المنافقون

تفسير سورة المنافقون

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ إِذَا جَاءَكَ الْمُنَافِقُونَ قَالُوا نَشْهَدُ إِنَّكَ لَرَسُولُ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ إِنَّكَ لَرَسُولُهُ وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَكَاذِبُونَ﴾

जब आते हैं आपके पास मुनाफ़िक़, तो कहते हैं कि हम साक्ष्य (गवाही) देते हैं कि वास्तव में आप अल्लाह के रसूल हैं तथा अल्लाह जानता है कि वास्तव में आप अल्लाह के रसूल हैं और अल्लाह गवाही देता है कि मुनाफ़िक़ निश्चय झूठे[1] हैं।

﴿اتَّخَذُوا أَيْمَانَهُمْ جُنَّةً فَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ ۚ إِنَّهُمْ سَاءَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾

उन्होंने बना रखा है अपनी शपथों को एक ढाल और रुक गये अल्लाह की राह से। वास्तव में, वे बड़ा दुष्कर्म कर रहे हैं।

﴿ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ آمَنُوا ثُمَّ كَفَرُوا فَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَفْقَهُونَ﴾

ये सब कुछ इस कारण है कि वे ईमान लाये, फिर कुफ़्र कर गये, तो मुहर लगा दी अल्लाह ने उनके दिलों पर, अतः, वे समझते नहीं।

﴿۞ وَإِذَا رَأَيْتَهُمْ تُعْجِبُكَ أَجْسَامُهُمْ ۖ وَإِنْ يَقُولُوا تَسْمَعْ لِقَوْلِهِمْ ۖ كَأَنَّهُمْ خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ ۖ يَحْسَبُونَ كُلَّ صَيْحَةٍ عَلَيْهِمْ ۚ هُمُ الْعَدُوُّ فَاحْذَرْهُمْ ۚ قَاتَلَهُمُ اللَّهُ ۖ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ﴾

और यदि आप उन्हें देखें, तो आपको भा जायें उनके शरीर और यदि वे बात करें, तो आप सुनने लगें उनकी बात, जैसे कि वे लकड़ियाँ हों दीवार के सहारे लगायी[1] हुईं। वे प्रत्येक कड़ी ध्वनि को अपने विरुध्द[2] समझते हैं। वही शत्रु हैं, आप उनसे सावधान रहें। अल्लाह उन्हें नाश करे, वे किधर फिरे जा रहे हैं!

﴿وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا يَسْتَغْفِرْ لَكُمْ رَسُولُ اللَّهِ لَوَّوْا رُءُوسَهُمْ وَرَأَيْتَهُمْ يَصُدُّونَ وَهُمْ مُسْتَكْبِرُونَ﴾

जब उनसे कहा जाता है कि आओ, ताकि क्षमा की प्रार्थना करें तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल, तो मोड़ लेते हैं अपने सिर तथा आप उन्हें देखते हैं कि वे रुक जाते हैं अभिमान (घमंड) करते हुए।

﴿سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَسْتَغْفَرْتَ لَهُمْ أَمْ لَمْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ لَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ﴾

हे नबी! उनके समीप समान है कि आप क्षमा की प्रार्थना करें उनके लिए अथवा क्षमा की प्रार्थना न करें उनके लिए। कदापि नहीं क्षमा करेगा अल्लाह उन्हें। वास्तव में अल्लाह सुपथ नहीं दिखाता है अवज्ञाकारियों को।

﴿هُمُ الَّذِينَ يَقُولُونَ لَا تُنْفِقُوا عَلَىٰ مَنْ عِنْدَ رَسُولِ اللَّهِ حَتَّىٰ يَنْفَضُّوا ۗ وَلِلَّهِ خَزَائِنُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَٰكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَفْقَهُونَ﴾

यही वो लोग हैं, जो कहते हैं कि मत ख़र्च करो उनपर, जो अल्लाह के रसूल के पास रहते हैं, ताकि वे बिखर जायें। जबकि अल्लाह ही के अधिकार में हैं आकाशों तथा धरती के सभी कोष (ख़ज़ाने)। परन्तु मुनाफ़िक़ समझते नहीं हैं।

﴿يَقُولُونَ لَئِنْ رَجَعْنَا إِلَى الْمَدِينَةِ لَيُخْرِجَنَّ الْأَعَزُّ مِنْهَا الْأَذَلَّ ۚ وَلِلَّهِ الْعِزَّةُ وَلِرَسُولِهِ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَلَٰكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَعْلَمُونَ﴾

वे कहते हैं कि यदि हम वापस पहुँच गये मदीना तक, तो निकाल[1] देगा सम्मानित उससे अपमानित को। जबकि अल्लाह ही के लिए सम्मान हैं एवं उसके रसूल तथा ईमान वालों के लिए। परन्तु मुनाफ़िक़ जानते नहीं।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ﴾

हे ईमान वालो! तुम्हें अचेत न करें तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान अल्लाह के स्मर्ण (याद) से और जो ऐसा करेंगे, वही क्षति ग्रस्त हैं।

﴿وَأَنْفِقُوا مِنْ مَا رَزَقْنَاكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ فَيَقُولَ رَبِّ لَوْلَا أَخَّرْتَنِي إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُنْ مِنَ الصَّالِحِينَ﴾

तथा दान करो उसमें से, जो प्रदान किया है हमने तुम्हें, इससे पूर्व कि आ जाये तुममें से किसी के मरण का[1] समय, तो कहे कि मेरे पालनहार! क्यों नहीं अवसर दे दिया मुझे कुछ समय का। ताकि मैं दान करता तथा सदाचारियों में हो जाता।

﴿وَلَنْ يُؤَخِّرَ اللَّهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا ۚ وَاللَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ﴾

और कदापि अल्लाह अवसर नहीं देता किसी प्राणी को, जब आ जाये उसका निर्धारित समय और अल्लाह भली-भाँति सूचित है उससे, जो कुछ तुम कर रहे हो।

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