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اسمُ (الحكيم) اسمٌ جليل من أسماء الله الحسنى، وكلمةُ (الحكيم) في...

अल्लाह के पालनहार होने में विश्वास

الهندية - हिन्दी

المؤلف माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी ، ماجد بن سليمان الرسي ، صالح بن عبد الله بن حميد
القسم خطب الجمعة
النوع صورة
اللغة الهندية - हिन्दी
المفردات الإيمان بالله - الخطب المنبرية
موضوع الخطبة: الإيمان بربوبية اللهالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم:طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4Tशीर्षक:अल्लाह के पालनहार होने में विश्वासإنَّ الْحَمْدَ لِلَّهِ، نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِينُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوذُ بِاللَّهِ مِنْ شُرُورِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا، مَنْ يَهْدِهِ اللَّهُ فَلَا مُضِلَّ لَهُ، وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَا هَادِيَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنْ لَا إلـٰه إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ.(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُون).(يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالاً كَثِيراً وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبا).(يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلاً سَدِيداً * يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزاً عَظِيما).प्रशंसाओं के पश्चात:सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है एवं सबसे दुष्ट चीज़ धर्म में अविष्कार किए गए नवोन्मेष हैं प्रत्येक अविष्कार की गई चीज़ नवाचार है, हर नवाचार गुमराही है एवं हर गुमराही नरक की ओर ले जाने वाली है। मुसलमानो! अल्लाह से भयभीत रहो एवं उसका डर अपनी बुद्धि एवं हृदय में जीवित रखो, उसके आज्ञाकार बने रहो एवं अवज्ञा से वंचित रहो, ज्ञात रखो कि अल्लाह तआ़ला में विश्वास रखने में चार बातें सम्मिलित हैं, प्रथम: सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ अल्लाह की उपस्थिति में विश्वास रखना, द्वितीय: उसके के पालनहार होने में विश्वास रखना, तीसरा: उसके पूज्य होने में विश्वास रखना, चौथा: उसके नामों एवं विशेषताओं में विश्वास रखना। इस उपदेश में हम केवल अल्लाह के पालनहार होने में विश्वास रखने के संबंध में कुछ बातें करेंगे।अल्लाह के दासो! अल्लाह के पालनहार होने में विश्वास रखने का अर्थ यह है कि इस बात में आस्था रखी जाए की अल्लाह तआ़ला तने तन्हा पालनहार है, इसमें उसका कोई साझी एवं संगी नहीं है, एवं ना कोई उसका सहयोगी एवं सहायक, (रब) पालनहार होने का अर्थ: जिसके हस्त में पैदा करने की शक्ति है, जो पूर्णतः महाराज है एवं जिसका आदेश चलता है, अर्थात जिस के आदेश से ब्रह्मांड का समाधान होता है, इस कारणवश उसके अतिरिक्त कोई पैदा करने वाला नहीं, कोई महाराज नहीं एवं कोई आदेश देने वाला नहीं, अल्लाह तआ़ला ने अपने निर्माण में अपने अकेले होने का उल्लेख करते हुए फ़रमाया: ﴿‏أَلاَ لَهُ الْخَلْقُ وَالأَمْرُ﴾अर्थात: सावधान! अल्लाह ही के लिए विशेष है पैदा करना एवं शासक होना।﴿بديع السماوات والأرض‏﴾अर्थात: वह प्रथम स्वरूप (इबतेदाअन) आकाश एवं पृथ्वी का निर्माण करने वाला है।﴿الحمد لله فاطر السماوات والأرض.अर्थात: समस्त प्रशंसाएं उस अल्लाह हेतु हैं जो प्रथम स्वरूप (इबतेदाअन) आकाश एवं पृथ्वी का निर्माण करने वाला है। विश्वासियो! अल्लाह ने जितनी सृष्टि का निर्माण किया उनमें सर्वश्रेष्ठ ये दस हैं: आकाश एवं पृथ्वी, सूर्य एवं चंद्रमा, रात्रि एवं दिन, मनुष्य एवं पशु, वर्षा एवं वायु। अल्लाह तआ़ला ने क़ुरआन के अधिकतम स्थानों पर इनके निर्माण का उल्लेख करके अपनी प्रशंसा की है, विशेष स्वरुप कुछ अध्यायों के प्रारंभिक श्लोकों में, उदाहरण स्वरूप: सूरतुल्- जासियह में अल्लाह का कथन है: حـمٰ * تنزيل الكتاب من الله العزيز الحكيم * إن في السماوات والأرض لآيات للمؤمنين * وفي خلقكم وما يبث من دابة آيات لقوم يوقنون * واختلاف الليل والنهار وما أنزل الله من السماء من رزق فأحيا به الأرض بعد موتها وتصريف الرياح آيات لقوم يعقلون.अर्थात: ह़ामीम! यह पुस्तक अल्लाह प्रमुख एवं बुद्धिमत्ता वाले की ओर से अवतरित की गई है, नि: संदेह आकाशों एवं पृथ्वी में विश्वासियों हेतु अनेक संकेत हैं एवं स्वयं तुम्हारे जन्म में एवं पशुओं के जन्म में जिन्हें वह फैलाता है आस्था रखने वाले समुदाय हेतु बहुत से संकेत हैं, एवं रात्रि दिवस के परिवर्तन में और जो कुछ रोज़ी-रोटी अल्लाह तआ़ला आकाश से अवतरित कर के पृथ्वी को उसकी मृत्यु के पश्चात जीवन प्रदान करता है, इसमें एवं वायुओं के परिवर्तन में उन व्यक्तियों हेतु संकेत हैं जो बुद्धि रखते हैं।शासन में अल्लाह के अकेले होने का साक्ष्य; अल्लाह का कथन है: وقل الحمد لله الذي لم يتخذ ولدا ولم يكن له شريك في الملك ولم يكن له ولي من الذل وكبره تكبيراअर्थात: यह कह दीजिए कि समस्त प्रशंसाऐं अल्लाह ही हेतु हैं, जो ना ही संतान रखता है एवं ना ही अपने शासन में कोई संगी साझी एवं ना ही वह दुर्बल है कि उसे किसी सहायक की आवश्यकता हो, और तू उसकी प्रशंसा का उल्लेख करता रह।इसके अतिरिक्त अल्लाह का कथन है: ﴿‏ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ.अर्थात: अल्लाह ही तुम सब का पालन-पोषण करने वाला है, उसी का शासन है, उसके अतिरिक्त जिन्हें तुम पुकार रहे हो वह खजूर के बीज के छिलके के भी मालिक नहीं हैं।आदेश (एवं ब्रह्मांड के समाधान) में अल्लाह के अकेले होने का साक्ष्य अल्लाह का यह कथन है: ألا له الخلق والأمرअर्थात: सावधान! अल्लाह ही के लिए विशेष है पैदा करना एवं शासक होना।इसके अतिरिक्त यह कि:إنما قولنا لشيء إذا أردناه أن نقول له كن فيكونअर्थात: हम जब किसी बात की इच्छा करते हैं तो केवल हमारा यह कथन पर्याप्त होता है; हो जा! तो वह हो जाती है।इसके अतिरिक्त यह कि:وإليه يرجع الأمر كله.अर्थात: संपूर्ण प्रकरण उसी की ओर पलटने वाले हैं। मुसलमानो! आदेश के दो भाग हैं: पहला धार्मिक आदेश द्वितीय ब्रह्मांडीय आदेश, धार्मिक आदेश का अर्थ वह आदेश है जिसका संबंध धर्म एवं सन्पदेश पहुंचाने वालों (नुबूव्वत) से है, इस कारणवश अल्लाह महान एवं सर्वोच्च अपने बुद्धिमत्ता के आवश्यकता अनुसार जिन आज्ञाओं (अहकाम) का आदेश देने की इच्छा करता है, देता है एवं जिन्हें स्थगित करना चाहता है कर देता है, वही मनुष्य हेतु ऐसी शरीयतों कोई स्थित करता है जो उनके लिए उचित एवं उनके स्थितियों को ठीक करने वाली होती हैं, एवं ऐसी उपासनाओं कर्मों को वैध स्थित करता है जो उसकी दृष्टि में स्वीकार्य हों, क्योंकि वह दासों की स्थितियों से भलीभांति अवगत है एवं उसके हित का भी ज्ञानी है और वह उन पर कृपालु भी है।आदेश का दूसरा भाग ब्रह्मांडीय आदेश है, इसका संबंध ब्रह्मांडीय घटनाओं के समाधान से है, अल्लाह तआ़ला ही बादलों के उड़ने, वर्षा के अवतरित होने, मृत्यु एवं जीवन, रोज़ी-रोटी एवं निर्माण, भूकंप, बलाओं के टालने ब्रह्मांड के नष्ट होने स्वरूप समस्त घटनाओं का आदेश देता है जो इस ब्रह्मांड में घटित होते हैं, जब अल्लाह तआ़ला इन घटनाओं में से किसी का आदेश देता है तो वह अवश्य घटित होकर रहती है उसे कोई पराजित कर सकता है और ना ही टाल सकता है, अल्लाह का कथन है: إ)إنما قولنا لشيء إذا أردناه أن نقول له كن فيكون(अर्थात: हम जब किसी बात की इच्छा करते हैं तो केवल हमारा यह कथन होता है; हो जा! तो वह हो जाती है।)وما أمرنا إلا واحدة كلمح بالبصر(अर्थात: हमारा आदेश केवल एक बार (एक वाक्य) ही होता है जैसे नेत्र का झपकना।अर्थात: जब हम किसी घटना को घटित करना चाहते हैं तो केवल हमारा एक बार कह देना ही पर्याप्त होता है कि (होजा) तो वह पलक झपकते ही प्रदर्शित हो जाती है, एक क्षण के लिए भी उसके घटित होने में विलंब नहीं होता।सारांश यह कि अल्लाह के आदेश के दो पाठ हैं: ब्राह्मांडीय आदेश एवं धार्मिक आदेश, जिसके आधार पर प्रलय के दिन लाभ एवं यातना का निर्णय होगा।अल्लाह तआ़ला हमें एवं आपको सर्वश्रेष्ठ क़ुरआन के लाभों से लाभार्थी करे, मुझे एवं आपको क़ुरआन के श्लोकों एवं बुद्धिमत्ता पर आधारित सलाहों से लाभार्थी करे, मैं अपनी यह बात कहते हए अपने लिए एवं आप संपूर्ण के लिए अल्लाह से क्षमा मांगता हूं, आप भी उस से क्षमा प्रार्थी हों। निः संदेह वह अधिक क्षमा स्वीकार करने वाला एवं अधिकतम दया करने वाला है। द्वितीय उपदेश:الحمد لله وحده، والصلاة والسلام على من لا نبي بعده، أما بعد!प्रशंसा ओं के पश्चात!अल्लाह के दासो! आप अल्लाह से डरें एवं ज्ञात रखें इस बात से कोई भी अवगत नहीं कि किसी सृष्टि ने अल्लाह के पालनहार होने को नकारा हो उन लोगों के अतिरिक्त जो अभिमान एवं अहंकार में डूबा हुआ हो, एवं अपनी बात को भी सत्य नहीं मानता हो जैसा कि फ़िरऔ़न ने किया जब कि उसने अपने समुदाय के लोगों से कहा: ﴿‏أَنَا رَبُّكُمُ الأَعْلَى﴾अर्थात: तुम समस्त का पालनहार मैं ही हूं।﴿‏يَا أَيُّهَا الْمَلأ مَا عَلِمْتُ لَكُم مِّنْ إلـٰه غَيْرِي﴾अर्थात: दरबारियो! मैं तो स्वयं के अतिरिक्त किसी को तुम्हारा पूज्य जानता ही नहीं।परंतु उसने अपनी आस्था के आधार पर ऐसा नहीं कहा बल्कि अभिमान अहंकार एवं अत्याचार के आधार पर कहा: ﴿‏وَجَحَدُوا بِهَا واسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا﴾.अर्थात: उन्होंंने नकार दिया, हालांकि उनके हृदय विश्वास कर चुके थे, केवल अत्याचार एवं अहंकार के आधार पर।-अल्लाह आप पर दया करे- आप यह भी ज्ञात रखें कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के युग में बहुदेववादी भी अल्लाह के पालनहार होने को स्वीकार करते थे, उन्हें इस बात में आस्था थी कि अल्लाह ही पैदा करने वाला, रोज़ी-रोटी देने वाला एवं ब्रह्मांड का समाधान करने वाला है परंतु फिर भी वह पूजा में मूर्तियों एवं असत्य पूज्यों को अल्लाह का साझी (शरीक) स्थित करते थे, उनके लिए विभिन्न प्रकार की पूजा करते थे, उदाहरण स्वरूप: प्रार्थना करना, बलिदान देना, मनोकामना करना एवं चढ़ावा चढ़ाना (नज़्र नियाज़ मानना) एवं शीश झुकाना आदि, इस कारणवश वे काफ़िर घोषित हुए। अल्लाह के पालनहार होने में आस्था रखने का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने अल्लाह के पालनहार होने में आस्था रखने (तौहीद--रुबूबीय्यत) की जो आवश्यकताएं हैं उनको विश्वसनीय नहीं समझा जोकि अल्लाह के अकेले पूज्य होने में आस्था रखना (तौहीद--उलूहीय्यत) है, यह बात प्रसिद्ध है कि केवल अल्लाह के पालनहार होने को स्वीकार करना इस्लाम में प्रवेश करने हेतु पर्याप्त नहीं है जब तक की इसके साथ पूजा-पाठ में भी अल्लाह के अकेले होने में भी आस्था ना रखा जाए, अल्लाह तआ़ला ने क़ुरआन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है बहुदेववादी इस बात को स्वीकार करते थे अल्लाह ही समस्त सृष्टि को पैदा करने वाला एवं पालनहार है: ﴿‏قُل لِّمَنِ الأَرْضُ وَمَن فِيهَا إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ * سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ أَفَلا تَذَكَّرُون * قُل لِّمَنِ الأَرْضُ وَمَن فِيهَا إِن كُنتُمْ تَعْلَمُون * سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ أَفَلا تَذَكَّرُون * قُلْ مَن رَّبُّ السَّمَاوَاتِ السَّبْعِ وَرَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيم * سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ أَفَلا تَتَّقُون * قُلْ مَن بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ يُجِيرُ وَلا يُجَارُ عَلَيْهِ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُون * سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ فَأَنَّى تُسْحَرُون﴾.अर्थात: प्रश्न तो कीजिए कि पृथ्वी एवं उसकी समस्त वस्तुएं किसकी हैं? बतलाओ यदि अवगत हो? तुरंत उत्तर देंगे कि अल्लाह की, कह दीजिए कि तुम सलाह क्यों नहीं प्राप्त करते, प्रश्न कीजिए कि सातों आकाशों का एवं महान सिंहासन का पालनहार कौन है? वे उत्तर देंगे कि अल्लाह ही है, फिर कहिए कि तुम भयभीत क्यों नहीं होते, प्रश्न कीजिए कि समस्त चीज़ों का नियंत्रण किसके हस्त में है? जो शरण देता है एवं जिसकी