النّور

تفسير سورة النّور

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ سُورَةٌ أَنْزَلْنَاهَا وَفَرَضْنَاهَا وَأَنْزَلْنَا فِيهَا آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ﴾

ये एक सूरह है, जिसे हमने उतारा तथा अनिवार्य किया है और उतारी हैं इसमें बहुत-सी खुली आयतें (निशानियाँ), ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।

﴿الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا مِائَةَ جَلْدَةٍ ۖ وَلَا تَأْخُذْكُمْ بِهِمَا رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَائِفَةٌ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ﴾

व्यभिचारिणी तथा[1] व्यभिचारी, दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो और तुम्हें उन दोनों पर कोई तरस न आये अल्लाह के धर्म के विषय[2] में, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान (विश्वास) रखते हो और चाहिए कि उनके दण्ड के समय उपस्थित रहे ईमान वालों का एक[3] गिरोह।

﴿الزَّانِي لَا يَنْكِحُ إِلَّا زَانِيَةً أَوْ مُشْرِكَةً وَالزَّانِيَةُ لَا يَنْكِحُهَا إِلَّا زَانٍ أَوْ مُشْرِكٌ ۚ وَحُرِّمَ ذَٰلِكَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ﴾

व्यभिचारी[1] नहीं विवाह करता, परन्तु व्यभिचारिणी अथवा मिश्रणवादी से और व्यभिचारिणी नहीं विवाह करती, परन्तु व्यभिचारी अथवा मिश्रणवादी से और इसे ह़राम (अवैध) कर दिया गया है ईमान वालों पर।

﴿وَالَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ﴾

तथा जो आरोप[1] लगायें व्यभिचार का सतवंती स्त्रियों पर, फिर न लायें चार साक्षी, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और न स्वीकार करो उनका साक्ष्य कभी भी और वे स्वयं अवज्ञाकारी हैं।

﴿إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

परन्तु जिन्होंने क्षमा माँग ली इसके पश्चात् तथा अपना सुधार कर लिया, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमी दयावान्[1] है।

﴿وَالَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ شُهَدَاءُ إِلَّا أَنْفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ﴾

और जो व्यभिचार का आरोप लगायें अपनी पत्नियों पर और उनके साक्षी न हों,[1] परन्तु वे स्वयं, तो चार साक्ष्य अल्लाह की शपथ लेकर देना है कि वास्तव में वह सच्चा है[2]।

﴿وَالْخَامِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَيْهِ إِنْ كَانَ مِنَ الْكَاذِبِينَ﴾

और पाँचवीं बार ये (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार है, यदि वह झूठा है।

﴿وَيَدْرَأُ عَنْهَا الْعَذَابَ أَنْ تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ ۙ إِنَّهُ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ﴾

और स्त्री से दण्ड[1] इस प्रकार दूर होगा कि वह चार बार साक्ष्य दे, अल्लाह की शपथ लेकर कि निःसंदेह, वह (पति) मिथ्यावादियों में से है।

﴿وَالْخَامِسَةَ أَنَّ غَضَبَ اللَّهِ عَلَيْهَا إِنْ كَانَ مِنَ الصَّادِقِينَ﴾

और पाँचवीं बार ये (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार हो, यदि वह सच्चा[1] हो।

﴿وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ حَكِيمٌ﴾

और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और दया न होती और ये कि अल्लाह अति क्षमी तत्वज्ञ है, (तो समस्या बढ़ जाती)।

﴿إِنَّ الَّذِينَ جَاءُوا بِالْإِفْكِ عُصْبَةٌ مِنْكُمْ ۚ لَا تَحْسَبُوهُ شَرًّا لَكُمْ ۖ بَلْ هُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ۚ لِكُلِّ امْرِئٍ مِنْهُمْ مَا اكْتَسَبَ مِنَ الْإِثْمِ ۚ وَالَّذِي تَوَلَّىٰ كِبْرَهُ مِنْهُمْ لَهُ عَذَابٌ عَظِيمٌ﴾

वास्तव[1] में, जो कलंक घड़ लाये हैं, (वे) तुम्हारे ही भीतर का एक गिरोह है, तुम इसे बुरा न समझो, बल्कि ये तुम्हारे लिए अच्छा[2] है। उनमें से प्रत्येक के लिए जितना भाग लिया, उतना पाप है और जिसने भार लिया उसके बड़े भाग[3] का, तो उसके लिए बड़ी यातना है।

﴿لَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بِأَنْفُسِهِمْ خَيْرًا وَقَالُوا هَٰذَا إِفْكٌ مُبِينٌ﴾

क्यों जब उसे ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों ने सुना, तो अपने आपमें अच्छा विचार नहीं किया तथा कहा कि ये खुला आरोप है?

﴿لَوْلَا جَاءُوا عَلَيْهِ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاءَ ۚ فَإِذْ لَمْ يَأْتُوا بِالشُّهَدَاءِ فَأُولَٰئِكَ عِنْدَ اللَّهِ هُمُ الْكَاذِبُونَ﴾

वे क्यों नहीं लाये इसपर चार साक्षी? (जब साक्षी नहीं लाये) तो निःसंदेह अल्लाह के समीप वही झूठे हैं।

﴿وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِي مَا أَفَضْتُمْ فِيهِ عَذَابٌ عَظِيمٌ﴾

और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और दया न होती लोक तथा परलोक में, तो जिन बातों में तुम पड़ गये, उनके बदले तुमपर कड़ी यातना आ जाती।

﴿إِذْ تَلَقَّوْنَهُ بِأَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُولُونَ بِأَفْوَاهِكُمْ مَا لَيْسَ لَكُمْ بِهِ عِلْمٌ وَتَحْسَبُونَهُ هَيِّنًا وَهُوَ عِنْدَ اللَّهِ عَظِيمٌ﴾

जबकि (बिना सोचे) तुम अपनी ज़बानों पर इसे लाने लगे और अपने मुखों से वह बात कहने लगे, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान न था तथा तुम इसे सरल समझ रहे थे, जबकि अल्लाह के के समीप ये बहुत बड़ी बात थी।

﴿وَلَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ قُلْتُمْ مَا يَكُونُ لَنَا أَنْ نَتَكَلَّمَ بِهَٰذَا سُبْحَانَكَ هَٰذَا بُهْتَانٌ عَظِيمٌ﴾

और क्यों नहीं जब तुमने इसे सुना, तो कह दिया कि हमारे लिए योग्य नहीं कि ये बात बोलें? हे अल्लाह! तू पवित्र है! ये तो बहुत बड़ा आरोप है।

﴿يَعِظُكُمُ اللَّهُ أَنْ تَعُودُوا لِمِثْلِهِ أَبَدًا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ﴾

अल्लाह तुम्हें शिक्षा देता है कि पुनः कभी इस जैसी बात न कहना, यदि तुम ईमान वाले हो।

﴿وَيُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾

और अल्लाह उजागर कर रहा है तुम्हारे लिए आयतों (आदेशों) को तथा अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

﴿إِنَّ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَنْ تَشِيعَ الْفَاحِشَةُ فِي الَّذِينَ آمَنُوا لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾

जो लोग चाहते हैं कि उनमें अश्लीलता[1] फैले, जो ईमान लाये हैं, तो उनके लिए दुःखदायी यातना है, लोक तथा परलोक में तथा अल्लाह जानता[2] है और तुम नहीं जानते।

﴿وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ﴾

और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह तथा उसकी दया न होती, ( तो तुमपर यातना आ जाती)। और वास्तव में, अल्लाह अति करुणामय, दयावान् है।

﴿۞ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ وَمَنْ يَتَّبِعْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ فَإِنَّهُ يَأْمُرُ بِالْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ ۚ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَىٰ مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ﴾

हे ईमान वालो! शैतान के पद्चिन्हों पर न चलो और जो उसके पदचिन्हों पर चलेगा, तो वह अश्लील कार्य तथा बुराई का ही आदेश देगा और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुममें से कोई पवित्र कभी नहीं होता, परन्तु अल्लाह पवित्र करता है, जिसे चाहे और अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।

﴿وَلَا يَأْتَلِ أُولُو الْفَضْلِ مِنْكُمْ وَالسَّعَةِ أَنْ يُؤْتُوا أُولِي الْقُرْبَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ وَلْيَعْفُوا وَلْيَصْفَحُوا ۗ أَلَا تُحِبُّونَ أَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

और न शपथ लें[1] तुममें से धनी और सुखी कि नहीं देंगे समीपवर्तियों तथा निर्धनों को और (उन्हें) जो हिजरत कर गये अल्लाह की राह में और चाहिये कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे और अल्लाह अति क्षमी, सहनशील हैं।

﴿إِنَّ الَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ الْغَافِلَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ لُعِنُوا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ﴾

जो लोग आरोप लगाते हैं सतवंती भोली-भाली ईमान वाली स्त्रियों पर, वे धिक्कार दिये गये लोक तथा परलोक में और उन्हीं के लिए बड़ी यातना है।

﴿يَوْمَ تَشْهَدُ عَلَيْهِمْ أَلْسِنَتُهُمْ وَأَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ﴾

जिस दिन साक्ष्य (गवाही) देंगी उनकी जीभें, उनके हाथ और उनके पैर, उनके कर्मों की।

﴿يَوْمَئِذٍ يُوَفِّيهِمُ اللَّهُ دِينَهُمُ الْحَقَّ وَيَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ الْمُبِينُ﴾

उस दिन अल्लाह उन्हें उनका पूरा न्याय पूर्वक बदला देगा तथा वे जान लेंगे कि अल्लाह ही सत्य (तथा सच को) उजागर करने वाला है।

﴿الْخَبِيثَاتُ لِلْخَبِيثِينَ وَالْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَاتِ ۖ وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ ۚ أُولَٰئِكَ مُبَرَّءُونَ مِمَّا يَقُولُونَ ۖ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ﴾

अपवित्र स्त्रियाँ, अपवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा अपवित्र पुरुष, अपवित्र स्त्रियों के लिए और पवित्र स्त्रियाँ, पवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा पवित्र पुरुष, पवित्र स्त्रियों के[1] लिए। वही निर्दोष हैं उन बातों से, जो वे कहते हैं। उन्हीं के लिए क्षमा तथा सम्मानित जीविका है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّىٰ تَسْتَأْنِسُوا وَتُسَلِّمُوا عَلَىٰ أَهْلِهَا ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ﴾

हे ईमान वालो[1]! मत प्रवेश करो किसी घर में, अपने घरों के सिवा, यहाँ तक कि अनुमति ले लो और उनके वासियों को सलाम कर[2] लो, ये तुम्हारे लिए उत्तम है, ताकि तुम याद रखो।

﴿فَإِنْ لَمْ تَجِدُوا فِيهَا أَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّىٰ يُؤْذَنَ لَكُمْ ۖ وَإِنْ قِيلَ لَكُمُ ارْجِعُوا فَارْجِعُوا ۖ هُوَ أَزْكَىٰ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ﴾

और यदि, उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो, यहाँ तक कि तुम्हें अनुमति दे दी जाये और यदि, तुमसे कहा जाये कि वापस हो जाओ, तो वापस हो जाओ, ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, भली-भाँति जानने वाला है।

﴿لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ مَسْكُونَةٍ فِيهَا مَتَاعٌ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ﴾

तुमपर कोई दोष नहीं है कि प्रवेश करो निर्जन घरों में, जिनमें तुम्हारा सामान हो और अल्लाह जानता है, जो कुछ तुम बोलते हो और जो मन में रखते हो।

﴿قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ﴾

(हे नबी!) आप ईमान वालों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। ये उनके लिए अधिक पवित्र है, वास्तव में, अल्लाह सूचित है उससे, जो कुछ वे कर रहे हैं।

﴿وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ أَوْ نِسَائِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ أَوِ التَّابِعِينَ غَيْرِ أُولِي الْإِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ أَوِ الطِّفْلِ الَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا عَلَىٰ عَوْرَاتِ النِّسَاءِ ۖ وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِنْ زِينَتِهِنَّ ۚ وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ﴾

और ईमान वालियों से कहें कि अपनी आँखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें और अपनी शोभा[1] का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो प्रकट हो जाये तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने वक्षस्थलों (सीनों) पर डाली रहें और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें, परन्तु अपने पतियों के लिए अथवा अपने पिताओं अथवा अपने ससुरों के लिए अथवा अपने पुत्रों[2] अखवा अपने पति के पुत्रों के लिए अथवा अपने भाईयों[3] अथवा भतीजों अथवा अपने भांजों[4] के लिए अथवा अपनी स्त्रियों[5] अथवा अपने दास-दासियों अथवा ऐसे अधीन[6] पुरुषों के लिए, जो किसी और प्रकार का प्रयोजन न रखते हों अथवा उन बच्चों के लिए, जो स्त्रियों की गुप्त बातें ने जानते हों और अपने पैर धरती पर मारती हुई न चलें कि उसका ज्ञान हो जाये, जो शोभा उन्होंने छुपा रखी है और तुमसब मिलकर अल्लाह से क्षमा माँगो, हे ईमान वालो! ताकि तुम सफल हो जाओ।

﴿وَأَنْكِحُوا الْأَيَامَىٰ مِنْكُمْ وَالصَّالِحِينَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَإِمَائِكُمْ ۚ إِنْ يَكُونُوا فُقَرَاءَ يُغْنِهِمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ﴾

तथा तुम विवाह कर दो[1] अपने में से अविवाहित पुरुषों तथा स्त्रियों का और अपने सदाचारी दासों और अपनी दासियों का, यदि वे निर्धन होंगे, तो अल्लाह उन्हें धनी बना देगा अपने अनूग्रह से और अल्लाह उदार, सर्वज्ञ है।

﴿وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ يُغْنِيَهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَالَّذِينَ يَبْتَغُونَ الْكِتَابَ مِمَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوهُمْ إِنْ عَلِمْتُمْ فِيهِمْ خَيْرًا ۖ وَآتُوهُمْ مِنْ مَالِ اللَّهِ الَّذِي آتَاكُمْ ۚ وَلَا تُكْرِهُوا فَتَيَاتِكُمْ عَلَى الْبِغَاءِ إِنْ أَرَدْنَ تَحَصُّنًا لِتَبْتَغُوا عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَمَنْ يُكْرِهْهُنَّ فَإِنَّ اللَّهَ مِنْ بَعْدِ إِكْرَاهِهِنَّ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

और उन्हें पवित्र रहना चाहिए, जो विवाह करने का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि उन्हें धनी कर दे अल्लाह अपने अनुग्रह से तथा जो स्वाधीनता-लेख की माँग करें, तुम्हारे दास-दासियों में से, तो तुम उन्हें लिख दो, यदि तुम उनमें कुछ भलाई जानो[1] और उन्हें अल्लाह के उस माल से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है तथा बाध्य न करो अपनी दासियों को व्यभिचार पर, जब वे पवित्र रहना चाहती हैं,[2] ताकि तुम सांसारिक जीवन का लाभ प्राप्त करो और जो उन्हें बाध्य करेगा, तो अल्लाह उनके बाध्य किये जाने के पश्चात्,[3] अति क्षमी, दयावान् है।

﴿وَلَقَدْ أَنْزَلْنَا إِلَيْكُمْ آيَاتٍ مُبَيِّنَاتٍ وَمَثَلًا مِنَ الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِلْمُتَّقِينَ﴾

तथा हमने तुम्हारी ओर खुली आयतें उतारी हैं और उनका उदाहरण, जो तुमसे पहले गुज़र गये तथा आज्ञाकारियों के लिए शिक्षा।

﴿۞ اللَّهُ نُورُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِيهَا مِصْبَاحٌ ۖ الْمِصْبَاحُ فِي زُجَاجَةٍ ۖ الزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّيٌّ يُوقَدُ مِنْ شَجَرَةٍ مُبَارَكَةٍ زَيْتُونَةٍ لَا شَرْقِيَّةٍ وَلَا غَرْبِيَّةٍ يَكَادُ زَيْتُهَا يُضِيءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌ ۚ نُورٌ عَلَىٰ نُورٍ ۗ يَهْدِي اللَّهُ لِنُورِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ﴾

अल्लाह आकाशों तथा धरती का प्रकाश है, उसके प्रकाश की उपमा ऐसी है, जैसे एक ताखा हो, जिसमें दीप हो, दीप काँच के झाड़ में हो, झाड़ मोती जैसे चमकते तारे के समान हो, वह ऐसे शुभ ज़ैतून के वृक्ष के तेल से जलाया जाता हो, जो न पूर्वी हो और न पश्चिमी, उसका तेल समीप (संभव) है कि स्वयं प्रकाश देने लगे, यद्यपि उसे आग न लगे। प्रकाश पर प्रकाश है। अल्लाह अपने प्रकाश का मार्ग दिखा देता है, जिसे चाहे और अल्लाह लोगों को उदाहरण दे रहा है और अल्लाह प्रत्येक वस्तु से भली-भाँति अवगत है।

﴿فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَنْ تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ﴾

(ये प्रकाश) उन घरों[1] में है, अल्लाह ने जिन्हें ऊँचा करने और उनमें अपने नाम की चर्चा करने का आदेश दिया है, उसकी महिमा का गान करते हैं, जिनमें प्रातः तथा संध्या।

﴿رِجَالٌ لَا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ ۙ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالْأَبْصَارُ﴾

ऐसे लोग, जिन्हें अचेत नहीं करता व्यापार तथा सौदा, अल्लाह के स्मरण, नमाज़ की स्थापना करने और ज़कात देने से। वे उस दिन[1] से डरते हैं जिसमें दिल तथा आँखें उलट जायेँगी।

﴿لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۗ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ﴾

ताकि अल्लाह उन्हें बदला दे, उनके सत्कर्मों का और उन्हें अधिक प्रदान करे अपने अनुग्रह से और अल्लाह जिसे चाहे, अनगिनत जीविका देता है।

﴿وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍ بِقِيعَةٍ يَحْسَبُهُ الظَّمْآنُ مَاءً حَتَّىٰ إِذَا جَاءَهُ لَمْ يَجِدْهُ شَيْئًا وَوَجَدَ اللَّهَ عِنْدَهُ فَوَفَّاهُ حِسَابَهُ ۗ وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ﴾

तथा जो काफ़िर[1] हो गये, उनके कर्म उस चमकते सुराब[2] के समान हैं, जो किसी मैदान में हो, जिसे प्यासा पानी समझता हो। परन्तु, जब उसके पास आये, तो कुछ न पाये और वहाँ अल्लाह को पाये, जो उसका पूरा ह़िसाब चुका दे और अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।

﴿أَوْ كَظُلُمَاتٍ فِي بَحْرٍ لُجِّيٍّ يَغْشَاهُ مَوْجٌ مِنْ فَوْقِهِ مَوْجٌ مِنْ فَوْقِهِ سَحَابٌ ۚ ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَا أَخْرَجَ يَدَهُ لَمْ يَكَدْ يَرَاهَا ۗ وَمَنْ لَمْ يَجْعَلِ اللَّهُ لَهُ نُورًا فَمَا لَهُ مِنْ نُورٍ﴾

अथवा उन अंधकारों के समान हैं, जो किसी गहरे सागर में हो और जिसपर तरंग छायी हो, जिसके ऊपर तरंग हो, उसके ऊपर बादल हो, अन्धकार पर अन्धकार हो, जब अपना हाथ निकाले, तो उसे भी न देख सके और अल्लाह जिसे प्रकाश न दे, उसके लिए कोई प्रकाश[1] नहीं।

﴿أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُسَبِّحُ لَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالطَّيْرُ صَافَّاتٍ ۖ كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهُ وَتَسْبِيحَهُ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَفْعَلُونَ﴾

क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ही की पवित्रता का गान कर रहे हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं तथा पंख फैलाये हुए पक्षी? प्रत्येक ने अपनी बंदगी तथा पवित्रता गान को जान लिया[1] है और अल्लाह भली-भाँति जानने वाला है, जो वे कर रहे हैं।

﴿وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ﴾

अल्लाह ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य और अल्लाह ही की ओर फिरकर[1] जाना है।

﴿أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُزْجِي سَحَابًا ثُمَّ يُؤَلِّفُ بَيْنَهُ ثُمَّ يَجْعَلُهُ رُكَامًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مِنْ جِبَالٍ فِيهَا مِنْ بَرَدٍ فَيُصِيبُ بِهِ مَنْ يَشَاءُ وَيَصْرِفُهُ عَنْ مَنْ يَشَاءُ ۖ يَكَادُ سَنَا بَرْقِهِ يَذْهَبُ بِالْأَبْصَارِ﴾

क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह बादलों को चलाता है, फिर उन्हें परस्पर मिला देता है, फिर उन्हें घंघोर मेघ बना देता है, फिर आप देखते हैं बूँद को, उसके मध्य से निकलती हुई और वही पर्वतों जैसे बादल से ओले बरसाता है, फिर जिसपर चाहे, आपदा उतारता है और जिससे चाहे, फेर देता है। उसकी बिजली की चमक संभव है कि आँखों को उचक ले।

﴿يُقَلِّبُ اللَّهُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِأُولِي الْأَبْصَارِ﴾

अल्लाह ही रात और दिन को बदलता[1] है। बेशक इसमें बड़ी शिक्षा है, समझ-बूझ वालों के लिए।

﴿وَاللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَابَّةٍ مِنْ مَاءٍ ۖ فَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ بَطْنِهِ وَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ رِجْلَيْنِ وَمِنْهُمْ مَنْ يَمْشِي عَلَىٰ أَرْبَعٍ ۚ يَخْلُقُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾

अल्लाह ही ने प्रत्येक जीव धारी को पानी से पैदा किया है। तो उनमें से कुछ अपने पेट के बल चलते हैं और कुछ दो पैर पर तथा कुछ चार पैर पर चलते हैं। अल्लाह जो चाहे, पैदा करता है, वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।

﴿لَقَدْ أَنْزَلْنَا آيَاتٍ مُبَيِّنَاتٍ ۚ وَاللَّهُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ﴾

हमने खुली आयतें (क़ुर्आन) अवतरित कर दी हैं और अल्लाह जिसे चाहता है, सुपथ दिखा देता है।

﴿وَيَقُولُونَ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالرَّسُولِ وَأَطَعْنَا ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٌ مِنْهُمْ مِنْ بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا أُولَٰئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ﴾

और[1] वे कहते हैं कि हम अल्लाह तथा रसूल पर ईमान लाये और हम आज्ञाकारी हो गये, फिर मुँह फेर लेता है उनमें से एक गिरोह इसके पश्चात्। वास्तव में, वे ईमान वाले हैं ही नहीं।

﴿وَإِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ مُعْرِضُونَ﴾

और जब बुलाये जाते हैं, अल्लाह तथा उसके रसूल की ओर, ताकि (रसूल) निर्णय कर दें उनके बीच (विवाद का), तो अकस्मात उनमें से एक गिरोह मुँह फेर लेता है।

﴿وَإِنْ يَكُنْ لَهُمُ الْحَقُّ يَأْتُوا إِلَيْهِ مُذْعِنِينَ﴾

और यदि उन्हीं को अधिकार पहुँचता हो, तो आपके पास सिर झुकाये चले आते हैं।

﴿أَفِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ أَمِ ارْتَابُوا أَمْ يَخَافُونَ أَنْ يَحِيفَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَرَسُولُهُ ۚ بَلْ أُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ﴾

क्या उनके दिलों में रोग है अथवा द्विधा में पड़े हुए हैं अथवा डर रहे हैं कि अल्लाह अत्याचार करेगा, उनपर और उसके रसूल? बल्कि वही अत्याचारी हैं।

﴿إِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِينَ إِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ أَنْ يَقُولُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ﴾

ईमान वालों का कथन तो ये है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाये जायें, ताकि आप उनके बीच निर्णँय कर दें, तो कहें कि हमने सुन लिया तथा मान लिया और वही सफल होने वाले हैं।

﴿وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَخْشَ اللَّهَ وَيَتَّقْهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ﴾

तथा जो अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करें, अल्लाह का भय रखें और उसकी (यातना से) डरें, तो वही सफल होने वाले हैं।

﴿۞ وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ أَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّ ۖ قُلْ لَا تُقْسِمُوا ۖ طَاعَةٌ مَعْرُوفَةٌ ۚ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ﴾

और इन (द्विधावादियों) ने बलपूर्वक शपथ ली कि यदि आप उन्हें आदेश दें, तो अवश्य वे (घरों से) निकल पड़ेंगे। उनसे कह दें: शपथ न लो। तुम्हारे आज्ञापालन की दशा जानी-पहचानी है। वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे कर्मों से सूचित है।

﴿قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ ۖ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُمْ مَا حُمِّلْتُمْ ۖ وَإِنْ تُطِيعُوهُ تَهْتَدُوا ۚ وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ﴾

(हे नबी!) आप कह दें कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो और यदि वे विमुख हों, तो आपका कर्तव्य केवल वही है, जिसका भार आपपर रखा गया है और तुम्हारा वह है, जिसका भार तुमपर रखा गया है और रसूल का दायित्व केवल खुला आदेश पहुँचा देना है।

﴿وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِي الْأَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِينَهُمُ الَّذِي ارْتَضَىٰ لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْنًا ۚ يَعْبُدُونَنِي لَا يُشْرِكُونَ بِي شَيْئًا ۚ وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ﴾

अल्लाह ने वचन[1] दिया है उन्हें, जो तुममें से ईमान लायें तथा सुकर्म करें कि उन्हें अवश्य धरती में अधिकार प्रदान करेगा, जैसे उन्हें अधिकार प्रदान किया, जो इनसे पहले थे तथा अवश्य सुदृढ़ कर देगा उनके उस धर्म को, जिसे उनके लिए पसंद किया है तथा उन (की दशा) को उनके भय के पश्चात् शान्ति में बदल देगा, वह मेरी इबादत (वंदना) करते रहें और किसी चीज़ को मेरा साझी न बनायें और जो कुफ़्र करें इसके पश्चात्, तो वही उल्लंघनकारी हैं।

﴿وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ﴾

यथा नमाज़ की स्थापना करो, ज़कात दो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाये।

﴿لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۚ وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ وَلَبِئْسَ الْمَصِيرُ﴾

और (हे नबी!) कदापि आप न समझें कि जो काफ़िर हो गये, वे (अल्लाह को) धरती में विवश कर देने वाले हैं और उनका स्थान नरक है और वह बुरा निवास स्थान है।

﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنْكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ ۚ مِنْ قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُمْ مِنَ الظَّهِيرَةِ وَمِنْ بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاءِ ۚ ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ ۚ طَوَّافُونَ عَلَيْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾

हे ईमान वालो! तुम[1] से अनुमति लेना आवश्यक है, तुम्हारे स्वामित्व के दास-दासियों को और जो तुममें से (अभी) युवा अवस्था को न पहुँचे हों, तीन समय; फ़ज्र (भोर) की नमाज़ से पहले और जिस समय तुम अपने वस्त्र उतारते हो दोपहर में तथा इशा (रात्रि) की नमाज़ के पश्चात्। ये तीन (एकांत) पर्दे के समय हैं तुम्हारे लिए। (फिर) तुमपर और उनपर कोई दोष नहीं है इनके पश्चात्, तुम अधिक्तर आने-जाने वाले हो एक-दूसरे के पास। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों का वर्णन कर रहा है और अल्लाह सर्वज्ञ निपुण है।

﴿وَإِذَا بَلَغَ الْأَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴾

और जब तुममें से बच्चे युवा अवस्था को पहुँचें, तो वे भी वैसे ही अनुमति लें, जैसे उनसे पूर्व के (बड़े) अनुमति माँगते हैं, इसी प्रकार, अल्लाह उजागर करता है तुम्हारे लिए अपनी आयतों को तथा अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

﴿وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا يَرْجُونَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ أَنْ يَضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجَاتٍ بِزِينَةٍ ۖ وَأَنْ يَسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَهُنَّ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ﴾

तथा जो बूढ़ी स्त्रियाँ विवाह की आशा न रखती हों, तो उनपर कोई दोष नहीं कि अपनी (पर्दे की) चादरें उतारकर रख दें, प्रतिबंध ये है कि अपनी शोभी का प्रदर्शन करने वाली न हों और यदि सुरक्षित रहें,[1] तो उनके लिए अच्छ है।

﴿لَيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ وَلَا عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ أَنْ تَأْكُلُوا مِنْ بُيُوتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ آبَائِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أُمَّهَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ إِخْوَانِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخَوَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَعْمَامِكُمْ أَوْ بُيُوتِ عَمَّاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخْوَالِكُمْ أَوْ بُيُوتِ خَالَاتِكُمْ أَوْ مَا مَلَكْتُمْ مَفَاتِحَهُ أَوْ صَدِيقِكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَأْكُلُوا جَمِيعًا أَوْ أَشْتَاتًا ۚ فَإِذَا دَخَلْتُمْ بُيُوتًا فَسَلِّمُوا عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُبَارَكَةً طَيِّبَةً ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ﴾

अन्धे पर कोई दोष नहीं है, न लंगड़े पर कोई दोष[1] है, न रोगी पर कोई दोष है और न स्वयं तुमपर कि खाओ अपने घरों[2] से, अपने बापों के घरों से, अपनी माँओं के धरों से, अपने भाईयों के घरों से, अपनी बहनों के घरों से, अपने चाचाओं के घरों से, अपनी फूफियों के घरों से, अपने मामाओं के घरों से, अपनी मौसियों के घरों से अथवा जिसकी चाबियों के तुम स्वामी[3] हो अथवा अपने मित्रों के घरों से। तुमपर कोई दोष नहीं, एक साथ खाओ या अलग अलग। फिर जब तुम प्रवेश करो घरों में,[4] तो अपनों को सलाम किया करो, एक आशीर्वाद है अल्लाह की ओर से निर्धारित किया हुआ, जो शुभ पवित्र है। इसी प्रकार, अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन करता है, ताकि तुम समझ लो।

﴿إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِذَا كَانُوا مَعَهُ عَلَىٰ أَمْرٍ جَامِعٍ لَمْ يَذْهَبُوا حَتَّىٰ يَسْتَأْذِنُوهُ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ۚ فَإِذَا اسْتَأْذَنُوكَ لِبَعْضِ شَأْنِهِمْ فَأْذَنْ لِمَنْ شِئْتَ مِنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمُ اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾

वास्तव में, ईमान वाले वह हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लायें और जब आपके साथ किसी सामूहिक कार्य पर होते हैं, तो जाते नहीं, जब तक आपसे अनुमति न लें, वास्तव में, जो आपसे अनुमति लेते हैं, वही अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं, तो जब वे आपसे अपने किसी कार्य के लिए अनुमति माँगें, तो आप उनमें से जिसे चाहें, अनुमति दें और उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करें। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमी दयावान् है।

﴿لَا تَجْعَلُوا دُعَاءَ الرَّسُولِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًا ۚ قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الَّذِينَ يَتَسَلَّلُونَ مِنْكُمْ لِوَاذًا ۚ فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَنْ تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾

और तुम मत बनाओ, रसूल के पुकारने को, परस्पर एक-दूसरे को पुकारने जैसा[1], अल्लाह तुममें से उन्हें जानता है, जो सरक जाते हैं, एक-दूसरे की आड़ लेकर। तो उन्हें सावधान रहना चाहिए, जो आपके आदेश का विरोध करते हैं कि उनपर कोई आपदा आ पड़े अथवा उनपर कोई दुःखदायी यातना आ जाये।

﴿أَلَا إِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ قَدْ يَعْلَمُ مَا أَنْتُمْ عَلَيْهِ وَيَوْمَ يُرْجَعُونَ إِلَيْهِ فَيُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا ۗ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ﴾

सावधान! अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है, वह जानता है, जिस (दशा) पर तुम हो और जिस दिन वे उसकी ओर फेरे जायेंगे, तो उन्हें बता[1] देगा, जो उन्होंने किया है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का अति ज्ञानी है।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: