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القابض

كلمة (القابض) في اللغة اسم فاعل من القَبْض، وهو أخذ الشيء، وهو ضد...

الحميد

(الحمد) في اللغة هو الثناء، والفرقُ بينه وبين (الشكر): أن (الحمد)...

الطيب

كلمة الطيب في اللغة صيغة مبالغة من الطيب الذي هو عكس الخبث، واسم...

मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता के दस साक्ष्य

الهندية - हिन्दी

المؤلف माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी ، ماجد بن سليمان الرسي ، صالح بن عبد الله بن حميد
القسم خطب الجمعة
النوع صورة
اللغة الهندية - हिन्दी
المفردات محتوى متنوع متعلق بنبي الإسلام - الخطب المنبرية
موضوع الخطبة : الدلائل العشرة على عِظم قدر المصطفىالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي حفظه الله لغة الترجمة : الهنديةالمترجم : فيض الرحمن التيمي‘kh”kZd%EqLrQk lYykgq vySfg olYye dh egkurk ds nl lk﴿; gSaAizFke mins’k%إن الحمد لله، نحمده ونستعينه ونستغفره، ونعوذ بالله من شرور أنفسنا، ومن سيئات أعمالنا من يهده الله فلا مضل له، ومن يضلل فلا هادي له، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله. (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ) (يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا) (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا) leLr izdkj ds iz’kalkvksa ds i’pkr%सर्वोत्तम बात अल्लाह की बात है और सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का मार्ग है,दुष्टतम चीज़ धर्म में अविष्कारित बिदअतें (नवाचार) हैं,और धर्म में अविष्कारित प्रत्येक चीज़ बिदअत है, प्रत्येक बिदअत गुमराही है और प्रत्येक गुमराही नरक में ले जाने वाली हैं। , eqLyekuks! vYykg dk Hk; j[kks] tku yks fd bl mEer dks vYykg us ;g lEeku iznku fd;k gS fd loksZre tho dks mudk uch o jlwy )lans’kokgd( cuk;k]tks fd eks0 lYykgq vySfg olYye हैंSA og oklro esa uSfrdrk o mPp O;ogkj ,Oka Kku o dk;Z ds jwi ls loksZre ekuo Fks] ;gh dkj.k gS fd vkius leLr lalkj ij viuk izHkko स्थापित fd;k]pkgs ftUukr gks ;k euq”;];gka rd fd eosf’k;ksa ij Hkh vidk izHkko स्थापित gqvk]bl izdkj vki oklro esa ,d egku iqjwl Fks]iq.kZ jqi ls lalkj Hkj esa vkids tslk fdlh dk tue gqvk vkSj uk gh gks ldrk gS]iSxEcj lYykgq vySfg olYye dh egkurk dqN fuf’pr nZf”Vdks.k esa flfer ugha]cfYd og izR;sd igyw dks ‘kkfey gS]vkidh egkurk ds lk﴿;sa lkS ls fHk vf/kd gSa]gj lk﴿; nqljs lk﴿; ls fofHkUu gS] mu esa ls dqN ;g gSa%%vYykg rvkyk us leLr ekuo tkfr esa ls vkidk p;u fd;k rkfd vki fjlkyr o iSxEcjh )lans’kokgd ,oa izorZu( dk drZO; iwjk djsa]vYykg us vius iSxEcj eks0 lYykgq vySfg olYye ls Qjek;k%(وَأَرْسَلْنَاكَ لِلنَّاسِ رَسُولًا) vFkkZr%ge us vki dks leLr ekuo tkfr ds fy, lans’kokgd cuk dj Hkstk gS.% vki lYykgq vySfg olYye dh egkurk dk ,d lk﴿; ;g Hkh gS fd vYykg rvkyk us vkidks ucwor o fjlkyr )izorZu ,oa lans’kokgu( nksuksa ls lEekfur fd;k.%vki lYykgq vySfg olYye dh egkurk ,oa Js”Brk dk ,d izeku ;g Hkh gS fd vki mqywyvte )egRrokdka﴿kh/ vfHkyk|”kh( jlqyksa)lans’kokgd( esa ls gSa]myqyvte jlwy ikap gSa%uwg]bCjkghe]ewlk]blk]vkSj eks0 lYykgq vySfg olYye mu lc ij vYykg dh vikj dzik ,oa dje gksA-आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता का एक प्रमाण यह भी है कि अल्लाह तआला ने आपको अनेक ऐसी निशानियाँ (चिन्ह) प्रदान की हैं जो आपकी नुबूव्वत (प्रवर्तन) के साक्ष्य हैं, इब्नूल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने अपनी पुस्तक "इग़ासतुल-लहफ़ान"1 ﴿ ११०७ के अंत में उल्लेख किया है कि यह चिन्ह १००० से अधिक हैं। यह बंदों (दास) पर अल्लाह की रह़मत (कृपा) है ताकि आप की नुबूव्वत (प्रवर्तन) पर ईमान लाने एवं (आपकी बातों) को मानने में यह निशानियाँ सहायक बनें एवं विरोधियों के तर्कों का काट कर सकें.-आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता एवं श्रेष्ठता का एक साक्ष्य यह भी है कि है कि अल्लाह तआला ने आपको एक ऐसी जीवित मोजिज़ों (चमत्कार) प्रदान किया जो आपकी बेसत (अवतरित) से लेकर क़यामत तक जारी रहने वाला है। और वह है क़ुरआन- -मजीद, क्योंकि समस्त पैग़म्बरों के चिन्ह उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गए किंतु क़ुरआन ऐसा मोजिज़ा (चमत्कार) है जो उस समय तक बाक़ी रहेगा जब तक पृथ्वी और उस पर जीवित रहने वाले मनुष्य बाक़ी रहेंगे। आबू हुरैरा रज़िअल्लाहू अन्हू से वर्णित है कि रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:अर्थात: " पैग़म्बरों में से कोई पैग़म्बर ऐसा नहीं जिनको कुछ निशानियां (चमत्कार) दी गयी हों। जिनके अनुसार उन पर ईमान लाया गया। और मुझे जो विशाल चमत्कार दिया गया वह क़ुरआन है, जो अल्लाह ने मेरी ओर अवतरित किया मैं आशा करता हूं कि क़यामत के दिन गिनती में समस्त पैग़म्बरों से अधिक मेरे अनुयायी होंगें। 2﴿इस हदीस को बुख़ारी: ४९८१, एवं मुस्लिम: १५२ ने विवरण किया है। -आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह तआला ने आप के ऊपर सर्वोत्तम शरीयत( इस्लाम धर्म )अवतरित फ़रमाया और उसे उन समस्त उत्तम आदेशों एवं शिक्षाओं से निर्मित किया जो समस्त आकाशीय पुस्तकों में अंकित थीं एवं उनमें अधिक वृद्धि भी फ़रमाया। -आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की महानता एवं महत्ता का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह तआला ने आप पर अहा़दीस ( आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के कार्य एवं कथन) भी वह्य (आकाशवाणी प्रकाशन) फरमाई जो शरीअत (इस्लाम धर्म) के विवरण से निर्मित है। -आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की महानता एवं श्रेष्ठता का एक प्रमाण यह भी है कि अल्लाह तआला ने आपको समस्त मानव एवं जिनों के लिए रसूल (संदेशवाहक) बनाया,जबकि आपके अतिरिक्त अंबिया (पैग़म्बरों) को विशेष रुप से उनके अपने ही क़ौम के लिए अवतरित किया। अल्लाह तआला का कथन है:وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (سبأ: 28)अर्थात: "हमने आपको समस्त मानव जाति के लिए संदेशवाहक बना कर भेजा।"( وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً للعالمين:الأنبياء:107 )अर्थात: हम ने आपको समस्त संसार वासियों के लिए रह़मत (क्रपी) बना कर भेजा है। अल्लाह ताला ने यह भी उल्लेख फ़रमाया है कि जिन्नातों ने भी पैग़ंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के निमंत्रण को स्वीकार किया:وَإِذْ صَرَفْنَا إِلَيْكَ نَفَرًا مِنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ الْقُرْآنَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوا أَنْصِتُوا فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا إِلَى قَوْمِهِمْ مُنْذِرِينَ (الأحقاف:29)अर्थात: "हमने जिनों के एक समूह का ध्यान आप की ओर आकर्षित किया ताकि वे क़ुरआन को सुनें, जब वे उसके निकट आए तो आपस में कहने लगे कि चुप जाओ जब (पढ़ना) समाप्त हुआ तो अपने समुदाय के पास गए ताकि (उनको) नसीहत करें."इस कथन तक( ध्यान दें) :یَـٰقَوۡمَنَاۤ أَجِیبُوا۟ دَاعِیَ ٱللَّهِ وَءَامِنُوا۟ بِهِۦ یَغۡفِرۡ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمۡ وَیُجِرۡكُم مِّنۡ عَذَابٍ أَلِیمٍ. (الأحقاف:31)अर्थात: " हमारे समुदाय के लोगो! अल्लाह की ओर बुलाने वाले की बात मानो, उस पर ईमान लाओ, अल्लाह तुम्हारे पापों को क्षमा प्रदान करेगा और तुमको दर्दनाक पीड़ा से मुक्ति प्रदान करेगा। इस आयत में अंकित अल्लाह की ओर बुलाने वाला (दाई़) का अर्थ पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम है। आप ही से जिनों ने क़ुरआन की तिलावत (सस्वर पाठ) सुनी। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कथन है:अर्थात: " प्रत्येक पैग़ंबर विशेष रुप से अपनी कौ़म (समुदाय )की ओर भेजे गये और मैं लाल और काले हर व्यक्ति की ओर भेजा गया हूं" 3 ﴿इसे मुस्लिम:५२१ ने जाबिर बिन (पुत्र) अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्हु से विवरण किया हैलाल एवं काला का अर्थ समस्त संसार है।-पैग़म्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की महानता एवं उच्चता का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह तआला ने आप के माध्यम से नुबूव्वत और रिसालत (प्रवचन एवं संदेशवहन) की श्रंखला समाप्त कर दिया इसीलिए आपको ख़ातिमुन्नबीय्यीन (पैग़म्बरों का समापन करने वाला) का उपाधि दिया गया अल्लाह तआ़ला का कथन है:(مَا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَا أَحَدٍ مِنْ رِجَالِكُمْ وَلَكِنْ رَسُولَ اللَّهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَ) الأحزاب:40अर्थात: "पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हारे पुरुषों में से किसी के पिता नहीं हैं किंतु आप अल्लाह के रसूल( संदेशवाहक) एवं समस्त पैग़म्बरों की श्रंखला को समाप्त करने वाले हैं।"अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाय:अर्थात: " मेरे एवं मुझसे पूर्व समस्त पैग़म्बरों का उदाहरण ऐसा है जैसे एक व्यक्ति ने एक घर बनाया और उसमें समस्त प्रकार की सुंदरता का प्रबंध किया किंतु एक कोने में एक ईंट का स्थान च्छोड दिया, अब लोग आते हैं और मकान को चारों ओर से घूम कर देखते हैं और आश्चर्य में पड़ जाते हैं किंतु यह भी कह जाते हैं कि इस स्थान पर एक ईंट क्यों ना रखी गई? तो मैं ही वह ईंट हूं और मैं ख़ातिमुन्नबीय्यीन (अंतिम पैग़म्बर) हूँ।"4 (इसे बुख़ारी: ३५३५ एवं मुस्लिम: २२८६ ने अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से विवरण किया है।) १०-पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता एवं महत्ता का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह तआ़ला ने आपके ज़िक्र (याद) को अति बुलंद फ़रमाया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है:وَرَفَعۡنَا لَكَ ذِكۡرَكَ. (الشرح 04: )अर्थात: " हमने आपके ज़िक्र को को बुलंद किया है।"अल्लाह तआ़ला ने आपके नाम को शहादत--तौहीद ( इस्लाम में प्रवेश हेतु वाक्य) का अटूट अंग बना दिया:أشهد أن لا إله إلا الله، وأشهد أن محمدا رسول الله. अर्थात: " मैं इस बात का साक्षी हूं की अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य माबूद (परमेश्वर )नहीं। और इस बात का भी साक्षी हूं कि मोह़म्मद अल्लाह के रसूल हैं।"अज़ान इक़ामत (नमाज़ के लिए खड़े होते समय पढ़े जाने वाले वाक्यों) ख़ुत्बा (उपदेश) नमाज़ - तशह्हुद तहीय्यात - (पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अभिवादन) और अत्यंत प्रार्थनाओं में जहां अल्लाह तआ़ला का ज़िक्र (नाम) आया है वहीं पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का भी ज़िक्र (नाम) आया है। इस प्रकार पैग़म्बर मोह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़िक्र (याद) से पृथ्वी का कोना कोना गूंज रहा है। संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसका ज़िक्र (नाम) एवं प्रशंसा पैग़म्बर मोह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़िक्र (याद) और प्रशंसा के प्रकार की जाती है जैसा कि हस्सान बिन साबित रज़ि अल्लाहु अन्हु का कथन है:وضمَّ الإلهُ اسمَ النبيّ إلى اسمهِ ..... إذا قَالَ في الخَمْسِ المُؤذِّنُ أشْهَدُوشقّ لهُ منِ اسمهِ ليجلهُ.......فـذو العرشِ محمودٌ ، وهـذا مـحمد. अर्थात: " अल्लाह तआला ने अपने पैगंबर के नाम को अपने नाम के साथ विलय कर लिया है, इस प्रकार कि मुअज़्ज़िन (अज़ान कहने वाला) पांच समय के अज़ान में जब कलिमह- -शहादत (इस्लाम में प्रवेश हेतु वाक्य) पढ़ता है तो अल्लाह के नाम के साथ मोह़म्मद का नाम भी लेता है, अल्लाह तआ़ला ने अापके सम्मान के लिए आपका नाम अपने नाम से व्युत्पत्ति किया है इसलिए अर्श (अल्लाह का सिंहासन) वाला मह़मूद है और आप मोह़म्मद हैं। मुसलमानो! पैग़म्बर मोह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता एवं श्रेष्ठता के यह दस साक्ष्य हैं, यह साक्ष्य अति अधिक हैं जिनकी संख्या १०० तक पहुंचती है। जैसा कि हमने पूर्व में उल्लेख किया है। अल्लाह तआ़ला क़ुरआन को मेरे लिए एवं आप सब के लिए सौभाग्यशाली बनाए, मुझे और आपको उसकी आयतों एवं हि़कमत (प्रतिज्ञा) पर आधारित नसीह़त (परामर्श) से लाभ पहुंचाए। मैं यह बात कहते हुए अल्लाह से क्षमा चाहता हूं आप भी उससे क्षमा की प्रार्थना करें नि: संदेह वह अत्यंत क्षमा प्रदान करने वाला एवं अत्यंत कृपा करने वाला है। द्वितीय उपदेश: الحمد لله وكفى وسلام على عباده الذين اصطفى أما بعد! नि:संदेह सबसे नीच एवं सबसे कुरूप बात यह है कि मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर आलोचना किया जाए आपके साथ अपशब्द, दुर्वचन, करक अथवा आपका मानहानि करके, उन लोगों की ओर से जिनके प्रति इस्लाम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस्लाम एवं मुसलमानों से घृणा रखते हैं, ऐसे लोगों के प्रति अल्लाह का कथन सत्य बैठता है:إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ ٱلۡأَبۡتَرُ. (الكوثر:3) अर्थात: " नि: संदेह आपका शत्रु ही लावारिस और गुमनाम है।"अर्थात: तुझ से घृणा रखने वाले एवं जिस हिदायत (दिशा निर्देश) नूर (आलोक) के साथ आप अवतरित हुए हैं, उससे घृणा रखने वाले के समस्त चिन्ह मिट जाएंगे, उसका कोई नाम लेने वाला ना होगा और वह हर प्रकार की अच्छाई से वंचित कर दिए जाएगा। वे लोग जो इस्लाम के विरुद्ध षड्यंत्र रचते हैं उनके विरुद्ध अल्लाह यह तरकीब करता है कि जब भी वे इस्लाम पर आक्रमण करते हैं, उनके समुदाय का ध्यान इस्लाम की ओर अधिक बढ़ जाता है ताकि वे इस्लामी स्रोतों के माध्यम से उसकी वास्तविकता से अवगत हो सकें, इसके अतिरिक्त इस्लामी दावत (दिशा निर

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मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की महानता के दस साक्ष्य
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