ الَّذِينَ يَأْكُلُونَ أَمْوَالَ الْيَتَامَىٰ ظُلْمًا إِنَّمَا يَأْكُلُونَ فِي بُطُونِهِمْ نَارًا ۖ وَسَيَصْلَوْنَ سَعِيرًا﴾

जो लोग अनाथों का धन अत्याचार से खाते हैं, वे अपने पेटों में आग भरते हैं और शीघ्र ही नरक की अग्नि में प्रवेश करेंगे।

﴿يُوصِيكُمُ اللَّهُ فِي أَوْلَادِكُمْ ۖ لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الْأُنْثَيَيْنِ ۚ فَإِنْ كُنَّ نِسَاءً فَوْقَ اثْنَتَيْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ ۖ وَإِنْ كَانَتْ وَاحِدَةً فَلَهَا النِّصْفُ ۚ وَلِأَبَوَيْهِ لِكُلِّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا السُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِنْ كَانَ لَهُ وَلَدٌ ۚ فَإِنْ لَمْ يَكُنْ لَهُ وَلَدٌ وَوَرِثَهُ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ الثُّلُثُ ۚ فَإِنْ كَانَ لَهُ إِخْوَةٌ فَلِأُمِّهِ السُّدُسُ ۚ مِنْ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِي بِهَا أَوْ دَيْنٍ ۗ آبَاؤُكُمْ وَأَبْنَاؤُكُمْ لَا تَدْرُونَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعًا ۚ فَرِيضَةً مِنَ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

अल्लाह तुम्हारी संतान के संबंध में तुम्हें आदेश देता है कि पुत्र का भाग, दो पुत्रियों के बराबर है। यदि पुत्रियाँ दो[1] से अधिक हों, तो उनके लिए छोड़े हुए धन का दो तिहाई (भाग) है। यदि एक ही हो, तो उसके लिए आधा है और उसके माता-पिता, दोनों में से प्रत्येक के लिए उसमें से छठा भाग है, जो छोड़ा हो, यदि उसके कोई संतान[2] हों। और यदि उसके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों और उसका वारिस उसका पिता हो, तो उसकी माता का तिहाई (भाग)[3] है, (और शेष पिता का)। फिर यदि (माता पिता के सिवा) उसके एक से अधिक भाई अथवा बहनें हों, तो उसकी माता के लिए छठा भाग है, जो वसिय्यत[4] तथा क़र्ज़ चुकाने के पश्चात् होगा। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पिताओं और पुत्रों में से कौन तुम्हारे लिए अधिक लाभदायक हैं। वास्तव में, अल्लाह अति बड़ा तथा गुणी, ज्ञानी, तत्वज्ञ है।

﴿۞ وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَكَ أَزْوَاجُكُمْ إِنْ لَمْ يَكُنْ لَهُنَّ وَلَدٌ ۚ فَإِنْ كَانَ لَهُنَّ وَلَدٌ فَلَكُمُ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْنَ ۚ مِنْ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِينَ بِهَا أَوْ دَيْنٍ ۚ وَلَهُنَّ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْتُمْ إِنْ لَمْ يَكُنْ لَكُمْ وَلَدٌ ۚ فَإِنْ كَانَ لَكُمْ وَلَدٌ فَلَهُنَّ الثُّمُنُ مِمَّا تَرَكْتُمْ ۚ مِنْ بَعْدِ وَصِيَّةٍ تُوصُونَ بِهَا أَوْ دَيْنٍ ۗ وَإِنْ كَانَ رَجُلٌ يُورَثُ كَلَالَةً أَوِ امْرَأَةٌ وَلَهُ أَخٌ أَوْ أُخْتٌ فَلِكُلِّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا السُّدُسُ ۚ فَإِنْ كَانُوا أَكْثَرَ مِنْ ذَٰلِكَ فَهُمْ شُرَكَاءُ فِي الثُّلُثِ ۚ مِنْ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصَىٰ بِهَا أَوْ دَيْنٍ غَيْرَ مُضَارٍّ ۚ وَصِيَّةً مِنَ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَلِيمٌ﴾

और तुम्हारे लिए उसका आधा है, जो तुम्हारी पत्नियाँ छोड़ जायें, यदि उनके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि उनके कोई संतान हों, तो तुम्हारे लिए उसका चौथाई है, जो वे छोड़ गयी हों, वसिय्यत (उत्तरदान) या ऋण चुकाने के पश्चात्। जबकि (पत्नयों) के लिए उसका चौथाई है, जो (माल आदि) तुमने छोड़ा हो, यदि तुम्हारे कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि तुम्हारे कोई संतान हों, तो उनके लिए उसका आठवाँ[1] (भाग) है, जो तुमने छोड़ा है, वसिय्यत (उत्तरदान) जो तुमने की हो, पूरी करने अथवा ऋण चुकाने के पश्चात्। फिर यदि किसी ऐसे पुरुष या स्त्री का वारिस होने की बात हो, जो 'कलाला'[2] हो तथा (दूसरी माता से) उसका भाई अथवा बहन हो, तो उनमें से प्रत्येक के लिए छठा (भाग) है। फिर यदि (माँ जाये) (भाई या बहनें) इससे अधिक हों, तो वे सब तिहाई (भाग) में (बराबर के) साझी होंगे। ये वसिय्यत (उत्तरदान) तथा ऋण चुकाने के पश्चात होगा। किसी को हानि नहीं पहुँचायी जायेगी। ये अल्लाह की ओर से वसिय्यत है और अल्लाह ज्ञानी तथा ह़िक्मत वाला है।

﴿تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ ۚ وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ﴾

ये अल्लाह की (निर्धारित) सीमायें हैं और जो अल्लाह तथा उसके रसूल का आज्ञाकारी रहेगा, तो वह उसे ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। उनमें वे सदावासी होंगे तथा यही बड़ी सफलता है।

﴿وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُ يُدْخِلْهُ نَارًا خَالِدًا فِيهَا وَلَهُ عَذَابٌ مُهِينٌ﴾

और जो अल्लाह तथा उसके रसूल की अवज्ञा तथा उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा, उसे नरक में प्रवेश देगा। जिसमें वह सदावासी होगा और उसी के लिए अपमानकारी यातना है।

﴿وَاللَّاتِي يَأْتِينَ الْفَاحِشَةَ مِنْ نِسَائِكُمْ فَاسْتَشْهِدُوا عَلَيْهِنَّ أَرْبَعَةً مِنْكُمْ ۖ فَإِنْ شَهِدُوا فَأَمْسِكُوهُنَّ فِي الْبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّاهُنَّ الْمَوْتُ أَوْ يَجْعَلَ اللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلًا﴾

तथा तुम्हारी स्त्रियों में से, जो व्यभिचार कर जायेँ, तो उनपर अपनों में से चार साक्षी लाओ। फिर यदि वे साक्ष्य (गवाही) दें, तो उन्हें घरों में बंद कर दो, यहाँ तक कि उन्हें मौत आ जाये अथवा अल्लाह उनके लिए कोई अन्य[1] राह बना दे।

﴿وَاللَّذَانِ يَأْتِيَانِهَا مِنْكُمْ فَآذُوهُمَا ۖ فَإِنْ تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُوا عَنْهُمَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ تَوَّابًا رَحِيمًا﴾

और तुममें से जो दो व्यक्ति ऐसा करें, तो दोनों को दुःख पहुँचाओ, यहाँ तक कि (जब) वे तौबा (क्षमा याचना) कर लें और अपना सुधार कर लें, तो उन्हें छोड़ दो। निश्चय अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।

﴿إِنَّمَا التَّوْبَةُ عَلَى اللَّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السُّوءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِنْ قَرِيبٍ فَأُولَٰئِكَ يَتُوبُ اللَّهُ عَلَيْهِمْ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

अल्लाह के पास उन्हीं की तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर जाते हैं, फिर शीघ्र ही क्षमा याचना कर लेते हैं, तो अल्लाह उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार कर लेता है तथा अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।

﴿وَلَيْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ حَتَّىٰ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ إِنِّي تُبْتُ الْآنَ وَلَا الَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ ۚ أُولَٰئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾

और उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य नहीं, जो बुराईयाँ करते रहते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कहता हैः अब मैंने तौबा कर ली। न ही उनकी (तौबा स्वीकार की जायेगी) जो काफ़िर रहते हुए मर जाते हैं, इन्हीं के लिए हमने दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَرِثُوا النِّسَاءَ كَرْهًا ۖ وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا بِبَعْضِ مَا آتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّا أَنْ يَأْتِينَ بِفَاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِنْ كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰ أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا﴾

हे ईमान वालो! तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि बलपूर्वक स्त्रियों के वारिस बन जाओ[1] तथा उन्हें इसलिए न रोको कि उन्हें जो दिया हो, उसमें से कुछ मार लो। परन्तु ये कि खुली बुराई कर जायेँ तथा उनके साथ उचित[2] व्यवहार से रहो। फिर यदि वे तुम्हें अप्रिय लगें, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को अप्रिय समझो और अल्लाह ने उसमें बड़ी भलाई[3] रख दी हो।

﴿وَإِنْ أَرَدْتُمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَكَانَ زَوْجٍ وَآتَيْتُمْ إِحْدَاهُنَّ قِنْطَارًا فَلَا تَأْخُذُوا مِنْهُ شَيْئًا ۚ أَتَأْخُذُونَهُ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا﴾

और यदि तुम किसी पत्नी के स्थान पर किसी दूसरी पत्नी से विवाह करना चाहो और तुमने उनमें से एक को (सोने चाँदी) का ढेर भी (महर में) दिया हो, तो उसमें से कुछ न लो। क्या तुम चाहते हो कि उसे आरोप लगाकर तथा खुले पाप द्वारा ले लो?

﴿وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُ وَقَدْ أَفْضَىٰ بَعْضُكُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ وَأَخَذْنَ مِنْكُمْ مِيثَاقًا غَلِيظًا﴾

तथा तुम उसे ले भी कैसे सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो तथा उन्होंने तुमसे (विवाह के समय) दृढ़ वचन लिया है।

﴿وَلَا تَنْكِحُوا مَا نَكَحَ آبَاؤُكُمْ مِنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۚ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَمَقْتًا وَسَاءَ سَبِيلًا﴾

और उन स्त्रियों से विवाह[1] न करो, जिनसे तुम्हारे पिताओं ने विवाह किया हो, परन्तु जो पहले हो चुका[2]। वास्तव में, ये निर्लज्जा की तथा अप्रिय बात और बुरी रीति थी।

﴿حُرِّمَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ وَعَمَّاتُكُمْ وَخَالَاتُكُمْ وَبَنَاتُ الْأَخِ وَبَنَاتُ الْأُخْتِ وَأُمَّهَاتُكُمُ اللَّاتِي أَرْضَعْنَكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ مِنَ الرَّضَاعَةِ وَأُمَّهَاتُ نِسَائِكُمْ وَرَبَائِبُكُمُ اللَّاتِي فِي حُجُورِكُمْ مِنْ نِسَائِكُمُ اللَّاتِي دَخَلْتُمْ بِهِنَّ فَإِنْ لَمْ تَكُونُوا دَخَلْتُمْ بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلَائِلُ أَبْنَائِكُمُ الَّذِينَ مِنْ أَصْلَابِكُمْ وَأَنْ تَجْمَعُوا بَيْنَ الْأُخْتَيْنِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

तुमपर[1] ह़राम (अवैध) कर दी गयी हैं; तुम्हारी मातायें, तुम्हारी पुत्रियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मोसियाँ और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे मातायें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो तथा दूध पीने से संबंधित बहनें, तुम्हारी पत्नियों की मातायें, तुम्हारी पत्नियों की पुत्रियाँ जिनका पालन पोषण तुम्हारी गोद में हुआ हो और उन पत्नियों से तुमने संभोग किया हो, यदि उनसे संभोग न किया हो, तो तुमपर कोई दोष नहीं, तुम्हारे सगे पुत्रों की पत्नियाँ और ये[2] कि तुम दो बहनों को एकत्र करो, परन्तु जो हो चुका। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

﴿۞ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۖ كِتَابَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ وَأُحِلَّ لَكُمْ مَا وَرَاءَ ذَٰلِكُمْ أَنْ تَبْتَغُوا بِأَمْوَالِكُمْ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ ۚ فَمَا اسْتَمْتَعْتُمْ بِهِ مِنْهُنَّ فَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَاضَيْتُمْ بِهِ مِنْ بَعْدِ الْفَرِيضَةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

तथा उन स्त्रियों से (विवाह वर्जित है), जो दूसरों के निकाह़ में हों। परन्तु तुम्हारी दासियाँ[1] जो (युध्द में) तुम्हारे हाथ आयी हों। (ये) तुमपर अल्लाह ने लिख दिया[2] है। और इनके सिवा (दूसरी स्त्रियाँ) तुम्हारे लिए ह़लाल (उचित) कर दी गयी हैं। (प्रतिबंध ये है कि) अपने धनों द्वारा व्यभिचार से सुरक्षित रहने के लिए विवाह करो। फिर उनमें से जिससे लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) अवश्य चुका दो तथा महर (विवाह उपहार) निर्धारित करने के पश्चात् (यदि) आपस की सहमति से (कोई कमी या अधिक्ता कर लो), तो तुमपर कोई दोष नहीं। निःसंदेह, अल्लाह अति ज्ञानी, तत्वज्ञ है।

﴿وَمَنْ لَمْ يَسْتَطِعْ مِنْكُمْ طَوْلًا أَنْ يَنْكِحَ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ فَمِنْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ مِنْ فَتَيَاتِكُمُ الْمُؤْمِنَاتِ ۚ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَانِكُمْ ۚ بَعْضُكُمْ مِنْ بَعْضٍ ۚ فَانْكِحُوهُنَّ بِإِذْنِ أَهْلِهِنَّ وَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ مُحْصَنَاتٍ غَيْرَ مُسَافِحَاتٍ وَلَا مُتَّخِذَاتِ أَخْدَانٍ ۚ فَإِذَا أُحْصِنَّ فَإِنْ أَتَيْنَ بِفَاحِشَةٍ فَعَلَيْهِنَّ نِصْفُ مَا عَلَى الْمُحْصَنَاتِ مِنَ الْعَذَابِ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِيَ الْعَنَتَ مِنْكُمْ ۚ وَأَنْ تَصْبِرُوا خَيْرٌ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

और जो व्यक्ति तुममें से स्वतंत्र ईमान वालियों से विवाह करने की सकत न रखे, तो वह अपने हाथों में आई हुई अपनी ईमान वाली दासियों से (विवाह कर ले)। दरअसल, अल्लाह तुम्हारे ईमान को अधिक जानता है। तुम आपस में एक ही हो[1]। अतः तुम उनके स्वामियों की अनुमति से उन (दासियों) से विवाह कर लो और उन्हें नियमानुसार उनके महर (विवाह उपहार) चुका दो, वे सती हों, व्यभिचारिणी न हों, न गुप्त प्रेमी बना रखी हों। फिर जब वे विवाहित हो जायें, तो यदि व्यभिचार कर जायें, तो उनपर उसका आधा[2] दण्ड है, जो स्वतंत्र स्त्रियों पर है। ये (दासी से विवाह) उसके लिए है, जो तुममें से व्यभिचार से डरता हो और सहन करो, तो ये तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

﴿يُرِيدُ اللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمْ وَيَهْدِيَكُمْ سُنَنَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَيَتُوبَ عَلَيْكُمْ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾

अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए उजागर कर दे तथा तुम्हें भी उनकी नीतियों की राह दर्शा दे, जो तुमसे पहले थे और तुम्हारी क्षमा याचना स्वीकार करे। अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

﴿وَاللَّهُ يُرِيدُ أَنْ يَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَيُرِيدُ الَّذِينَ يَتَّبِعُونَ الشَّهَوَاتِ أَنْ تَمِيلُوا مَيْلًا عَظِيمًا﴾

और अल्लाह चाहता है कि तुमपर दया करे तथा जो लोग आकांक्षाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम बहुत अधिक झुक[1] जाओ।

﴿يُرِيدُ اللَّهُ أَنْ يُخَفِّفَ عَنْكُمْ ۚ وَخُلِقَ الْإِنْسَانُ ضَعِيفًا﴾

अल्लाह तुम्हारा (बोझ) हल्का करना[1] चाहता है तथा मानव निर्बल पैदा किया गया है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً عَنْ تَرَاضٍ مِنْكُمْ ۚ وَلَا تَقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا﴾

हे ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ, परन्तु ये कि लेन-देन तुम्हारी आपस की स्वीकृति से (धर्म विधानुसार) हो और आत्म हत्या[1] न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।

﴿وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ عُدْوَانًا وَظُلْمًا فَسَوْفَ نُصْلِيهِ نَارًا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا﴾

और जो अतिक्रमण तथा अत्याचार से ऐसा करेगा, समीप है कि हम उसे अग्नि में झोंक देंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

﴿إِنْ تَجْتَنِبُوا كَبَائِرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَنُدْخِلْكُمْ مُدْخَلًا كَرِيمًا﴾

तथा यदि तुम, उन महा पापों से बचते रहे, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारे लिए तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे और तुम्हें सम्मानित स्थान में प्रवेश देंगे।

﴿وَلَا تَتَمَنَّوْا مَا فَضَّلَ اللَّهُ بِهِ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ لِلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِمَّا اكْتَسَبُوا ۖ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِمَّا اكْتَسَبْنَ ۚ وَاسْأَلُوا اللَّهَ مِنْ فَضْلِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا﴾

तथा उसकी कामना न करो, जिसके द्वारा अल्लाह ने तुम्हें एक-दूसरे पर श्रेष्ठता दी है। पुरुषों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया[1] और स्त्रियों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया है। तथा अल्लह से उससे अधिक की प्रार्थना करते रहो। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानता है।

﴿وَلِكُلٍّ جَعَلْنَا مَوَالِيَ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَبُونَ ۚ وَالَّذِينَ عَقَدَتْ أَيْمَانُكُمْ فَآتُوهُمْ نَصِيبَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدًا﴾

और हमने प्रत्येक के लिए वारिस (उत्तराधिकारी) बना दिये हैं, उसमें से जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो तथा जिनसे तुमने समझौता[1] किया हो, उन्हें उनका भाग दो। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक चीज़ से सूचित है।

﴿الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاءِ بِمَا فَضَّلَ اللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ وَبِمَا أَنْفَقُوا مِنْ أَمْوَالِهِمْ ۚ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللَّهُ ۚ وَاللَّاتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُوهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوهُنَّ ۖ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوا عَلَيْهِنَّ سَبِيلًا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرًا﴾

पुरुष स्त्रियों के व्यवस्थापक[1] हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर प्रधानता दी है तथा इस कारण कि उन्होंने अपने धनों में से (उनपर) ख़र्च किया है। अतः, सदाचारी स्त्रियाँ वो हैं, जो आज्ञाकारी तथा उनकी (अर्थात, पतियों की) अनुपस्थिति में अल्लाह की रक्षा में उनके अधिकारों की रक्षा करती हों। फिर तुम्हें जिनकी अवज्ञा का डर हो, तो उन्हें समझाओ और शयनागारों (सोने के स्थानों) में उनसे अलग हो जाओ तथा उन्हें मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानें, तो उनपर अत्याचार का बहाना न खोजो और अल्लाह सबसे ऊपर, सबसे बड़ा है।

﴿وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَابْعَثُوا حَكَمًا مِنْ أَهْلِهِ وَحَكَمًا مِنْ أَهْلِهَا إِنْ يُرِيدَا إِصْلَاحًا يُوَفِّقِ اللَّهُ بَيْنَهُمَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرًا﴾

और यदि तुम्हें[1] दोनों के बीच वियोग का डर हो, तो एक मध्यस्त उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्त उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों[2] के बीच संधि करा देगा। वास्तव में, अल्लाह अति ज्ञानी सर्वसूचित है।

﴿۞ وَاعْبُدُوا اللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا ۖ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَىٰ وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنْبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ مَنْ كَانَ مُخْتَالًا فَخُورًا﴾

तथा अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ तथा माता-पिता, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, समीप और दूर के पड़ोसी, यात्रा के साथी, यात्रि और अपने दास दासियों के साथ उपकार करो। निःसंदेह अल्लाह उससे प्रेम नहीं करता, जो अभिमानी अहंकारी[1] हो।

﴿الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ وَيَكْتُمُونَ مَا آتَاهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُهِينًا﴾

और जो स्वयं कृपण (कंजूसी) करते हैं तथा दूसरों को भी कृपण (कंजूसी) का आदेश देते हैं और उसे छुपाते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है। हमने कृतघ्नों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

﴿وَالَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ رِئَاءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآخِرِ ۗ وَمَنْ يَكُنِ الشَّيْطَانُ لَهُ قَرِينًا فَسَاءَ قَرِينًا﴾

तथा जो लोग अपना धन, लोगों को दिखाने के लिए दान करते हैं और अल्लह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान नहीं रखते तथा शैतान जिसका साथी हो, तो वह बहुत बुरा साथी[1] है।

﴿وَمَاذَا عَلَيْهِمْ لَوْ آمَنُوا بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَأَنْفَقُوا مِمَّا رَزَقَهُمُ اللَّهُ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِهِمْ عَلِيمًا﴾

और उनका क्या बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह तथा अन्तिम दिन (परलोक) पर ईमान (विश्वास) रखते और अल्लाह ने जो उन्हें दिया है, उसमें से दान करते? और अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है।

﴿إِنَّ اللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ ۖ وَإِنْ تَكُ حَسَنَةً يُضَاعِفْهَا وَيُؤْتِ مِنْ لَدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

अल्लाह कण भर भी किसी पर अत्याचार नहीं करता, यदि कुछ भलाई (किसी ने) की हो, तो (अल्लाह) उसे अधिक कर देता है तथा अपने पास से बड़ा प्रतिफल प्रदान करता है।

﴿فَكَيْفَ إِذَا جِئْنَا مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ بِشَهِيدٍ وَجِئْنَا بِكَ عَلَىٰ هَٰؤُلَاءِ شَهِيدًا﴾

तो क्या दशा होगी, जब हम प्रत्येक उम्मत (समुदाय) से एक साक्षी लायेंगे और (हे नबी!) आपको उनपर (बनाकर) साक्षी लायेंगे[1]।

﴿يَوْمَئِذٍ يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَعَصَوُا الرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّىٰ بِهِمُ الْأَرْضُ وَلَا يَكْتُمُونَ اللَّهَ حَدِيثًا﴾

उस दिन, जो काफ़िर तथा रसूल के अवज्ञाकारी हो गये, ये कामना करेंगे कि उनके सहित भूमि बराबर[1] कर दी जाये और वे अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْرَبُوا الصَّلَاةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَىٰ حَتَّىٰ تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغْتَسِلُوا ۚ وَإِنْ كُنْتُمْ مَرْضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِنْكُمْ مِنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا﴾

हे ईमान वालो! तुम जब नशे[1] में रहो, तो नमाज़ के समीप न जाओ, जब तक जो कुछ बोलो, उसे न समझो और न जनाबत[2] की स्थिति में (मस्जिदों के समीप जाओ), परन्तु रास्ता पार करते हुए। यदि तुम रोगी हो अथवा यात्रा में रहो या स्त्रियों से सहवास कर लो, फिर जल न पाओ, तो पवित्र मिट्टी से तयम्मुम[3] कर लो; उसे अपने मुखों तथा हाथों पर फेर लो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षांत (सहिष्णु) क्षमाशील है।

﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوتُوا نَصِيبًا مِنَ الْكِتَابِ يَشْتَرُونَ الضَّلَالَةَ وَيُرِيدُونَ أَنْ تَضِلُّوا السَّبِيلَ﴾

क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक[1] का कुछ भाग दिया गया? वे कुपथ ख़रीद रहे हैं तथा चाहते हैं कि तुमभी सुपथ से विचलित हो जाओ।

﴿وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِأَعْدَائِكُمْ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَلِيًّا وَكَفَىٰ بِاللَّهِ نَصِيرًا﴾

तथा अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं से भली-भाँति अवगत है और (तुम्हारे लिए) अल्लाह की रक्षा काफ़ी है तथा अल्लाह की सहायता काफ़ी है।

﴿مِنَ الَّذِينَ هَادُوا يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَنْ مَوَاضِعِهِ وَيَقُولُونَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَاسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍ وَرَاعِنَا لَيًّا بِأَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِي الدِّينِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ قَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَاسْمَعْ وَانْظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًا لَهُمْ وَأَقْوَمَ وَلَٰكِنْ لَعَنَهُمُ اللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا﴾

(हे नबी!) यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो शब्दों को उनके (वास्तविक) स्थानों से फेरते हैं और (आपसे) कहते हैं कि हमने सुन लिया तथा (आपकी) अवज्ञा की और आप सुनिए, आप सुनाये न जायें! तथा अपनी ज़ुबानें मोड़कर "राइना" कहते और सत्धर्म में व्यंग करते हैं और यदि वे "हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये" और "हमें देखिए" कहते, तो उनके लिए अधिक अच्छी तथा सही बात होती। परन्तु अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उन्हें धिक्कार दिया है। अतः, उनमें से थोड़े ही ईमान लायेंगे।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ آمِنُوا بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِمَا مَعَكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ نَطْمِسَ وُجُوهًا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰ أَدْبَارِهَا أَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّا أَصْحَابَ السَّبْتِ ۚ وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا﴾

हे अह्ले किताब! उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाओ, जिसे हमने उन (पुस्तकों) का प्रमाणकारी बनाकर उतारा है, जो तुम्हारे साथ हैं, इससे पहले कि हम चेहरे बिगाड़ कर पीछे कर दें अथवा उन्हें ऐसे ही धिक्कार[1] दें, जैसे शनिवार वालों को धिक्कार दिया। अल्लाह का आदेश पूरा हो कर रहा।

﴿إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدِ افْتَرَىٰ إِثْمًا عَظِيمًا﴾

निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये[1] और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह का साझी बनाता है, तो उसने महा पाप गढ़ लिया।

﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنْفُسَهُمْ ۚ بَلِ اللَّهُ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا﴾

क्या आपने उन्हें नहीं देखा, जो अपने आप पवित्र बन रहे हैं? बल्कि अल्लाह जिसे चाहे, पवित्र करता है और (लोगों पर) कण बराबर अत्याचार नहीं किया जायेगा।

﴿انْظُرْ كَيْفَ يَفْتَرُونَ عَلَى اللَّهِ الْكَذِبَ ۖ وَكَفَىٰ بِهِ إِثْمًا مُبِينًا﴾

देखो, ये लोग कैसे अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगा रहे[1] हैं! उनके खुले पाप के लिए यही बहुत है।

﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوتُوا نَصِيبًا مِنَ الْكِتَابِ يُؤْمِنُونَ بِالْجِبْتِ وَالطَّاغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا هَٰؤُلَاءِ أَهْدَىٰ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا سَبِيلًا﴾

(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे मूर्तियों तथा शैतानों पर ईमान (विश्वास) रखते हैं और काफ़िरों[1] के बारे में कहते हैं कि ये ईमान वालों से अधिक सीधी डगर पर हैं।

﴿أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَعَنَهُمُ اللَّهُ ۖ وَمَنْ يَلْعَنِ اللَّهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهُ نَصِيرًا﴾

और जिसे अल्लाह धिक्कार दे, आप उसका कदापि कोई सहायक नहीं पाएंगे।

﴿أَمْ لَهُمْ نَصِيبٌ مِنَ الْمُلْكِ فَإِذًا لَا يُؤْتُونَ النَّاسَ نَقِيرًا﴾

क्या उनके पास राज्य का कोई भाग है, इसलिए लोगों को (उसमें से) तनिक भी नहीं देंगे?

﴿أَمْ يَحْسُدُونَ النَّاسَ عَلَىٰ مَا آتَاهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۖ فَقَدْ آتَيْنَا آلَ إِبْرَاهِيمَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَآتَيْنَاهُمْ مُلْكًا عَظِيمًا﴾

बल्कि वे लोगों[1] से उस अनुग्रह पर विद्वेष कर रहे हैं, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है। तो हमने (पहले भी) इब्राहीम के घराने को पुस्तक तथा ह़िक्मत (तत्वदर्शिता) दी है और उन्हें विशाल राज्य प्रदान किया है।

﴿فَمِنْهُمْ مَنْ آمَنَ بِهِ وَمِنْهُمْ مَنْ صَدَّ عَنْهُ ۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا﴾

फिर उनमें से कोई ईमान लाया और कोई उससे विमुख हो गया। (तो विमुख होने वाले के लिए) नरक की भड़कती अग्नि बहुत है।

﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا سَوْفَ نُصْلِيهِمْ نَارًا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُمْ بَدَّلْنَاهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا لِيَذُوقُوا الْعَذَابَ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾

वास्तव में, जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र (अविश्वास) किया, हम उन्हें नरक में झोंक देंगे। जब-जब उनकी खालें पकेंगी, हम उनकी खालें बदल देंगे, ताकि वे यातना चखें, निःसंदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

﴿وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ لَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ ۖ وَنُدْخِلُهُمْ ظِلًّا ظَلِيلًا﴾

और जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। जिनमें वे सदावासी होंगे, उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और हम उन्हें घनी छाँवों में रखेंगे।

﴿۞ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَنْ تُؤَدُّوا الْأَمَانَاتِ إِلَىٰ أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُمْ بَيْنَ النَّاسِ أَنْ تَحْكُمُوا بِالْعَدْلِ ۚ إِنَّ اللَّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُمْ بِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ سَمِيعًا بَصِيرًا﴾

अल्लाह[1] तुम्हें आदेश देता है कि धरोहर उनके स्वामियों को चुका दो और जब लोगों के बीच निर्णय करो, तो न्याय के साथ निर्णय करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी बात का निर्देश दे रहा है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنْكُمْ ۖ فَإِنْ تَنَازَعْتُمْ فِي شَيْءٍ فَرُدُّوهُ إِلَى اللَّهِ وَالرَّسُولِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا﴾

हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो तथा अपने शासकों की आज्ञापालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद (विभेद) कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो। ये तुम्हारे लिए अच्छा[1] और इसका परिणाम अच्छा है।

﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يَزْعُمُونَ أَنَّهُمْ آمَنُوا بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ يُرِيدُونَ أَنْ يَتَحَاكَمُوا إِلَى الطَّاغُوتِ وَقَدْ أُمِرُوا أَنْ يَكْفُرُوا بِهِ وَيُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَنْ يُضِلَّهُمْ ضَلَالًا بَعِيدًا﴾

(हे नबी!) क्या आपने उन द्विधावादियों (मुनाफ़िक़ों) को नहीं जाना, जिनका ये दावा है कि जो कुछ आपपर अवतरित हुआ है तथा जो कुछ आपसे पूर्व अवतरित हुआ है, उनपर ईमान रखते हैं, किन्तु चाहते हैं कि अपने विवाद का निर्णय विद्रोही के पास ले जायें, जबकि उन्हें आदेश दिया गया है कि उसे अस्वीकार कर दें? और शैतान चाहता है कि उन्हें सत्धर्म से बहुत दूर[1] कर दे।

﴿وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا إِلَىٰ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ رَأَيْتَ الْمُنَافِقِينَ يَصُدُّونَ عَنْكَ صُدُودًا﴾

तथा जब उनसे कहा जाता है कि उस (क़ुर्आन) की ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की (सुन्नत की) ओर, तो आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को देखते हैं कि वे आपसे मुँह फेर रहे हैं।

﴿فَكَيْفَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَاءُوكَ يَحْلِفُونَ بِاللَّهِ إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا إِحْسَانًا وَتَوْفِيقًا﴾

फिर यदि उनके अपने ही करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़े, तो फिर आपके पास आ कर शपथ लेते हैं कि हमने[1] तो केवल भलाई तथा (दोनों पक्षों में) मेल कराना चाहा था।

﴿أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يَعْلَمُ اللَّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُلْ لَهُمْ فِي أَنْفُسِهِمْ قَوْلًا بَلِيغًا﴾

यही वो लोग हैं, जिनके दिलों के भीतर की बातें अल्लाह जानता है। अतः, आप उन्हें क्षमा कर दें और उनसे ऐसी प्रभावी बात बोलें, जो उनके दिलों में उतर जाये।

﴿وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ رَسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذْ ظَلَمُوا أَنْفُسَهُمْ جَاءُوكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللَّهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُولُ لَوَجَدُوا اللَّهَ تَوَّابًا رَحِيمًا﴾

और हमने जो भी रसूल भेजा, वो इसलिए, ताकि अल्लाह की अनुमति से, उसकी आज्ञा का पालन किया जाये और जब उन लोगों ने अपने ऊपर अत्याचार किया, तो यदि वे आपके पास आते, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करते तथा उनके लिए रसूल क्षमा की प्रार्थना करते, तो अल्लाह को अति क्षमाशील दयावान् पाते।

﴿فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوا فِي أَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوا تَسْلِيمًا﴾

तो आपके पालनहार की शपथ! वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते, जब तक अपने आपस के विवाद में आपको निर्णायक न बनाएँ[1], फिर आप जो निर्णय कर दें, उससे अपने दिलों में तनिक भी संकीर्णता (तंगी) का अनुभव न करें और पूर्णता स्वीकार कर लें।

﴿وَلَوْ أَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ أَنِ اقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ أَوِ اخْرُجُوا مِنْ دِيَارِكُمْ مَا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٌ مِنْهُمْ ۖ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُوا مَا يُوعَظُونَ بِهِ لَكَانَ خَيْرًا لَهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتًا﴾

और यदि हम उन्हें[1] आदेश देते कि स्वयं को वध करो तथा अपने घरों से निकल जाओ, तो इनमें से थोड़े के सिवा कोई ऐसा नहीं करता। जबकि उन्हें जो निर्देश दिया जाता है, यदि वे उसका पालन करते, तो उनके लिए अच्छा और अधिक स्थिरता का कारण होता।

﴿وَإِذًا لَآتَيْنَاهُمْ مِنْ لَدُنَّا أَجْرًا عَظِيمًا﴾

और हम उन्हें अपने पास से बहुत बड़ा प्रतिफल देते।

﴿وَلَهَدَيْنَاهُمْ صِرَاطًا مُسْتَقِيمًا﴾

तथा हम उन्हें सीधी डगर दर्शा देते।

﴿وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَالرَّسُولَ فَأُولَٰئِكَ مَعَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ مِنَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاءِ وَالصَّالِحِينَ ۚ وَحَسُنَ أُولَٰئِكَ رَفِيقًا﴾

तथा जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करेंगे, वही (स्वर्ग में), उनके साथ होंगे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया है, अर्थात नबियों, सत्यवादियों, शहीदों और सदाचारियों के साथ और वे क्या ही अच्छे साथी हैं?

﴿ذَٰلِكَ الْفَضْلُ مِنَ اللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ عَلِيمًا﴾

ये प्रदान अल्लाह की ओर से है और अल्लाह का ज्ञान बहुत[1] है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا خُذُوا حِذْرَكُمْ فَانْفِرُوا ثُبَاتٍ أَوِ انْفِرُوا جَمِيعًا﴾

हे ईमान वालो! अपने (शत्रु से) बचाव के साधन तैयार रखो, फिर गिरोहों में अथवा एक साथ निकल पड़ो।

﴿وَإِنَّ مِنْكُمْ لَمَنْ لَيُبَطِّئَنَّ فَإِنْ أَصَابَتْكُمْ مُصِيبَةٌ قَالَ قَدْ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيَّ إِذْ لَمْ أَكُنْ مَعَهُمْ شَهِيدًا﴾

और तुममें कोई ऐसा व्यक्ति[1] भी है, जो तुमसे अवश्य पीछे रह जोएगा और यदि तुमपर (युध्द में) कोई आपदा आ पड़े, तो कहेगाः अल्लाह ने मुझपर उपकार किया कि मैं उनके साथ उपस्थित न था।

﴿وَلَئِنْ أَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِنَ اللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَنْ لَمْ تَكُنْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ مَوَدَّةٌ يَا لَيْتَنِي كُنْتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا﴾

और यदि तुमपर अल्लाह की दया हो जाये, तो वे अवश्य ये कामना करेगा कि काश! मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता। मानो उसके और तुम्हारे मध्य कोई मित्रता ही न थी।

﴿۞ فَلْيُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يَشْرُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ ۚ وَمَنْ يُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَيُقْتَلْ أَوْ يَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

तो चाहिए कि अल्लाह की राह[1] में वे लोग युध्द करें, जो आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन बेच चुके हैं और जो अल्लाह की राह में युध्द करेगा, वो मारा जाये अथवा विजयी हो जाये, हम उसे बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

﴿وَمَا لَكُمْ لَا تُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ الَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا أَخْرِجْنَا مِنْ هَٰذِهِ الْقَرْيَةِ الظَّالِمِ أَهْلُهَا وَاجْعَلْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ وَلِيًّا وَاجْعَلْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ نَصِيرًا﴾

और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में युध्द नहीं करते, जबकि कितने ही निर्बल पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे हैं, जो गुहार रहे हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें इस नगर[1] से निकाल दे, जिसके निवासी अत्याचारी हैं और हमारे लिए अपनी ओर से कोई रक्षक बना दे और हमारे लिए अपनी ओर से कोई सहायक बना दे।

﴿الَّذِينَ آمَنُوا يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ وَالَّذِينَ كَفَرُوا يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ الطَّاغُوتِ فَقَاتِلُوا أَوْلِيَاءَ الشَّيْطَانِ ۖ إِنَّ كَيْدَ الشَّيْطَانِ كَانَ ضَعِيفًا﴾

जो लोग ईमान लाये, वे अल्लाह की राह में युध्द करते हैं और जो काफ़िर हैं, वे उपद्रव के लिए युध्द करते हैं। तो शैतान के साथियों से युध्द करो। निःसंदेह शैतान की चाल निर्बल होती है।

﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ قِيلَ لَهُمْ كُفُّوا أَيْدِيَكُمْ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ يَخْشَوْنَ النَّاسَ كَخَشْيَةِ اللَّهِ أَوْ أَشَدَّ خَشْيَةً ۚ وَقَالُوا رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا الْقِتَالَ لَوْلَا أَخَّرْتَنَا إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ ۗ قُلْ مَتَاعُ الدُّنْيَا قَلِيلٌ وَالْآخِرَةُ خَيْرٌ لِمَنِ اتَّقَىٰ وَلَا تُظْلَمُونَ فَتِيلًا﴾

(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिनसे कहा गया था कि अपने हाथों को (युध्द से) रोके रखो, नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो? परन्तु जब उनपर युध्द करना लिख दिया गया, तो उनमें से एक गिरोह लोगों से ऐसे डर रहा है, जैसे अल्लाह से डर रहा हो या उससे भी अधिक तथा वे कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें युध्द करने का आदेश क्यों दे दिया, क्यों न हमें थोड़े दिनों का और अवसर दिया? आप कह दें कि सांसारिक सुख बहुत थोड़ा है तथा परलोक उसके लिए अधिक अच्छा है, जो अल्लाह[1] से डरा और उनपर कण भर भी अत्याचार नहीं किया जायेगा।

﴿أَيْنَمَا تَكُونُوا يُدْرِكْكُمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنْتُمْ فِي بُرُوجٍ مُشَيَّدَةٍ ۗ وَإِنْ تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ ۖ وَإِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَقُولُوا هَٰذِهِ مِنْ عِنْدِكَ ۚ قُلْ كُلٌّ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ ۖ فَمَالِ هَٰؤُلَاءِ الْقَوْمِ لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًا﴾

तुम जहाँ भी रहो, तुम्हें मौत आ पकड़ेगी, यद्यपि दृढ़ दुर्गों में क्यों न रहो। तथा उन्हें यदि कोई सुख पहुँचता है, तो कहते हैं कि ये अल्लाह की ओर से है और यदि कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि ये आपके कारण है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि सब अल्लाह की ओर से है। इन लोगों को क्या हो गया कि कोई बात समझने के समीप भी नहीं[1] होते?

﴿مَا أَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللَّهِ ۖ وَمَا أَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَفْسِكَ ۚ وَأَرْسَلْنَاكَ لِلنَّاسِ رَسُولًا ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا﴾

(वास्तविक्ता तो ये है कि) तुम्हें जो सुख पहुँचता है, वह अल्लाह की ओर से होता है तथा जो हानि पहुँचती है, वह स्वयं (तुम्हारे कुकर्मों के) कारण होती है और हमने आपको सब मानव का रसूल (संदेशवाहक) बनाकर भेजा[1] है और (आपके रसूल होने के लिए) अल्लाह का साक्ष्य बहुत है।

﴿مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ ۖ وَمَنْ تَوَلَّىٰ فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا﴾

जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा[1] है।

﴿وَيَقُولُونَ طَاعَةٌ فَإِذَا بَرَزُوا مِنْ عِنْدِكَ بَيَّتَ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ غَيْرَ الَّذِي تَقُولُ ۖ وَاللَّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ ۖ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا﴾

तथा वे (आपके सामने) कहते हैं कि हम आज्ञाकारी हैं और जब आपके पास से जाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग, रात में, आपकी बात के विरुध्द परामर्श करते हैं और वे जो परामर्श कर रहे हैं, उसे अल्लाह लिख रहा है। अतः आप उनपर ध्यान न दें और अल्लाह पर भरोसा करें तथा अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।

﴿أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِنْدِ غَيْرِ اللَّهِ لَوَجَدُوا فِيهِ اخْتِلَافًا كَثِيرًا﴾

तो क्या वे क़ुर्आन के अर्थों पर सोच-विचार नहीं करते? यदि वे अल्लाह के सिवा दूसरे की ओर से होता, तो उसमें बहुत सी प्रतिकूल (बेमेल) बातें पाते[1]।

﴿وَإِذَا جَاءَهُمْ أَمْرٌ مِنَ الْأَمْنِ أَوِ الْخَوْفِ أَذَاعُوا بِهِ ۖ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى الرَّسُولِ وَإِلَىٰ أُولِي الْأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِينَ يَسْتَنْبِطُونَهُ مِنْهُمْ ۗ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لَاتَّبَعْتُمُ الشَّيْطَانَ إِلَّا قَلِيلًا﴾

और जब उनके पास शांति या भय की कोई सूचना आती है, तो उसे फैला देते हैं। जबकि यदि वे उसे अल्लाह के रसूल तथा अपने अधिकारियों की ओर फेर देते, तो जो बात की तह तक पहुँचने वाले हैं, वे उसकी वास्तविक्ता जान लेते। यदि तुमपर अल्लाह की अनुकम्पा तथा दया न होती, तो तुममें थोड़े के सिवा सब शैतान के पीछे भाग[1] जाते।

﴿فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى اللَّهُ أَنْ يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنْكِيلًا﴾

तो (हे नबी!) आप अल्लाह की राह में युध्द करें। केवल आपपर ये भार डाला जा रहा है तथा ईमान वालों को (इसकी) प्रेरणा दें। संभव है कि अल्लाह काफ़िरों का बल (तोड़ दे)। अल्लाह का बल और उसका दण्ड सबसे कड़ा है।

﴿مَنْ يَشْفَعْ شَفَاعَةً حَسَنَةً يَكُنْ لَهُ نَصِيبٌ مِنْهَا ۖ وَمَنْ يَشْفَعْ شَفَاعَةً سَيِّئَةً يَكُنْ لَهُ كِفْلٌ مِنْهَا ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُقِيتًا﴾

जो अच्छी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, उसे उसका भाग (प्रतिफल) मिलेगा तथा जो बुरी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, तो उसे भी उसका भाग (कुफल)[1] मिलेगा और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।

﴿وَإِذَا حُيِّيتُمْ بِتَحِيَّةٍ فَحَيُّوا بِأَحْسَنَ مِنْهَا أَوْ رُدُّوهَا ۗ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ حَسِيبًا﴾

और जब तुमसे सलाम किया जाये, तो उससे अच्छा उत्तर दो अथवा उसी को दोहरा दो। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ह़िसाब लेने वाला है।

﴿اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۗ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ اللَّهِ حَدِيثًا﴾

अल्लाह के सिवा कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं, वह अवश्य तुम्हें प्रलय के दिन एकत्र करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं तथा बात कहने में अल्लाह से अधिक सच्चा कौन हो सकता है?

﴿۞ فَمَا لَكُمْ فِي الْمُنَافِقِينَ فِئَتَيْنِ وَاللَّهُ أَرْكَسَهُمْ بِمَا كَسَبُوا ۚ أَتُرِيدُونَ أَنْ تَهْدُوا مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ ۖ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهُ سَبِيلًا﴾

तुम्हें क्या हुआ है कि मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) के बारे में दो पक्ष[1] बन गये हो, जबकि अल्लाह ने उनके कुकर्मों के कारण उन्हें ओंधा कर दिया है। क्या तुम उसे सुपथ दर्शा देना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते।

﴿وَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا فَتَكُونُونَ سَوَاءً ۖ فَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ أَوْلِيَاءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۚ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدْتُمُوهُمْ ۖ وَلَا تَتَّخِذُوا مِنْهُمْ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾

(हे ईमान वालो!) वे तो ये कामना करते हैं कि उन्हीं के समान तुमभी काफ़िर हो जाओ तथा उनके बराबर हो जाओ। अतः उनमें से किसी को मित्र न बनाओ, जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें। यदि वे इससे विमुख हों, तो उन्हें जहाँ पाओ, वध करो और उनमें से किसी को मित्र न बनाओ और न सहायक।

﴿إِلَّا الَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِيثَاقٌ أَوْ جَاءُوكُمْ حَصِرَتْ صُدُورُهُمْ أَنْ يُقَاتِلُوكُمْ أَوْ يُقَاتِلُوا قَوْمَهُمْ ۚ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَاتَلُوكُمْ ۚ فَإِنِ اعْتَزَلُوكُمْ فَلَمْ يُقَاتِلُوكُمْ وَأَلْقَوْا إِلَيْكُمُ السَّلَمَ فَمَا جَعَلَ اللَّهُ لَكُمْ عَلَيْهِمْ سَبِيلًا﴾

परन्तु उनमें से जो किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें, जिनके और तुम्हारे बीच संधि हो अथवा ऐसे लोग हों, जो तुम्हारे पास इस स्थिति में आयें कि उनके दिल इससे संकुचित हो रहे हों कि तुमसे युध्द करें अथवा (तुम्हारे साथ) अपनी जाति से युध्द करें। यदि अल्लाह चाहता, तो उनहें तुमपर सामर्थ्य दे देता, फिर वे तुमसे युध्द करते। यदि वे तुमसे विलग रह गये, तुमसे युध्द नहीं किया और तुमसे संधि कर ली, तो उनके विरुध्द अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई (युध्द करने की) राह नहीं बनाई[1] है।

﴿سَتَجِدُونَ آخَرِينَ يُرِيدُونَ أَنْ يَأْمَنُوكُمْ وَيَأْمَنُوا قَوْمَهُمْ كُلَّ مَا رُدُّوا إِلَى الْفِتْنَةِ أُرْكِسُوا فِيهَا ۚ فَإِنْ لَمْ يَعْتَزِلُوكُمْ وَيُلْقُوا إِلَيْكُمُ السَّلَمَ وَيَكُفُّوا أَيْدِيَهُمْ فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ ۚ وَأُولَٰئِكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا مُبِينًا﴾

तथा तुम्हें कुछ ऐसे दूसरे लोग भी मिलेंगे, जो तुम्हारी ओर से भी शान्त रहना चाहते हैं और अपनी जाति की ओर से शांत रहना (चाहते हैं)। फिर जब भी उपद्रव की ओर फेर दिये जायेँ, तो उसमें ओंधे होकर गिर जाते हैं। तो यदि वे तुमसे विलग न रहें और तुमसे संधि न करें तथा अपना हाथ न रोकें, तो उन्हें पकड़ो और जहाँ पाओ, वध करो। हमने उनके विरुध्द तुम्हारे लिए खुला तर्क बना दिया है।

﴿وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَنْ يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَأً ۚ وَمَنْ قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَأً فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ وَدِيَةٌ مُسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ إِلَّا أَنْ يَصَّدَّقُوا ۚ فَإِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ عَدُوٍّ لَكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ ۖ وَإِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِيثَاقٌ فَدِيَةٌ مُسَلَّمَةٌ إِلَىٰ أَهْلِهِ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُؤْمِنَةٍ ۖ فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةً مِنَ اللَّهِ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

किसी ईमान वाले के लिए वैध नहीं कि वो किसी ईमान वाले की हत्या कर दे, परन्तु चूक[1] से। फिर जो किसी ईमान वाले की चूक से हत्या कर दे, तो उसे एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और उसके घर वालों को दियत (अर्थदण्ड)[2] देना है, परन्तु ये कि वे दान (क्षमा) कर दें। फिर यदि वह (निहत) उस जाति में से हो, जो तुम्हारी शत्रु है और वह (निहत) ईमान वाला है, तो एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और यदि ऐसी क़ौम से हो, जिसके और तुम्हारे बीच संधि है, तो उसके घर वालों को अर्थदण्ड देना तथा एक ईमान वाला दास (भी) मुक्त करना है और जो दास न पाये, उसे निरन्तर दो महीने रोज़ा रखना है। अल्लाह की ओर से (उसके पाप की) यही क्षमा है और अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

﴿وَمَنْ يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُتَعَمِّدًا فَجَزَاؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا﴾

और जो किसी ईमान वाले की हत्या जान-बूझ कर कर दे, उसका कुफल (बदला) नरक है, जिसमें वह सदावासी होगा और उसपर अल्लाह का प्रकोप तथा धिक्कार है और उसने उसके लिए घोर यातना तैयार कर रखी है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا ضَرَبْتُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَتَبَيَّنُوا وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ أَلْقَىٰ إِلَيْكُمُ السَّلَامَ لَسْتَ مُؤْمِنًا تَبْتَغُونَ عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَعِنْدَ اللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ ۚ كَذَٰلِكَ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلُ فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْكُمْ فَتَبَيَّنُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾

हे ईमान वालो! जब तुम अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए) निकलो, तो भली-भाँति परख[1] लो और कोई तुम्हें सलाम[2] करे, तो ये न कहो कि तुम ईमान वाले नहीं हो। क्या तुम सांसारिक जीवन का उपकरण चाहते हो? जबकि अल्लाह के पास बहुत-से परिहार (शत्रुधन) हैं। तुमभी पहले ऐसे[3] ही थे, तो अल्लाह ने तुमपर उपकार किया। अतः, भली-भाँति परख लिया करो। निःसंदेह, अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।

﴿لَا يَسْتَوِي الْقَاعِدُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ غَيْرُ أُولِي الضَّرَرِ وَالْمُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ ۚ فَضَّلَ اللَّهُ الْمُجَاهِدِينَ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ عَلَى الْقَاعِدِينَ دَرَجَةً ۚ وَكُلًّا وَعَدَ اللَّهُ الْحُسْنَىٰ ۚ وَفَضَّلَ اللَّهُ الْمُجَاهِدِينَ عَلَى الْقَاعِدِينَ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

ईमान वालों में जो अकारण अपने घरों में रह जाते हैं और जो अल्लाह की राह में अपने धनों और प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, दोनों बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने उन्हें जो अपने धनों तथा प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, उनपर जो घरों में रह जाते हैं, पद में प्रधानता दी है और प्रत्येक को अल्लाह ने भलाई का वचन दिया है और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को उनपर, जो घरों में बैठे रह जाने वाले हैं, बड़े प्रतिफल में भी प्रधानता दी है।

﴿دَرَجَاتٍ مِنْهُ وَمَغْفِرَةً وَرَحْمَةً ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

अल्लाह की ओर से कई (उच्च) श्रेणियाँ तथा क्षमा और दया है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

﴿إِنَّ الَّذِينَ تَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ ظَالِمِي أَنْفُسِهِمْ قَالُوا فِيمَ كُنْتُمْ ۖ قَالُوا كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ قَالُوا أَلَمْ تَكُنْ أَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُوا فِيهَا ۚ فَأُولَٰئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا﴾

निःसंदेह वे लोग, जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर (कुफ़्र के देश में रहकर) अत्याचार करने वाले हों, तो उनसे कहते हैं, तुम किस चीज़ में थे? वे कहते हैं कि हम धरती में विवश थे। तब फ़रिश्ते कहते हैं, क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर[1] जाते? तो इन्हीं का आवास नरक है और वह क्या ही बुरा स्थान है!

﴿إِلَّا الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًا﴾

परन्तु जो पुरुष, स्त्रियाँ तथा बच्चे ऐसे विवश हूँ कि कोई उपाय न रखते हों और न (हिजरत की) कोई राह पाते हों।

﴿فَأُولَٰئِكَ عَسَى اللَّهُ أَنْ يَعْفُوَ عَنْهُمْ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَفُوًّا غَفُورًا﴾

तो आशा है कि अल्लाह उन्हें क्षमा कर देगा। निःसंदेह अल्लाह अति ज्ञान्त क्षमाशील है।

﴿۞ وَمَنْ يُهَاجِرْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ يَجِدْ فِي الْأَرْضِ مُرَاغَمًا كَثِيرًا وَسَعَةً ۚ وَمَنْ يَخْرُجْ مِنْ بَيْتِهِ مُهَاجِرًا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ يُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ أَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

तथा जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करेगा, वह धरती में बहुत-से निवास स्थान तथा विस्तार पायेगा और जो अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकल गया, फिर उसे (राह में ही) मौत ने पकड़ लिया, तो उसका प्रतिफल अल्लाह के पास निश्चित हो गया और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।

﴿وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِي الْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَقْصُرُوا مِنَ الصَّلَاةِ إِنْ خِفْتُمْ أَنْ يَفْتِنَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ إِنَّ الْكَافِرِينَ كَانُوا لَكُمْ عَدُوًّا مُبِينًا﴾

और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो नमाज़[1] क़स्र (संक्षिप्त) करने में तुमपर कोई दोष नहीं, यदि तुम्हें डर हो कि काफ़िर तुम्हें सतायेंगे। वास्तव में, काफ़िर तुम्हारे खुले शत्रु हैं।

﴿وَإِذَا كُنْتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ الصَّلَاةَ فَلْتَقُمْ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوا أَسْلِحَتَهُمْ فَإِذَا سَجَدُوا فَلْيَكُونُوا مِنْ وَرَائِكُمْ وَلْتَأْتِ طَائِفَةٌ أُخْرَىٰ لَمْ يُصَلُّوا فَلْيُصَلُّوا مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوا حِذْرَهُمْ وَأَسْلِحَتَهُمْ ۗ وَدَّ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْ تَغْفُلُونَ عَنْ أَسْلِحَتِكُمْ وَأَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيلُونَ عَلَيْكُمْ مَيْلَةً وَاحِدَةً ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِنْ كَانَ بِكُمْ أَذًى مِنْ مَطَرٍ أَوْ كُنْتُمْ مَرْضَىٰ أَنْ تَضَعُوا أَسْلِحَتَكُمْ ۖ وَخُذُوا حِذْرَكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ أَعَدَّ لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُهِينًا﴾

तथा (हे नबी!) जब आप (रणक्षेत्र में) उपस्थित हों और उनके लिए नमाज़ की स्थापना करें, तो उनका एक गिरोह आपके साथ खड़ा हो जाये और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें और जब वे सज्दा कर लें, तो तुम्हारे पीछे हो जायें तथा दूसरा गिरोह आये, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है और आपके साथ नमाज़ पढ़ें और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें। काफ़िर चाहते हैं कि तुम अपने शस्त्रों से निश्चेत हो जाओ, तो तुमपर यकायक धावा बोल दें। फिर तुमपर कोई दोष नहीं, यदि वर्षा के कारण तुम्हें दुःख हो अथवा तुम रोगी रहो कि अपने शस्त्र[1] उतार दो तथा अपने बचाव का ध्यान रखो। निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

﴿فَإِذَا قَضَيْتُمُ الصَّلَاةَ فَاذْكُرُوا اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ ۚ فَإِذَا اطْمَأْنَنْتُمْ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ ۚ إِنَّ الصَّلَاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَوْقُوتًا﴾

फिर जब तुम नमाज़ पूरी कर लो, तो खड़े, बैठे, लेटे प्रत्येक स्थिति में अल्लाह का स्मरण करो और जब तुम शान्त हो जाओ, तो पूरी नमाज़ पढ़ो। निःसंदेह, नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गयी है।

﴿وَلَا تَهِنُوا فِي ابْتِغَاءِ الْقَوْمِ ۖ إِنْ تَكُونُوا تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمُونَ ۖ وَتَرْجُونَ مِنَ اللَّهِ مَا لَا يَرْجُونَ ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

तथा तुम (शत्रु) जाति का पीछा करने में सिथिल न बनो, यदि तुम्हें दुःख पहुँचा है, तो तुम्हारे समान उन्हें भी दुःख पहुँचा है तथा तुम अल्लाह से जो आशा[1] रखते हो, वो आशा वे नहीं रखते तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

﴿إِنَّا أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ بِمَا أَرَاكَ اللَّهُ ۚ وَلَا تَكُنْ لِلْخَائِنِينَ خَصِيمًا﴾

(हे नबी!) हमने आपकी ओर इस पुस्तक (क़ुर्आन) को सत्य के साथ उतारा है, ताकि आप, लोगों के बीच उसके अनुसार निर्णय करें, जो अल्लाह ने आपको बताया है, और आप विश्वासघातियों के पक्षधर न[1] बनें।

﴿وَاسْتَغْفِرِ اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

तथा अल्लाह से क्षमा याचना करते रहें, निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

﴿وَلَا تُجَادِلْ عَنِ الَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنْفُسَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ مَنْ كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا﴾

और उनका पक्ष न लें, जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते हों, निःसंदेह अल्लाह विश्वासघाती, पापी से प्रेम नहीं करता[1]।

﴿يَسْتَخْفُونَ مِنَ النَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ اللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ الْقَوْلِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا﴾

वे (अपने करतूत) लोगों सो छुपा सकते हैं,परन्तु अल्लाह से नहीं छुपा सकते और वह उनके साथ होता है, जब वे रात में उस बात का परामर्श करते हैं, जिससे वह प्रसन्न नहीं[1] होता तथा अल्लाह उसे घेरे हुए है, जो वे कर रहे हैं।

﴿هَا أَنْتُمْ هَٰؤُلَاءِ جَادَلْتُمْ عَنْهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَمَنْ يُجَادِلُ اللَّهَ عَنْهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَمْ مَنْ يَكُونُ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا﴾

सुनो! तुम ही वो हो कि सांसारिक जीवन में उनकी ओर से झगड़ लिए। तो परलय के दिन उनकी ओर से कौन अल्लाह से झगड़ेगा और कौन उनका अभिभाषक (प्रतिनिधि) होगा?

﴿وَمَنْ يَعْمَلْ سُوءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ اللَّهَ يَجِدِ اللَّهَ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

जो व्यक्ति कोई कुकर्म करेगा अथवा अपने ऊपर अत्याचार करेगा, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करेगा, तो वह उसे अति क्षमी दयावान् पायेगा।

﴿وَمَنْ يَكْسِبْ إِثْمًا فَإِنَّمَا يَكْسِبُهُ عَلَىٰ نَفْسِهِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

और जो व्यक्ति कोई पाप करता है, तो अपने ऊपर करता[1] है तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

﴿وَمَنْ يَكْسِبْ خَطِيئَةً أَوْ إِثْمًا ثُمَّ يَرْمِ بِهِ بَرِيئًا فَقَدِ احْتَمَلَ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا﴾

और जो व्यक्ति कोई चूक अथवा पाप स्वयं करे और किसी निर्दोष पर उसका आरोप लगा दे, तो उसने मिथ्या दोषारोपन तथा खुले पाप का[1] बोझ अपने ऊपर लाद लिया।

﴿وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُ لَهَمَّتْ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ أَنْ يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّا أَنْفُسَهُمْ ۖ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِنْ شَيْءٍ ۚ وَأَنْزَلَ اللَّهُ عَلَيْكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُنْ تَعْلَمُ ۚ وَكَانَ فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًا﴾

और (हे नबी!) यदि आपपर अल्लाह की दया तथा कृपा न होती, तो उनके एक गिरोह ने संकल्प ले लिया था कि आपको कुपथ कर दें[1] और वे स्वयं को ही कुपथ कर रहे थे। तथा वे आपको कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। क्योंकि अल्लाह ने आपपर पुस्तक (क़ुर्आन) तथा हिक्मत (सुन्नत) उतारी है और आपको उसका ज्ञान दे दिया है, जिसे आप नहीं जानते थे तथा ये आपपर अल्लाह की बड़ी दया है।

﴿۞ لَا خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِنْ نَجْوَاهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَاحٍ بَيْنَ النَّاسِ ۚ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

उनके अधिकांश सरगोशी में कोई भलाई नहीं होती, परन्तु जो दान, सदाचार या लोगों में सुधार कराने का आदेश दे और जो कोई ऐसे कर्म अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करेगा, तो हम उसे बहुत भारी प्रतिफल प्रदान करेंगे।

﴿وَمَنْ يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا﴾

तथा जो व्यक्ति अपने ऊपर मार्गदर्शन उजागर हो जाने के[1] पश्चात् रसूल का विरोध करे और ईमान वालों की राह के सिवा (दूसरी राह) का अनुसरण करे, तो हम उसे वहीं फेर[2] देंगे, जिधर फिरा है और उसे नरक में झोंक देंगे तथा वह बुरा निवास स्थान है।

﴿إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَنْ يَشَاءُ ۚ وَمَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا﴾

निःसंदेह, अल्लाह इसे क्षमा[1] नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और इसके सिवा जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा तथा जो अल्लाह का साझी बनाता है, वह (दरअसल) कुपथ में बहुत दूर चला गया।

﴿إِنْ يَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ إِلَّا إِنَاثًا وَإِنْ يَدْعُونَ إِلَّا شَيْطَانًا مَرِيدًا﴾

वे (मिश्रणवादी), अल्लाह के सिवा देवियों ही को पुकारते हैं और धिक्कारे हुए शैतान को पुकारते हैं।

﴿لَعَنَهُ اللَّهُ ۘ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًا مَفْرُوضًا﴾

जिसे अल्लाह ने धिक्कार दिया है और जिसने कहा था कि मैं तेरे भक्तों से एक निश्चित भाग लेकर रहूँगा।

﴿وَلَأُضِلَّنَّهُمْ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلَآمُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ آذَانَ الْأَنْعَامِ وَلَآمُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ اللَّهِ ۚ وَمَنْ يَتَّخِذِ الشَّيْطَانَ وَلِيًّا مِنْ دُونِ اللَّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُبِينًا﴾

और उन्हें अवश्य बहकाऊँगा, कामनायें दिलाऊँगा और आदेश दूँगा कि वे पशुओं के कान चीर दें तथा उन्हें आदेश दूँगा, तो वे अवश्य अल्लाह की संरचना में परिवर्तन[1] कर देंगे तथा जो शैतान को अल्लाह के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा।

﴿يَعِدُهُمْ وَيُمَنِّيهِمْ ۖ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلَّا غُرُورًا﴾

वह उन्हें वचन देता तथा कामनाओं में उलझाता है और उन्हें जो वचन देता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं है।

﴿أُولَٰئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَلَا يَجِدُونَ عَنْهَا مَحِيصًا﴾

उन्हीं का निवास स्थान नरक है और वे उससे भागने की कोई राह नहीं पायेंगे।

﴿وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ وَعْدَ اللَّهِ حَقًّا ۚ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ اللَّهِ قِيلًا﴾

तथा जो लोग ईमान लाये और सत्कर्म किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। वे उनमें सदावासी होंगे। ये अल्लाह का सत्य वचन है और अल्लाह से अधिक सत्य कथन किसका हो सकता है?

﴿لَيْسَ بِأَمَانِيِّكُمْ وَلَا أَمَانِيِّ أَهْلِ الْكِتَابِ ۗ مَنْ يَعْمَلْ سُوءًا يُجْزَ بِهِ وَلَا يَجِدْ لَهُ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾

(ये प्रतिफल) तुम्हारी कामनाओं तथा अह्ले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं। जो कोई भी दुष्कर्म करेगा, वह उसका कुफल पायेगा तथा अल्लाह के सिवा अपना कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।

﴿وَمَنْ يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتِ مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنْثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَٰئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُونَ نَقِيرًا﴾

तथा जो सत्कर्म करेगा, वह नर हो अथवा नारी, फिर ईमान भी[1] रखता होगा, तो वही लोग स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और तनिक भी अत्याचार नहीं किये जायेंगे।

﴿وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَاتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا ۗ وَاتَّخَذَ اللَّهُ إِبْرَاهِيمَ خَلِيلًا﴾

तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया, वह एकेश्वरवादी भी हो और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया।

﴿وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُحِيطًا﴾

तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।

﴿وَيَسْتَفْتُونَكَ فِي النِّسَاءِ ۖ قُلِ اللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ فِي يَتَامَى النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَنْ تَنْكِحُوهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الْوِلْدَانِ وَأَنْ تَقُومُوا لِلْيَتَامَىٰ بِالْقِسْطِ ۚ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِهِ عَلِيمًا﴾

(हे नबी!) वे स्त्रियों के बारे में आपसे धर्मादेश पूछ रहे हैं। आप कह दें कि अल्लाह उनके बारे में तुम्हें आदेश देता है और वे आदेश भी हैं, जो इससे पूर्व पुस्तक (क़ुर्आन) में तुम्हें, उन अनाथ स्त्रियों के बारे में सुनाये गये हैं, जिनके निर्धारित अधिकार तुम नहीं देते और उनसे विवाह करने की रुची रखते हो तथा उन बच्चों के बारे में भी, जो निर्बल हैं तथा (ये भी आदेश देता है कि) अनाथों के लिए न्याय पर स्थिर रहो[1] तथा तुम जो भी भलाई करते हो, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।

﴿وَإِنِ امْرَأَةٌ خَافَتْ مِنْ بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَنْ يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۚ وَالصُّلْحُ خَيْرٌ ۗ وَأُحْضِرَتِ الْأَنْفُسُ الشُّحَّ ۚ وَإِنْ تُحْسِنُوا وَتَتَّقُوا فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾

और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है।

﴿وَلَنْ تَسْتَطِيعُوا أَنْ تَعْدِلُوا بَيْنَ النِّسَاءِ وَلَوْ حَرَصْتُمْ ۖ فَلَا تَمِيلُوا كُلَّ الْمَيْلِ فَتَذَرُوهَا كَالْمُعَلَّقَةِ ۚ وَإِنْ تُصْلِحُوا وَتَتَّقُوا فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

और यदि तुम अपनी पत्नियों के बीच न्याय करना चाहो, तो भी ऐसा कदापि नहीं कर[1] सकोगे। अतः एक ही की ओर पूर्णतः झुक[2] न जाओ और (शेष को) बीच में लटकी हुई न छोड़ दो और यदि (अपने व्यवहार में) सुधार[3] रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावन् है।

﴿وَإِنْ يَتَفَرَّقَا يُغْنِ اللَّهُ كُلًّا مِنْ سَعَتِهِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ وَاسِعًا حَكِيمًا﴾

और यदि दोनों अलग हो जायें, तो अल्लाह प्रत्येक को अपनी दया से (दूसरे से) निश्चिंत[1] कर देगा और अल्लाह बड़ा उदार तत्वज्ञ है।

﴿وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ اتَّقُوا اللَّهَ ۚ وَإِنْ تَكْفُرُوا فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدًا﴾

तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों और धरती में है और हमने तुमसे पूर्व अह्ले किताब को तथा (खुद) तुम्हें आदेश दिया है कि अल्लाह से डरते रहो। यदि तुम कुफ्र (अवज्ञा) करोगे, तो निःसंदेह जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह अल्लाह ही का है तथा अल्लाह निस्पृह[1] प्रशंसित है।

﴿وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا﴾

तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह काम बनाने के लिए बस है।

﴿إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ أَيُّهَا النَّاسُ وَيَأْتِ بِآخَرِينَ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرًا﴾

और वह चाहे तो, हे लोगो! तुम्हें ले जाये[1] और तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ला दे तथा अल्लाह ऐसा कर सकता है।

﴿مَنْ كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ الدُّنْيَا فَعِنْدَ اللَّهِ ثَوَابُ الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ سَمِيعًا بَصِيرًا﴾

जो सांसारिक प्रतिकार (बदला) चाहता हो, तो अल्लाह के पास संसार तथा परलोक दोनों का प्रतिकार (बदला) है तथा अल्लाह सबकी बात सुनता और सबके कर्म देख रहा है।

﴿۞ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاءَ لِلَّهِ وَلَوْ عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ أَوِ الْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ ۚ إِنْ يَكُنْ غَنِيًّا أَوْ فَقِيرًا فَاللَّهُ أَوْلَىٰ بِهِمَا ۖ فَلَا تَتَّبِعُوا الْهَوَىٰ أَنْ تَعْدِلُوا ۚ وَإِنْ تَلْوُوا أَوْ تُعْرِضُوا فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا﴾

हे ईमान वालो! न्याय के साथ खड़े रहकर अल्लाह के लिए साक्षी (गवाह) बन जाओ। यद्यपि साक्ष्य (गवाही) तुम्हारे अपने अथवा माता पिता और समीपवर्तियों के विरुध्द हो, यदि कोई धनी अथवा निर्धन हो, तो अल्लाह तुमसे अधिक उन दोनों का हितैषी है। अतः अपनी मनोकांक्षा के लिए न्याय से न फिरो। यदि तुम बात घुमा फिरा कर करोगे अथवा साक्ष्य देने से कतराओगे, तो निःसंदेह अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम करते हो।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي أَنْزَلَ مِنْ قَبْلُ ۚ وَمَنْ يَكْفُرْ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا﴾

हे ईमान वालो! अल्लाह, उसके रसूल और उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अन्त दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ में बहुत दूर जा पड़ेगा।

﴿إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا ثُمَّ كَفَرُوا ثُمَّ آمَنُوا ثُمَّ كَفَرُوا ثُمَّ ازْدَادُوا كُفْرًا لَمْ يَكُنِ اللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلًا﴾

निःसंदेह जो ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते ही चले गये, तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें सीधी डगर दिखायेगा।

﴿بَشِّرِ الْمُنَافِقِينَ بِأَنَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾

(हे नबी!) आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को शुभ सूचना सुना दें कि उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।

﴿الَّذِينَ يَتَّخِذُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۚ أَيَبْتَغُونَ عِنْدَهُمُ الْعِزَّةَ فَإِنَّ الْعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا﴾

जो ईमान वालों को छोड़कर, काफ़िरों को अपना सहायक मित्र बनाते हैं, क्या वे उनके पास मान सम्मान चाहते हैं? तो निःसंदेह सब मान सम्मान अल्लाह ही के लिए[1] है।

﴿وَقَدْ نَزَّلَ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ أَنْ إِذَا سَمِعْتُمْ آيَاتِ اللَّهِ يُكْفَرُ بِهَا وَيُسْتَهْزَأُ بِهَا فَلَا تَقْعُدُوا مَعَهُمْ حَتَّىٰ يَخُوضُوا فِي حَدِيثٍ غَيْرِهِ ۚ إِنَّكُمْ إِذًا مِثْلُهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ جَامِعُ الْمُنَافِقِينَ وَالْكَافِرِينَ فِي جَهَنَّمَ جَمِيعًا﴾

और उस (अल्लाह) ने तुम्हारे लिए अपनी पुस्तक (क़ुर्आन) में ये आदेश उतार[1] दिया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया जा रहा है तथा उनका उपहास किया जा रहा है, तो उनके साथ न बैठो, यहाँ तक कि वे दूसरी बात में लग जायें। निःसंदेह, तुम उस समय उन्हीं के समान हो जाओगे। निश्चय अल्लाह मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) तथा काफ़िरों, सबको नरक में एकत्र करने वाला है।

﴿الَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمْ فَإِنْ كَانَ لَكُمْ فَتْحٌ مِنَ اللَّهِ قَالُوا أَلَمْ نَكُنْ مَعَكُمْ وَإِنْ كَانَ لِلْكَافِرِينَ نَصِيبٌ قَالُوا أَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَيْكُمْ وَنَمْنَعْكُمْ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ ۚ فَاللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ وَلَنْ يَجْعَلَ اللَّهُ لِلْكَافِرِينَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا﴾

जो तुम्हारी प्रतीक्षा में रहा करते हैं; यदि तुम्हें अल्लाह की सहायता से विजय प्राप्त हो, तो कहते हैं, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और यदि उन (काफ़िरों) का पल्ला भारी रहे, तो कहते हैं कि क्या हम तुमपर छा नहीं गये थे और तुम्हें ईमान वालों से बचा (नहीं) रहे थे? तो अल्लाह ही प्रलय के दिन तुम्हारे बीच निर्णय करेगा और अल्लाह काफ़िरों के लिए ईमान वालों पर कदापि कोई राह नहीं बनायेगा[1]।

﴿إِنَّ الْمُنَافِقِينَ يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَهُوَ خَادِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوا إِلَى الصَّلَاةِ قَامُوا كُسَالَىٰ يُرَاءُونَ النَّاسَ وَلَا يَذْكُرُونَ اللَّهَ إِلَّا قَلِيلًا﴾

वास्तव में, मुनाफ़िक (द्विधावादी) अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, जबकी, वही उन्हें धोखे में डाल रहा[1] है और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर खड़े होते हैं, वे लोगों को दिखाते हैं और अल्लाह का स्मरण थोड़ा ही करते हैं।

﴿مُذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَٰلِكَ لَا إِلَىٰ هَٰؤُلَاءِ وَلَا إِلَىٰ هَٰؤُلَاءِ ۚ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهُ سَبِيلًا﴾

वह इसके बीच द्विधा में पड़े हुए हैं, न इधर न उधर। दरअसल, जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, आप उसके लिए कोई राह नहीं पा सकेंगे।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۚ أَتُرِيدُونَ أَنْ تَجْعَلُوا لِلَّهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَانًا مُبِينًا﴾

हे ईमान वालो! ईमान वालों को छोड़कर काफ़िरों को सहायक मित्र न बनाओ। क्या तुम अपने विरुध्द अल्लाह के लिए खुला तर्क बनाना चाहते हो?

﴿إِنَّ الْمُنَافِقِينَ فِي الدَّرْكِ الْأَسْفَلِ مِنَ النَّارِ وَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ نَصِيرًا﴾

निश्चय मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) नरक की सबसे नीची श्रेणी में होंगे और आप उनका कोई सहायक नहीं पायेंगे।

﴿إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَاعْتَصَمُوا بِاللَّهِ وَأَخْلَصُوا دِينَهُمْ لِلَّهِ فَأُولَٰئِكَ مَعَ الْمُؤْمِنِينَ ۖ وَسَوْفَ يُؤْتِ اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

परन्तु जिन्होंने क्षमा याचना कर ली, अपना सुधार कर लिया, अल्लाह को सुदृढ़ पकड़ लिया और अपने धर्म को विशुध्द कर लिया, तो वे लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेगा।

﴿مَا يَفْعَلُ اللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِنْ شَكَرْتُمْ وَآمَنْتُمْ ۚ وَكَانَ اللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمًا﴾

अल्लाह को क्या पड़ी है कि तुम्हें यातना दे, यदि तुम कृतज्ञ रहो तथा ईमान रखो और अल्लाह[1] बड़ा गुणग्राही अति ज्ञानी है।

﴿۞ لَا يُحِبُّ اللَّهُ الْجَهْرَ بِالسُّوءِ مِنَ الْقَوْلِ إِلَّا مَنْ ظُلِمَ ۚ وَكَانَ اللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا﴾

अल्लाह को अपशब्द (बुरी बात) की चर्चा नहीं भाती, परन्तु जिसपर अत्याचार किया गया[1] हो और अल्लाह सब सुनता और जानता है।

﴿إِنْ تُبْدُوا خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُوا عَنْ سُوءٍ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا﴾

यदि तुमकोई भली बात खुल कर करो, उसे छुपाकर करो या किसी बुराई को क्षमा कर दो, (याद रखो कि) निःसंदेह अललाह अति क्षमी, सर्व शक्तिशाली है।

﴿إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيُرِيدُونَ أَنْ يُفَرِّقُوا بَيْنَ اللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَنْ يَتَّخِذُوا بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا﴾

जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ (अविश्वास) कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अन्तर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ के साथ कुफ़्र करते हैं और इसके बीच राह[1] अपनाना चाहते हैं।

﴿أُولَٰئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ حَقًّا ۚ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُهِينًا﴾

वही शुध्द काफ़िर हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

﴿وَالَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ وَلَمْ يُفَرِّقُوا بَيْنَ أَحَدٍ مِنْهُمْ أُولَٰئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا﴾

तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाये और उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं किया, तो उन्हीं को, हम उनका प्रतिफल प्रदान करेंगे तथा अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

﴿يَسْأَلُكَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَنْ تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَابًا مِنَ السَّمَاءِ ۚ فَقَدْ سَأَلُوا مُوسَىٰ أَكْبَرَ مِنْ ذَٰلِكَ فَقَالُوا أَرِنَا اللَّهَ جَهْرَةً فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ۚ ثُمَّ اتَّخَذُوا الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ فَعَفَوْنَا عَنْ ذَٰلِكَ ۚ وَآتَيْنَا مُوسَىٰ سُلْطَانًا مُبِينًا﴾

(हे नबी!) आपसे अह्ले किताब माँग करते हैं कि आप उनपर आकाश से कोई पुस्तक उतार दें, तो इन्होंने मूसा से इससे भी बड़ी माँग की थी; उन्होंने कहा था कि हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष[1] दिखा दो, तो इनके अत्याचारों के कारण, इन्हें बिजली ने धर लिया, फिर इन्होंने खुली निशानियाँ आने के पश्चात् बछड़े को पूज्य बना लिया, फिर हमने इसे भी क्षमा कर दिया और हमने मूसा को खुला प्रभुत्व प्रदान किया।

﴿وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّورَ بِمِيثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوا فِي السَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُمْ مِيثَاقًا غَلِيظًا﴾

और हमने (उनसे वचन लेने के लिए) उनके ऊपर तूर (पर्वत) उठा दिया तथा हमने उनसे कहाः द्वार में सज्दा करते हुए प्रवेश करो तथा हमने उनसे कहा कि शनिवार[1] के विषय में अति न करो और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।

﴿فَبِمَا نَقْضِهِمْ مِيثَاقَهُمْ وَكُفْرِهِمْ بِآيَاتِ اللَّهِ وَقَتْلِهِمُ الْأَنْبِيَاءَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌ ۚ بَلْ طَبَعَ اللَّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا﴾

तो उनके अपना वचन भंग करने, उनके अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करने, उनके नबियों को अवैध वध करने तथा उनके ये कहने के कारण कि हमारे दिल बंद हैं। ( ऐसी बात नहीं है) बल्कि अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है। अतः इनमें से थोड़े ही इमान लायेंगे।

﴿وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَىٰ مَرْيَمَ بُهْتَانًا عَظِيمًا﴾

तथा उनके कुफ़्र और मर्यम पर घोर आरोप लगाने के कारण।

﴿وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللَّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَٰكِنْ شُبِّهَ لَهُمْ ۚ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِنْهُ ۚ مَا لَهُمْ بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ ۚ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًا﴾

तथा उनके (गर्व से) कहने के कारण कि हमने अल्लाह के रसूल, मर्यम के पुत्र, ईसा मसीह़ को वध कर दिया, जबकि (वास्तव में) उसे वध नहीं किया और न सलीब (फाँसी) दी, परन्तु उनके लिए (इसे) संदिग्ध कर दिया गया। निःसंदेह, जिन लोगों ने इसमें विभेद किया, वे भी शंका में पड़े हुए हैं और उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं, केवल अनुमान के पीछे पड़े हुए हैं और निश्चय उसे उन्होंने वध नहीं किया है।

﴿بَلْ رَفَعَهُ اللَّهُ إِلَيْهِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾

बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी ओर आकाश में उठा लिया है तथा अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

﴿وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا﴾

और सभी अह्ले किताब उस (ईसा) के मरण से पहले उसपर अवश्य ईमान[1] लायेंगे और प्रलय के दिन वह उनके विरुध्द साक्षी[2] होगा।

﴿فَبِظُلْمٍ مِنَ الَّذِينَ هَادُوا حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَاتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ كَثِيرًا﴾

यहूदियों के (इसी) अत्याचार के कारण हमने उनपर स्वच्छ खाद्य पदार्थों को ह़राम (वर्जित) कर दिया, जो उनके लिए ह़लाल (वैध) थे तथा उनके बहुधा अल्लाह की राह से रोकने के कारण।

﴿وَأَخْذِهِمُ الرِّبَا وَقَدْ نُهُوا عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ ۚ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾

तथा उनके ब्याज लेने के कारण जबकि उन्हें उससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

﴿لَٰكِنِ الرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ مِنْهُمْ وَالْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ ۚ وَالْمُقِيمِينَ الصَّلَاةَ ۚ وَالْمُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَالْمُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ أُولَٰئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا﴾

परन्तु जो उनमें से ज्ञान में पक्के हैं तथा वे ईमान वाले, जो आपकी ओर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गई (पुस्तक) पर ईमान रखते हैं और जो नमाज़ की स्थापना करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान रखने वाले हैं, उन्हीं को हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

﴿۞ إِنَّا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ كَمَا أَوْحَيْنَا إِلَىٰ نُوحٍ وَالنَّبِيِّينَ مِنْ بَعْدِهِ ۚ وَأَوْحَيْنَا إِلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَارُونَ وَسُلَيْمَانَ ۚ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا﴾

(हे नबी!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के नबियों के पास भेजी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उसकी संतान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दावूद को ज़बूर प्रदान[1] की थी।

﴿وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنَاهُمْ عَلَيْكَ مِنْ قَبْلُ وَرُسُلًا لَمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ ۚ وَكَلَّمَ اللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًا﴾

कुछ रसूल तो ऐसे हैं, जिनकी चर्चा हम इससे पहले आपसे कर चुके हैं और कुछ की चर्चा आपसे नहीं की है और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।

﴿رُسُلًا مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا﴾

ये सभी रसूल शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन रसूलों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह[1] जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

﴿لَٰكِنِ اللَّهُ يَشْهَدُ بِمَا أَنْزَلَ إِلَيْكَ ۖ أَنْزَلَهُ بِعِلْمِهِ ۖ وَالْمَلَائِكَةُ يَشْهَدُونَ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا﴾

(हे नबी!) (आपको यहूदी आदि नबी न मानें) परन्तु अल्लाह उस (क़ुर्आन) के द्वारा, जिसे आपपर उतारा है, साक्ष्य (गवाही) देता है (कि आप नबी हैं)। उसने इसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते साक्ष्य देते हैं और अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है।

﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ قَدْ ضَلُّوا ضَلَالًا بَعِيدًا﴾

वास्तव में, जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह[1] से रोका, वे सुपथ से बहुत दूर जा पड़े।

﴿إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَظَلَمُوا لَمْ يَكُنِ اللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقًا﴾

निःसंदेह जो काफ़िर हो गये और अत्याचार करते रह गये, तो अल्लाह ऐसा नहीं है कि उन्हें क्षमा कर दे तथा न उन्हें कोई राह दिखायेगा।

﴿إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا﴾

परन्तु नरक की राह, जिसमें वे सदावासी होंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَكُمُ الرَّسُولُ بِالْحَقِّ مِنْ رَبِّكُمْ فَآمِنُوا خَيْرًا لَكُمْ ۚ وَإِنْ تَكْفُرُوا فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا﴾

हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से रसूल सत्य लेकर[1] आ गये हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है तथा यदि कुफ़्र करोगे, तो (याद रखो कि) अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।

﴿يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ وَلَا تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ إِلَّا الْحَقَّ ۚ إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللَّهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِنْهُ ۖ فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ۖ وَلَا تَقُولُوا ثَلَاثَةٌ ۚ انْتَهُوا خَيْرًا لَكُمْ ۚ إِنَّمَا اللَّهُ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ سُبْحَانَهُ أَنْ يَكُونَ لَهُ وَلَدٌ ۘ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا﴾

हे अह्ले किताब (ईसाईयो!) अपने धर्म में अधिकता न[1] करो और अल्लाह पर केवल सत्य ही बोलो। मसीह़ मर्यम का पुत्र केवल अल्लाह का रसूल और उसका शब्द है, जिसे (अल्लाह ने) मर्यम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा[2] है, अतः, अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और ये न कहो कि (अल्लाह) तीन हैं, इससे रुक जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है, इसके सिवा कुछ नहीं कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, वह इससे पवित्र है कि उसका कोई पुत्र हो, आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, उसी का है और अल्लाह काम बनाने[3] के लिए बहुत है।

﴿لَنْ يَسْتَنْكِفَ الْمَسِيحُ أَنْ يَكُونَ عَبْدًا لِلَّهِ وَلَا الْمَلَائِكَةُ الْمُقَرَّبُونَ ۚ وَمَنْ يَسْتَنْكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيْهِ جَمِيعًا﴾

मसीह़ कदापि अल्लाह का दास होने को अपमान नहीं समझता और न (अल्लाह के) समीपवर्ती फ़रिश्ते। जो व्यक्ति उसकी (वंदना को) अपमान समझेगा तथा अभिमान करेगा, तो उन सभी को वह अपने पास एकत्र करेगा।

﴿فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدُهُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۖ وَأَمَّا الَّذِينَ اسْتَنْكَفُوا وَاسْتَكْبَرُوا فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَلَا يَجِدُونَ لَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا﴾

फिर जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल देगा और उन्हें अपनी दया से अधिक भी देगा।[1] परन्तु जिन्होंने (वंदना को) अपमान समझा और अभिमान किया, तो उन्हें दुःखदायी यातना देगा तथा अल्लाह के सिवा वह कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।

﴿يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَكُمْ بُرْهَانٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَأَنْزَلْنَا إِلَيْكُمْ نُورًا مُبِينًا﴾

हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण[1] आ गया है और हमने तुम्हारी ओर खुली वह़्यी[2] उतार दी है।

﴿فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَاعْتَصَمُوا بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُسْتَقِيمًا﴾

तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये तथा इस (क़ुर्आन) को दृढ़ता से पकड़ लिया, वे उन्हीं को अपनी दया तथा अनुग्रह से (स्वर्ग) में प्रवेश देगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखा देगा।

﴿يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ اللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِي الْكَلَالَةِ ۚ إِنِ امْرُؤٌ هَلَكَ لَيْسَ لَهُ وَلَدٌ وَلَهُ أُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ ۚ وَهُوَ يَرِثُهَا إِنْ لَمْ يَكُنْ لَهَا وَلَدٌ ۚ فَإِنْ كَانَتَا اثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا الثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ ۚ وَإِنْ كَانُوا إِخْوَةً رِجَالًا وَنِسَاءً فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الْأُنْثَيَيْنِ ۗ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ أَنْ تَضِلُّوا ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ﴾

(हे नबी!) वे आपसे कलाला के विषय में आदेश चाहते हैं, तो आप कह दें कि वह कलाला के विषय में तुम्हें आदेश दे रहा है कि यदि कोई ऐसा पुरुष मर जाये, जिसके संतान न हों, (और न पिता-दादा हो।) और उसके एक बहन हों, तो उसके लिए उसके छोड़े हुए धन का आधा है और वह (पुरुष) उसके पूरे धन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) के कोई संतान न हों, (और न पिता और दादा हो)। और यदि उसकी दो (अथवा अधिक) बहनें हों, तो उन्हें छोड़े हुए धन का दो तिहाई मिलेगा। यदि भाई-बहन दोनों हों, तो नर (भाई) को दो नारियों (बहनों) के बराबर[1] (भाग) मिलेगा। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेश उजागर कर रहा है, ताकि तुम कुपथ न हो जाओ तथा अल्लाह सब कुछ जानता है।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: