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السيد

كلمة (السيد) في اللغة صيغة مبالغة من السيادة أو السُّؤْدَد،...

البر

البِرُّ في اللغة معناه الإحسان، و(البَرُّ) صفةٌ منه، وهو اسمٌ من...

القوي

كلمة (قوي) في اللغة صفة مشبهة على وزن (فعيل) من القرب، وهو خلاف...

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

1- ﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا ۚ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ﴾


पवित्र है वह जिसने रात्रि के कुछ क्षण में अपने भक्त[1] को मस्जिदे ह़राम (मक्का) से मस्जिदे अक़्सा तक यात्रा कराई। जिसके चतुर्दिग हमने सम्पन्नता रखी है, ताकि उसे अपनी कुछ निशानियों का दर्शन कराएँ। वास्तव में, वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।

2- ﴿وَآتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِبَنِي إِسْرَائِيلَ أَلَّا تَتَّخِذُوا مِنْ دُونِي وَكِيلًا﴾


और हमने मूसा को पुस्तक प्रदान की और उसे बनी इस्राईल के लिए मार्गदर्शन का साधन बनाया कि मेरे सिवा किसी को कार्यसाधक[1] न बनाओ।

3- ﴿ذُرِّيَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَبْدًا شَكُورًا﴾


हे उनकी संतति जिन्हें हमने नूह़ के साथ (नौका) में सवार किया। वास्तव में, वह अति कृतज्ञ[1] भक्त था।

4- ﴿وَقَضَيْنَا إِلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ فِي الْكِتَابِ لَتُفْسِدُنَّ فِي الْأَرْضِ مَرَّتَيْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّا كَبِيرًا﴾


और हमने बनी इस्राईल को, उनकी पुस्तक में सूचित कर दिया था कि तुम इस[1] धरती में दो बार उपद्रव करोगे और बड़ा अत्याचार करोगे।

5- ﴿فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ أُولَاهُمَا بَعَثْنَا عَلَيْكُمْ عِبَادًا لَنَا أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍ فَجَاسُوا خِلَالَ الدِّيَارِ ۚ وَكَانَ وَعْدًا مَفْعُولًا﴾


तो जब प्रथम उपद्रव का समय आया, तो हमने तुमपर अपने प्रबल योध्दा भक्तों को भेज दिया, जो नगरों में घुस गये और इस वचन को पूरा होना ही[1] था।

6- ﴿ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ الْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَاكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَاكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا﴾


फिर हमने उनपर तुम्हें पुनः प्रभुत्व दिया तथा धनों और पुत्रों द्वारा तुम्हारी सहायता की और तुम्हारी संख्या बहुत अधिक कर दी।

7- ﴿إِنْ أَحْسَنْتُمْ أَحْسَنْتُمْ لِأَنْفُسِكُمْ ۖ وَإِنْ أَسَأْتُمْ فَلَهَا ۚ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ لِيَسُوءُوا وُجُوهَكُمْ وَلِيَدْخُلُوا الْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَلِيُتَبِّرُوا مَا عَلَوْا تَتْبِيرًا﴾


यदि तुम भला करोगे, तो अपने लिए और यदि बुरा करोगे, तो अपने लिए। फिर जब दूसरे उपद्रव का समय आया ताकि (शत्रु) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें और मस्जिद (अक़्सा) में वैसे ही प्रवेश कर जायेँ, जैसे प्रथम बार प्रवेश कर गये और ताकि जो भी उनके हाथ आये, उसे पूर्णता नाश[1] कर दे।

8- ﴿عَسَىٰ رَبُّكُمْ أَنْ يَرْحَمَكُمْ ۚ وَإِنْ عُدْتُمْ عُدْنَا ۘ وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ حَصِيرًا﴾


संभव है कि तुम्हारा पालनहार तुमपर दया करे और यदि तुम प्रथम स्थिति पर आ गये, तो हमभी फिर[1] आयेंगे और हमने नरक को काफ़िरों के लिए कारावास बना दिया है।

9- ﴿إِنَّ هَٰذَا الْقُرْآنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا كَبِيرًا﴾


वास्तव में, ये क़ुर्आन वह डगर दिखाता है, जो सबसे सीधी है और उन ईमान वालों को शुभ सूचना देता है, जो सदाचार करते हैं कि उन्हीं के लिए बहुत बड़ा प्रतिफल है।

10- ﴿وَأَنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا﴾


और जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, हमने उनके लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

11- ﴿وَيَدْعُ الْإِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاءَهُ بِالْخَيْرِ ۖ وَكَانَ الْإِنْسَانُ عَجُولًا﴾


और मनुष्य (क्षुब्ध होकर) अभिशाप करने लगता[1] है, जैसे भलाई के लिए प्रार्थना करता है और मनुष्य बड़ा ही उतावला है।

12- ﴿وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ آيَتَيْنِ ۖ فَمَحَوْنَا آيَةَ اللَّيْلِ وَجَعَلْنَا آيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِتَبْتَغُوا فَضْلًا مِنْ رَبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوا عَدَدَ السِّنِينَ وَالْحِسَابَ ۚ وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنَاهُ تَفْصِيلًا﴾


और हमने रात्री तथा दिवस को दो प्रतीक बनाया, फिर रात्री के प्रतीक को हमने अन्धकार बनाया तथा दिवस के प्रतीक को प्रकाशयुक्त, ताकि तुम अपने पालनहार के अनुग्रह की (जीविका) की खोज करो और वर्षों तथा ह़िसाब की गिनती जानो तथा हमने प्रत्येक चीज़ का सविस्तार वर्णन कर दिया।

13- ﴿وَكُلَّ إِنْسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ ۖ وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنْشُورًا﴾


और प्रत्येक मनुष्य के कर्मपत्र को हमने उसके गले का हार बना दिया है और हम उसके लिए प्रलय के दिन एक कर्मलेख निकालेंगे, जिसे वह खुला हुआ पायेगा।

14- ﴿اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَىٰ بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا﴾


अपना कर्मलेख पढ़ लो, आज तू स्वयं अपना ह़िसाब लेने के लिए पर्याप्त है।

15- ﴿مَنِ اهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۚ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّىٰ نَبْعَثَ رَسُولًا﴾


जिसने सीधी राह अपनायी, उसने अपने ही लिए सीधी राह अपनायी और जो सीधी राह से विचलित हो गया, उसका (दुष्परिणाम) उसीपर है और कोई दूसरे का बोझ (अपने ऊपर) नहीं लादेगा[1] और हम यातना देने वाले नहीं हैं, जब तक कि कोई रसूल न भेजें[2]।

16- ﴿وَإِذَا أَرَدْنَا أَنْ نُهْلِكَ قَرْيَةً أَمَرْنَا مُتْرَفِيهَا فَفَسَقُوا فِيهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنَاهَا تَدْمِيرًا﴾


और जब हम किसी बस्ती का विनाश करना चाहते हैं, तो उसके सम्पन्न लोगों को आदेश[1] देते हैं, फिर वे उसमें उपद्व करने लगते[2] हैं, तो उसपर यातना की बात सिध्द हो जाती है और हम उसका पूर्णता उनसूलन कर देते हैं।

17- ﴿وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُونِ مِنْ بَعْدِ نُوحٍ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا﴾


और हमने बहुत-सी जातियों का नूह़ के पश्चात् विनाश किया है और आपका पालनहार अपने दासों के पापों से सूचित होने-देखने को बहुत है।

18- ﴿مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهُ فِيهَا مَا نَشَاءُ لِمَنْ نُرِيدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهُ جَهَنَّمَ يَصْلَاهَا مَذْمُومًا مَدْحُورًا﴾


जो संसार ही चाहता हो, हम उसे यहीं दे देते हैं, जो हम चाहते हैं, जिसके लिए चाहते हैं। फिर हम उसका परिणाम (परलोक में) नरक बना देते हैं, जिसमें वह निंदित-तिरस्कृत होकर प्रवेश करेगा।

19- ﴿وَمَنْ أَرَادَ الْآخِرَةَ وَسَعَىٰ لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَٰئِكَ كَانَ سَعْيُهُمْ مَشْكُورًا﴾


तथा जो परलोक चाहता हो और उसके लिए प्रयास करता हो और वह एकेश्वरवादी हो, तो वही हैं, जिनके प्रयास का आदर सम्मान किया जायेगा।

20- ﴿كُلًّا نُمِدُّ هَٰؤُلَاءِ وَهَٰؤُلَاءِ مِنْ عَطَاءِ رَبِّكَ ۚ وَمَا كَانَ عَطَاءُ رَبِّكَ مَحْظُورًا﴾


हम प्रत्येक की सहायता करते हैं, इनकी भी और उनकी भी और आपके पालनहार का प्रदान (किसी से) निषेधित (रोका हुआ) नहीं[1] है।

21- ﴿انْظُرْ كَيْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ وَلَلْآخِرَةُ أَكْبَرُ دَرَجَاتٍ وَأَكْبَرُ تَفْضِيلًا﴾


आप विचार करें कि कैसे हमने (संसार में) उनमें से कुछ को कुछ पर प्रधानता दी है और निश्चय परलोक के पद और प्रधानता और भी अधिक होगी।

22- ﴿لَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًا مَخْذُولًا﴾


(हे मानव!) अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य न बना, अन्यथा बुरा और असहाय होकर रह जायेगा।

23- ﴿۞ وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ۚ إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا﴾


और (हे मनुष्य!) तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो तथा माता-पिता के साथ उपकार करो, यदि तेरे पास दोनों में से एक वृध्दावस्था को पहुँच जाये अथवा दोनों, तो उन्हें उफ़ तक न कहो और न झिड़को और उनसे सादर बात बोलो।

24- ﴿وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُلْ رَبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا﴾


और उनके लिए विनम्रता का बाज़ू दया से झुका[1] दो और प्रार्थना करोः हे मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जैसे उन दोनों ने बाल्यावस्था में, मेरा लालन-पालन किया है।

25- ﴿رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمْ ۚ إِنْ تَكُونُوا صَالِحِينَ فَإِنَّهُ كَانَ لِلْأَوَّابِينَ غَفُورًا﴾


तुम्हारा पालनहार अधिक जानता है, जो कुछ तुम्हारी अन्तरात्माओं (मन) में है। यदि तुम सदाचारी रहे, तो वह अपनी ओर ध्यानमग्न रहने वालों के लिए अति क्षमावान् है।

26- ﴿وَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا﴾


और समीपवर्तियों को उनका स्वत्व (हिस्सा) दो तथा दरिद्र और यात्री को और अपव्यय[1] न करो।

27- ﴿إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ ۖ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِرَبِّهِ كَفُورًا﴾


वास्तव में, अपव्ययी शैतान के भाई हैं और शैतान अपने पालनहार का अति कृतघ्न है।

28- ﴿وَإِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ابْتِغَاءَ رَحْمَةٍ مِنْ رَبِّكَ تَرْجُوهَا فَقُلْ لَهُمْ قَوْلًا مَيْسُورًا﴾


और यदि आप उनसे विमुख हों, अपने पालनहार की दया की खोज के लिए जिसकी आशा रखते हों, तो उनसे सरल[1] बात बोलें।

29- ﴿وَلَا تَجْعَلْ يَدَكَ مَغْلُولَةً إِلَىٰ عُنُقِكَ وَلَا تَبْسُطْهَا كُلَّ الْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُومًا مَحْسُورًا﴾


और अपना हाथ अपनी गर्दन से न बाँध[1] लो और न उसे पूरा खोल दो कि निन्दित, विवश होकर रह जाओ।

30- ﴿إِنَّ رَبَّكَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا﴾


वास्तव में, आपका पालनहार ही विस्तृत कर देता है जीविका को जिसके लिए चाहता है, तथा संकीर्ण कर देता है। वास्तव में, वही अपने दासों (बंदों) से अति सूचित[1] देखने वाला[2] है।

31- ﴿وَلَا تَقْتُلُوا أَوْلَادَكُمْ خَشْيَةَ إِمْلَاقٍ ۖ نَحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَإِيَّاكُمْ ۚ إِنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْئًا كَبِيرًا﴾


और अपनी संतान को निर्धन हो जाने के भय से वध न करो, हम उन्हें तथा तुम्हें जीविका प्रदान करेंगे, वास्तव में, उन्हें वध करना महा पाप है।

32- ﴿وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنَا ۖ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلًا﴾


और व्यभिचार के समीप भी न जाओ, वास्तव में, वह निर्लज्जा तथा बुरी रीति है।

33- ﴿وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ ۗ وَمَنْ قُتِلَ مَظْلُومًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِيِّهِ سُلْطَانًا فَلَا يُسْرِفْ فِي الْقَتْلِ ۖ إِنَّهُ كَانَ مَنْصُورًا﴾


और किसी प्राण को जिसे अल्लाह ने ह़राम (अवैध) किया है, वध न करो, परन्तु धर्म विधान[1] के अनुसार और जो अत्याचार से वध (निहत) किया गया, हमने उसके उत्तराधिकारी को अधिकार[2] प्रदान किया है। अतः वह वध करने में अतिक्रमण[3] न करे, वास्तव में, उसे सहायता दी गयी है।

34- ﴿وَلَا تَقْرَبُوا مَالَ الْيَتِيمِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّىٰ يَبْلُغَ أَشُدَّهُ ۚ وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ ۖ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْئُولًا﴾


और अनाथ के धन के समीप भी न जाओ, परन्तु ऐसी रीति से, जो उत्तम हो, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाये और वचन पूरा करो, वास्तव में, वचन के विषय में प्रश्न किया जायेगा।

35- ﴿وَأَوْفُوا الْكَيْلَ إِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا﴾


और पूरा नापकर दो, जब नापो और सह़ीह़ तराजू से तोलो। ये अधिक अच्छा और इसका परिणाम उत्तम है।

36- ﴿وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ ۚ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولَٰئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْئُولًا﴾


और ऐसी बात के पीछे न पड़ो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान न हो, निश्चय कान तथा आँख और दिल, इन सबके बारे में (प्रलय के दिन) प्रश्न किया जायेगा[1]।

37- ﴿وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا ۖ إِنَّكَ لَنْ تَخْرِقَ الْأَرْضَ وَلَنْ تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُولًا﴾


और धरती में अकड़कर न चलो, वास्तव में, न तुम धरती को फाड़ सकोगे और न लम्बाई में पर्वतों तक पहुँच सकोगे।

38- ﴿كُلُّ ذَٰلِكَ كَانَ سَيِّئُهُ عِنْدَ رَبِّكَ مَكْرُوهًا﴾


ये सब बातें हैं। इनमें बुरी बात आपके पालनहार को अप्रिय हैं।

39- ﴿ذَٰلِكَ مِمَّا أَوْحَىٰ إِلَيْكَ رَبُّكَ مِنَ الْحِكْمَةِ ۗ وَلَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَتُلْقَىٰ فِي جَهَنَّمَ مَلُومًا مَدْحُورًا﴾


ये तत्वदर्शिता की वो बातें हैं, जिनकी वह़्यी (प्रकाशना) आपकी ओर आपके पालनहार ने की है और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य न बना लेना, अन्यथा नरक में निन्दित तिरस्कृत करके फेंक दिये जाओगे।

40- ﴿أَفَأَصْفَاكُمْ رَبُّكُمْ بِالْبَنِينَ وَاتَّخَذَ مِنَ الْمَلَائِكَةِ إِنَاثًا ۚ إِنَّكُمْ لَتَقُولُونَ قَوْلًا عَظِيمًا﴾


क्या तुम्हारे पालनहार ने तुम्हें पुत्र प्रदान करने के लिए विशेष कर लिया है और स्वयं फ़रिश्तों को पुत्रियाँ बना लिया है? वास्तव में, तुम बहुत बड़ी बात कह रहे हो[1]।

41- ﴿وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ لِيَذَّكَّرُوا وَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا نُفُورًا﴾


और हमने विविध प्रकार से इस क़ुर्आन में (तथ्यों का) वर्णन कर दिया है, ताकि लोग शिक्षा ग्रहण करें, परन्तु उसने उनकी घृणा को और अधिक कर दिया।

42- ﴿قُلْ لَوْ كَانَ مَعَهُ آلِهَةٌ كَمَا يَقُولُونَ إِذًا لَابْتَغَوْا إِلَىٰ ذِي الْعَرْشِ سَبِيلًا﴾


आप कह दें कि यदि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य होते, जैसा कि वे (मिश्रणवादी) कहते हैं, तो वे अर्श (सिंहासन) के स्वामी (अल्लाह) की ओर अवश्य कोई राह[1] खोजते।

43- ﴿سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوًّا كَبِيرًا﴾


वह पवित्र और बहुत उच्च है, उन बातों से जिन्हें वे बनाते हैं।

44- ﴿تُسَبِّحُ لَهُ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ ۚ وَإِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ وَلَٰكِنْ لَا تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ ۗ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا﴾


उसकी पवित्रता का वर्णन कर रहे हैं सातों आकाश तथा धरती और जो कुछ उनमें है और नहीं है कोई चीज़ परन्तु वह उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन कर रही है, किन्तु तुम उनके पवित्रता गान को समझते नहीं हो। वास्तव में, वह अति सहिष्णु, क्षमाशील है।

45- ﴿وَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ جَعَلْنَا بَيْنَكَ وَبَيْنَ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ حِجَابًا مَسْتُورًا﴾


और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते, एक छुपा हुआ आवरण (पर्दा) बना देते[1] हैं।

46- ﴿وَجَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَنْ يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا ۚ وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِي الْقُرْآنِ وَحْدَهُ وَلَّوْا عَلَىٰ أَدْبَارِهِمْ نُفُورًا﴾


तथा उनके दिलों पर ऐसे खोल चढ़ा देते हैं कि उस (क़ुर्आन) को न समझें और उनके कानों में बोझ और जब आप अपने अकेले पालनहार की चर्चा क़ुर्आन में करते हैं, तो वह घृणा से मुँह फेर लेते हैं।

47- ﴿نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَسْتَمِعُونَ بِهِ إِذْ يَسْتَمِعُونَ إِلَيْكَ وَإِذْ هُمْ نَجْوَىٰ إِذْ يَقُولُ الظَّالِمُونَ إِنْ تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًا مَسْحُورًا﴾


और हम उनके विचारों से भली-भाँति अवगत हैं, जब वे कान लगाकर आपकी बात सुनते हैं और जब वे आपस में कानाफूसी करते हैं, जब वे अत्याचारी कहते हैं कि तुम लोग तो बस एक जादू किये हुए व्यक्ति का अनुसरण[1] करते हो।

48- ﴿انْظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا لَكَ الْأَمْثَالَ فَضَلُّوا فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًا﴾


सोचिए कि वे आपके लिए कैसे उदाहरण दे रहे हैं? अतः वे कुपथ हो गये, वे सीधी राह नहीं पा सकेंगे।

49- ﴿وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا﴾


और उन्होंने कहाः क्या हम, जब अस्थियाँ और चूर्ण-विचूर्ण हो जायेंगे तो क्या हम वास्तव में, नई उत्पत्ति में पुनः जीवित कर दिये[1] जायेंगे?

50- ﴿۞ قُلْ كُونُوا حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا﴾


आप कह दें कि पत्थर बन जाओ या लोहा।

51- ﴿أَوْ خَلْقًا مِمَّا يَكْبُرُ فِي صُدُورِكُمْ ۚ فَسَيَقُولُونَ مَنْ يُعِيدُنَا ۖ قُلِ الَّذِي فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُءُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هُوَ ۖ قُلْ عَسَىٰ أَنْ يَكُونَ قَرِيبًا﴾


अथवा कोई उत्पत्ति, जो तुम्हारे मन में इससे बड़ी हो। फिर वे पूछते हैं कि कौन हमें पुनः जीवित करेगा? आप कह दें: वही, जिसने प्रथम चरण में तुम्हारी उत्पत्ति की है। फिर वे आपके आगे सिर हिलायेंगे[1] और कहेंगेः ऐसा कब होगा? आप कह दें कि संभवता वह समीप ही है।

52- ﴿يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِ وَتَظُنُّونَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا﴾


जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए स्वीकार कर लोगे[1] और ये सोचोगे कि तुम (संसार में) थोड़े ही समय रहे हो।

53- ﴿وَقُلْ لِعِبَادِي يَقُولُوا الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ ۚ إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنْزَغُ بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوًّا مُبِينًا﴾


और आप मेरे भक्तों से कह दें कि वह बात बोलें, जो उत्तम हो, वास्तव में, शैतान उनके बीच बिगाड़ उत्पन्न करना चाहता[1] है। निश्चय शैतान मनुष्य का खुला शत्रु है।

54- ﴿رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ ۖ إِنْ يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِنْ يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ ۚ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا﴾


तुम्हारा पालनहार, तुमसे भली-भाँति अवगत है, यदि चाहे, तो तुमपर दया करे अथवा यदि चाहे, तो तुम्हें यातना दे और हमने आपको उनपर निरीक्षक बनाकर नहीं भेजा[1] है।

55- ﴿وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِيِّينَ عَلَىٰ بَعْضٍ ۖ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا﴾


(हे नबी!) आपका पालनहार भली-भाँति अवगत है उससे, जो आकाशों तथा धरती में है और हमने प्रधानता दी है कुछ नबियों को कुछ पर और हमने दावूद को ज़बूर (पुस्तक) प्रदान की।

56- ﴿قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِهِ فَلَا يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنْكُمْ وَلَا تَحْوِيلًا﴾


आप कह दें कि उन्हें पुकारो, जिन्हें उस (अल्लाह) के सिवा (पूज्य) समझते हो। न वे तुमसे दुःख दूर कर सकते और न (तुम्हारी दशा) बदल सकते हैं।

57- ﴿أُولَٰئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَىٰ رَبِّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ ۚ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًا﴾


वास्तव में, जिन्हें ये लोग[1] पुकारते हैं, वे स्वयं अपने पालनहार का सामीप्य प्राप्त करने का साधन[2] खोजते हैं कि कौन अधिक समीप है? और उसकी दया की आशा रखते हैं और उसकी यातना से डरते हैं। वास्तव में, आपके पालनहार की यातना डरने योग्य है।

58- ﴿وَإِنْ مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ الْقِيَامَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًا شَدِيدًا ۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا﴾


और कोई (अत्याचारी) बस्ती नहीं है, परन्तु हम उसे प्रलय के दिन से पहले ध्वस्त करने वाले या कड़ी यातना देने वाले हैं। ये (अल्लाह के) लेख में अंकित है।

59- ﴿وَمَا مَنَعَنَا أَنْ نُرْسِلَ بِالْآيَاتِ إِلَّا أَنْ كَذَّبَ بِهَا الْأَوَّلُونَ ۚ وَآتَيْنَا ثَمُودَ النَّاقَةَ مُبْصِرَةً فَظَلَمُوا بِهَا ۚ وَمَا نُرْسِلُ بِالْآيَاتِ إِلَّا تَخْوِيفًا﴾


और हमें नहीं रोका इससे कि हम निशानियाँ भेजें, किन्तु इस बात ने कि विगत लोगों ने उन्हें झुठला[1] दिया और हमने समूद को ऊँटनी का खुला चमत्कार दिया, तो उन्होंने उसपर अत्याचार किया और हम चमत्कार डराने के लिए ही भेजते हैं।

60- ﴿وَإِذْ قُلْنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِالنَّاسِ ۚ وَمَا جَعَلْنَا الرُّؤْيَا الَّتِي أَرَيْنَاكَ إِلَّا فِتْنَةً لِلنَّاسِ وَالشَّجَرَةَ الْمَلْعُونَةَ فِي الْقُرْآنِ ۚ وَنُخَوِّفُهُمْ فَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا طُغْيَانًا كَبِيرًا﴾


और (हे नबी!) याद करो, जब हमने आपसे कह दिया था कि आपके पालनहार ने लोगों को अपने नियंत्रण में ले रखा है और ये जो कुछ हमने आपको दिखाया,[1] उसको और उस वृक्ष को जिसपर क़ुर्आन में धिक्कार की गयी है, हमने लोगों के लिए एक परीक्षा बना दिया[2] है और हम उन्हें चेतावनी पर चेतावनी दे रहे हैं, फिर भी ये उनकी अवज्ञा को ही अधिक करती जा रही है।

61- ﴿وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ قَالَ أَأَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِينًا﴾


और (याद करो), जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सबने सज्दा किया। उसने कहाः क्या मैं उसे सज्दा करूँ, जिसे तूने गारे से उत्पन्न किया है?

62- ﴿قَالَ أَرَأَيْتَكَ هَٰذَا الَّذِي كَرَّمْتَ عَلَيَّ لَئِنْ أَخَّرْتَنِ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَأَحْتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُ إِلَّا قَلِيلًا﴾


(तथा) उसने कहाः तू बता, क्या यही है, जिसे तूने मुझपर प्रधानता दी है? यदि तूने मुझे प्रलय के दिन तक अवसर दिया, तो मैं उसकी संतति को अपने नियंत्रण में कर लूँगा[1] कुछ के सिवा।

63- ﴿قَالَ اذْهَبْ فَمَنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَاؤُكُمْ جَزَاءً مَوْفُورًا﴾


अल्लाह ने कहाः "चले जाओ", जो उनमें से तेरा अनुसरण करेगा, तो निश्चय नरक तुमसबका प्रतिकार (बदला) है, भरपूर बदला।

64- ﴿وَاسْتَفْزِزْ مَنِ اسْتَطَعْتَ مِنْهُمْ بِصَوْتِكَ وَأَجْلِبْ عَلَيْهِمْ بِخَيْلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكْهُمْ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ وَعِدْهُمْ ۚ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلَّا غُرُورًا﴾


तू उनमें से जिसे हो सके, अपनी ध्वनि[1] से बहका ले और उनपर अपनी सवार और पैदल (सेना) चढ़ा[2] ले और उनका (उनके) धनों और संतानों में साझी बन[3] जा तथा उन्हें (मिथ्या) वचन दे और शैतान उन्हें धोखे के सिवा (कोई) वचन नहीं देता।

65- ﴿إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ ۚ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ وَكِيلًا﴾


वास्तव में, जो मेरे भक्त हैं, उनपर तेरा कोई वश नहीं चल सकता और आपके पालनहार का सहायक होना ये बहुत है।

66- ﴿رَبُّكُمُ الَّذِي يُزْجِي لَكُمُ الْفُلْكَ فِي الْبَحْرِ لِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا﴾


तुम्हारा पालनहार तो वह है, जो तुम्हारे लिए सागर में नौका चलाता है, ताकि तुम उसकी जीविका की खोज करो, वास्तव में, वह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।

67- ﴿وَإِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فِي الْبَحْرِ ضَلَّ مَنْ تَدْعُونَ إِلَّا إِيَّاهُ ۖ فَلَمَّا نَجَّاكُمْ إِلَى الْبَرِّ أَعْرَضْتُمْ ۚ وَكَانَ الْإِنْسَانُ كَفُورًا﴾


और जब सागर में तुमपर कोई आपदा आ पड़ती है, तो अल्लाह के सिवा जिन्हें तुम पुकारते हो, खो देते (भूल जाते) हो[1] और जब तुम्हें बचाकर थल तक पहुँचा देता है, तो मुख फेर लेते हो और मनुष्य है ही अति कृतघ्न।

68- ﴿أَفَأَمِنْتُمْ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ أَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ وَكِيلًا﴾


क्या तुम निर्भय हो गये हो कि अल्लाह तुम्हें थल (धरती) ही में धंसा दे अथवा तुमपर फथरीली आँधी भेज दे? फिर तुम अपना कोई रक्षक न पाओ।

69- ﴿أَمْ أَمِنْتُمْ أَنْ يُعِيدَكُمْ فِيهِ تَارَةً أُخْرَىٰ فَيُرْسِلَ عَلَيْكُمْ قَاصِفًا مِنَ الرِّيحِ فَيُغْرِقَكُمْ بِمَا كَفَرْتُمْ ۙ ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ عَلَيْنَا بِهِ تَبِيعًا﴾


या तुम निर्भय हो गये हो कि फिर उस (सागर) में तुम्हें दूसरी बार ले जाये, फिर तुमपर वायु का प्रचण्ड झोंका भेज दे, फिर तुम्हें डुबा दे, उस कुफ़्र के बदले, जो तुमने किया है। फिर तुम अपने लिए उसे नहीं पाओगे, जो हमपर इसका दोष[1] धरे।

70- ﴿۞ وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَىٰ كَثِيرٍ مِمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلًا﴾


और हमने बनी आदम (मानव) को प्रधानता दी और उन्हें थल और जल में सवार[1] किया और उन्हें स्वच्छ चीज़ों से जीविका प्रदान की और हमने उन्हें बहुत-सी उन चीज़ों पर प्रधानता दी, जिनकी हमने उत्पत्ति की है।

71- ﴿يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ ۖ فَمَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَأُولَٰئِكَ يَقْرَءُونَ كِتَابَهُمْ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا﴾


जिस दिन हम, सब लोगों को उनके अग्रणी के साथ बुलायेंगे, तो जिनका कर्मलेख उनके सीधे हाथ में दिया जायेगा, तो वही अपना कर्मलेख पढ़ेंगे और उनपर धागे बराबर भी अत्याचार नहीं किया जायेगा।

72- ﴿وَمَنْ كَانَ فِي هَٰذِهِ أَعْمَىٰ فَهُوَ فِي الْآخِرَةِ أَعْمَىٰ وَأَضَلُّ سَبِيلًا﴾


और जो इस (संसार) में अंधा[1] रह गया, तो वह आख़िरत (परलोक) में भी अन्धा और अधिक कुपथ होगा।

73- ﴿وَإِنْ كَادُوا لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ لِتَفْتَرِيَ عَلَيْنَا غَيْرَهُ ۖ وَإِذًا لَاتَّخَذُوكَ خَلِيلًا﴾


और (हे नबी!) वह (काफ़िर) समीप था कि आपको उस वह़्यी से फेर दें, जो हमने आपकी ओर भेजी है, ताकि आप हमारे ऊपर अपनी ओर से कोई दूसरी बात घड़ लें और उस समय वे आपको अवश्य अपना मित्र बना लेते।

74- ﴿وَلَوْلَا أَنْ ثَبَّتْنَاكَ لَقَدْ كِدْتَ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْئًا قَلِيلًا﴾


और यदि हम आपको सुदृढ़ न रखते, तो आप उनकी ओर कुछ न कुछ झुक जाते।

75- ﴿إِذًا لَأَذَقْنَاكَ ضِعْفَ الْحَيَاةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًا﴾


तब हम आपको जीवन की दुगुनी तथा मरण की दोहरी यातना चखाते। फिर आप अपने लिए हमारे ऊपर कोई सहायक न पाते।

76- ﴿وَإِنْ كَادُوا لَيَسْتَفِزُّونَكَ مِنَ الْأَرْضِ لِيُخْرِجُوكَ مِنْهَا ۖ وَإِذًا لَا يَلْبَثُونَ خِلَافَكَ إِلَّا قَلِيلًا﴾


और समीप है कि वे आपको इस धरती (मक्का) से विचला दें, ताकि आपको उससे निकाल दें, तब व आपके पश्चात् कुछ ही दिन रह सकेंगे।

77- ﴿سُنَّةَ مَنْ قَدْ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنْ رُسُلِنَا ۖ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِيلًا﴾


ये[1] उसके लिए नियम रहा है, जिसे हमने आपसे पहले अपने रसूलों में से भेजा है और आप हमारे नियम में कोई परिवर्तन नहीं पायेंगे।

78- ﴿أَقِمِ الصَّلَاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَىٰ غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ ۖ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا﴾


आप नमाज़ की स्थापना करें, सूर्यास्त से रात के अन्धेरे[1] तक तथा प्रातः (फ़ज्र के समय) क़ुर्आन पढ़िये। वास्तव में, प्रातः क़ुर्आन पढ़ना उपस्थिति का समय[2] है।

79- ﴿وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَكَ عَسَىٰ أَنْ يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَحْمُودًا﴾


तथा आप रात के कुछ समय जागिए, फिर "तह़जुद[1]" पढ़िये। ये आपके लिए अधिक (नफ़्ल) है। संभव है आपका पालनहार आपको "मक़ामे मह़मूद[2]" प्रदान कर दे।

80- ﴿وَقُلْ رَبِّ أَدْخِلْنِي مُدْخَلَ صِدْقٍ وَأَخْرِجْنِي مُخْرَجَ صِدْقٍ وَاجْعَلْ لِي مِنْ لَدُنْكَ سُلْطَانًا نَصِيرًا﴾


और प्रार्थना करें कि मेरे पालनहार! मुझे प्रवेश[1] दे सत्य के साथ, निकाल सत्य के साथ तथा मेरे लिए अपनी ओर से सहायक प्रभुत्व बना दे।

81- ﴿وَقُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ ۚ إِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا﴾


तथा कहिए कि सत्य आ गया और असत्य ध्वस्त-निरस्त हो गया, वास्तव में, असत्य को धवस्त-निरस्त होना ही है[1]।

82- ﴿وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ ۙ وَلَا يَزِيدُ الظَّالِمِينَ إِلَّا خَسَارًا﴾


और हम क़ुर्आन में से वह चीज़ उतार रहे हैं, जो आरोग्य तथा दया है, ईमान वालों के लिए और वह अत्याचारियों की क्षति को ही अधिक करता है।

83- ﴿وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنْسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَىٰ بِجَانِبِهِ ۖ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ يَئُوسًا﴾


और जब हम मानव पर उपकार करते हैं, तो मुख फेर लेता है और दूर हो जाता[1] है तथा जब उसे दुःख पहुँचता है, तो निराश हो जाता है।

84- ﴿قُلْ كُلٌّ يَعْمَلُ عَلَىٰ شَاكِلَتِهِ فَرَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ أَهْدَىٰ سَبِيلًا﴾


आप कह दें कि प्रत्येक अपनी आस्था के अनुसार कर्म कर रहा है, तो आपका पालनहार ही भली-भाँति जान रहा है कि कौन अधिक सीधी डगर पर है।

85- ﴿وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ ۖ قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي وَمَا أُوتِيتُمْ مِنَ الْعِلْمِ إِلَّا قَلِيلًا﴾


(हे नबी!) लोग आपसे रूह़[1] के विषय में पूछते हैं, आप कह दें: रूह़ मेरे पालनहार के आदेश से है और तुम्हें जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत थोड़ा है।

86- ﴿وَلَئِنْ شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِ عَلَيْنَا وَكِيلًا﴾


और यदि हम चाहें, तो वह सब कुछ ले जायें, जो आपकी ओर हमने वह़्यी किया है, फिर आप हमपर अपना कोई सहायक नहीं पायेंगे।

87- ﴿إِلَّا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ ۚ إِنَّ فَضْلَهُ كَانَ عَلَيْكَ كَبِيرًا﴾


किन्तु आपके पालनहार की दया के कारण (ये आपको प्राप्त है)। वास्तव में, उसका प्रदान आपपर बहुत बड़ा है।

88- ﴿قُلْ لَئِنِ اجْتَمَعَتِ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَىٰ أَنْ يَأْتُوا بِمِثْلِ هَٰذَا الْقُرْآنِ لَا يَأْتُونَ بِمِثْلِهِ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيرًا﴾


आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इसपर एकत्र हो जायें कि इस क़ुर्आन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें!

89- ﴿وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ فَأَبَىٰ أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا﴾


और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र के सिवा अस्वीकार ही किया है।

90- ﴿وَقَالُوا لَنْ نُؤْمِنَ لَكَ حَتَّىٰ تَفْجُرَ لَنَا مِنَ الْأَرْضِ يَنْبُوعًا﴾


और उन्होंने कहाः हम आपपर कदापि ईमान नहीं लायेंगे, यहाँ तक कि आप हमारे लिए धरती से एक चश्मा प्रवाहित कर दें।

91- ﴿أَوْ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٌ مِنْ نَخِيلٍ وَعِنَبٍ فَتُفَجِّرَ الْأَنْهَارَ خِلَالَهَا تَفْجِيرًا﴾


अथवा आपके लिए खजूर अथवा अंगूर का कोई बाग़ हो, फिर उसके बीच आप नहरें प्रवाहित कर दें।

92- ﴿أَوْ تُسْقِطَ السَّمَاءَ كَمَا زَعَمْتَ عَلَيْنَا كِسَفًا أَوْ تَأْتِيَ بِاللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ قَبِيلًا﴾


अथवा हमपर आकाश को जैसा आपका विचार है, खण्ड-खण्ड करके गिरा दें या अल्लाह और फ़रिश्तों को साक्षात हमारे सामने ले आयें।

93- ﴿أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌ مِنْ زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَىٰ فِي السَّمَاءِ وَلَنْ نُؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّىٰ تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَابًا نَقْرَؤُهُ ۗ قُلْ سُبْحَانَ رَبِّي هَلْ كُنْتُ إِلَّا بَشَرًا رَسُولًا﴾


अथवा आपके लिए सोने का एक घर हो जाये अथवा आकाश में चढ़ जायें और हम आपके चढ़ने का भी कदापि विश्वास नहीं करेंगे, यहाँ तक की हमपर एक पुस्तक उतार लायें, जिसे हम पढ़ें। आप कह दें कि मेरा पालनहार पवित्र है, मैंतो बस एक रसूल (संदेशवाहक) मनुष्य[1] हूँ।

94- ﴿وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَنْ يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءَهُمُ الْهُدَىٰ إِلَّا أَنْ قَالُوا أَبَعَثَ اللَّهُ بَشَرًا رَسُولًا﴾


और नहीं रोका लोगों को कि वे ईमान लायें, जब उनके पास मार्गदर्शन[1] आ गया, परन्तु इसने कि उन्होंने कहाः क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेजा है?

95- ﴿قُلْ لَوْ كَانَ فِي الْأَرْضِ مَلَائِكَةٌ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِمْ مِنَ السَّمَاءِ مَلَكًا رَسُولًا﴾


(हे नबी!) आप कह दें कि यदि धरती में फ़रिश्ते निश्चिन्त होकर चलते-फिरते होते, तो हम अवश्य उनपर आकाश से कोई फ़रिश्ता रसूल बनाकर उतारते।

96- ﴿قُلْ كَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ ۚ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا﴾


आप कह दें कि मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह का साक्ष्य[1] बहुत है। वास्तव में, वह अपने दासों (बन्दों) से सूचित, सबको देखने वाला है।

97- ﴿وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ ۖ وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِهِ ۖ وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ عُمْيًا وَبُكْمًا وَصُمًّا ۖ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنَاهُمْ سَعِيرًا﴾


जिसे अल्लाह सुपथ दिखा दे, वही सुपथगामी है और जिसे कुपथ कर दे, तो आप कदापि नहीं पायेंगे, उनके लिए उसके सिवा कोई सहायक और हम उन्हें एकत्र करेंगे प्रलय के दिन उनके मुखों के बल, अंधे, गूँगे और बहरे बनाकर और उनका स्थान नरक है, जबभी वह बुझने लगेगी, तो हम उसे और भड़का देंगे।

98- ﴿ذَٰلِكَ جَزَاؤُهُمْ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا﴾


यही उनका प्रतिकार (बदला) है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र किया और कहाः क्या जब हम अस्थियाँ और चूर-चूर हो जायेंगे, तो नई उत्पत्ति में पुणः जीवित किये जायेंगे[1]?

99- ﴿۞ أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ قَادِرٌ عَلَىٰ أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ وَجَعَلَ لَهُمْ أَجَلًا لَا رَيْبَ فِيهِ فَأَبَى الظَّالِمُونَ إِلَّا كُفُورًا﴾


क्या वे विचार नहीं करते कि जिस अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति की है, वह समर्थ है इस बात पर कि उनके जैसी उत्पत्ति कर दे[1]? तथा उसने उनके लिए एक निर्धारित अवधि बनायी है, जिसमें कोई संदेह नहीं। फिर भी अत्याचारियों ने कुफ़्र के सिवा अस्वीकार ही किया।

100- ﴿قُلْ لَوْ أَنْتُمْ تَمْلِكُونَ خَزَائِنَ رَحْمَةِ رَبِّي إِذًا لَأَمْسَكْتُمْ خَشْيَةَ الْإِنْفَاقِ ۚ وَكَانَ الْإِنْسَانُ قَتُورًا﴾


आप कह दें कि यदि तुमही स्वामी होते, अपने पालनहार की दया के कोषों के, तबतो तुम खर्च हो जाने के भय से (अपने ही पास) रोक रखते और मनुष्य बड़ा ही कंजूस है।

101- ﴿وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَىٰ تِسْعَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ ۖ فَاسْأَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِذْ جَاءَهُمْ فَقَالَ لَهُ فِرْعَوْنُ إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا مُوسَىٰ مَسْحُورًا﴾


और हमने मूसा को नौ खुली निशानियाँ दीं[1], अतः बनी इस्राईल से आप पूछ लें, जब वह (मूसा) उनके पास आया, तो फ़िर्औन ने उससे कहाः हे मूसा! मैं समझता हूँ कि तुझपर जादू कर दिया गया है।

102- ﴿قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا أَنْزَلَ هَٰؤُلَاءِ إِلَّا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ بَصَائِرَ وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا فِرْعَوْنُ مَثْبُورًا﴾


उस (मूसा) ने उत्तर दियाः तुझे विश्वास है कि इन्हें आकाशों तथा धरती के पालनहार ही ने सोच-विचार करने के लिए उतारा है और हे फ़िर्औन! मैं तुम्हें निश्चय ध्वस्त समझता हूँ।

103- ﴿فَأَرَادَ أَنْ يَسْتَفِزَّهُمْ مِنَ الْأَرْضِ فَأَغْرَقْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ جَمِيعًا﴾


अन्तताः उसने निश्चय किया कि उन[1] को धरती से[2] उखाड़ फेंके, तो हमने उसे और उसके सब साथियों को डुबो दिया।

104- ﴿وَقُلْنَا مِنْ بَعْدِهِ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ اسْكُنُوا الْأَرْضَ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِيفًا﴾


और हमने उसके पश्चात् बनी इस्राईल से कहाः तुम इस धरती में बस जाओ और जब आख़िरत के वचन का समय आयेगा, तो हम तुम्हें एकत्र कर लायेंगे।

105- ﴿وَبِالْحَقِّ أَنْزَلْنَاهُ وَبِالْحَقِّ نَزَلَ ۗ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا﴾


और हमने सत्य के साथ ही इस (क़ुर्आन) को उतारा है तथा ये सत्य के साथ ही उतरा है और हमने आपको बस शुभ सूचना देने तथा सावधान करने वाला बनाकर भेजा है।

106- ﴿وَقُرْآنًا فَرَقْنَاهُ لِتَقْرَأَهُ عَلَى النَّاسِ عَلَىٰ مُكْثٍ وَنَزَّلْنَاهُ تَنْزِيلًا﴾


और इस क़ुर्आन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके उतारा है, ताकि आप लोगों को इसे रुक-रुक कर सुनायें और हमने इसे क्रमशः[1] उतारा है।

107- ﴿قُلْ آمِنُوا بِهِ أَوْ لَا تُؤْمِنُوا ۚ إِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهِ إِذَا يُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ سُجَّدًا﴾


आप कह दें कि तुम इसपर ईमान लाओ अथवा न लाओ, वास्तव में, जिन्हें इससे पहले ज्ञान दिया[1] गया है, जब उन्हें ये सुनाया जाता है, तो वह मुँह के बल सज्दे में गिर जाते हैं।

108- ﴿وَيَقُولُونَ سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنْ كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولًا﴾


और कहते हैं: पवित्र है हमारा पालनहार! निश्चय हमारे पालनहार का वचन पूरा होकर रहा।

109- ﴿وَيَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا ۩﴾


और वह मुँह के बल रोते हुए गिर जाते हैं और वह उनकी विनय को अधिक कर देता है।

110- ﴿قُلِ ادْعُوا اللَّهَ أَوِ ادْعُوا الرَّحْمَٰنَ ۖ أَيًّا مَا تَدْعُوا فَلَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَىٰ ۚ وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا﴾


हे नबी! आप कह दें कि (अल्लाह) कहकर पुकारो अथवा (रह़मान) कहकर पुकारो, जिस नाम से भी पुकारो, उसके सभी नाम शुभ[1] हैं और (हे नबी!) नमाज़ में स्वर न तो ऊँचा करो और न उसे नीचा करो और इन दोनों के बीच की राह[2] अपनाओ।

111- ﴿وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًا وَلَمْ يَكُنْ لَهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ الذُّلِّ ۖ وَكَبِّرْهُ تَكْبِيرًا﴾


तथा कहो कि सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जिसके कोई संतान नहीं और न राज्य में उसका कोई साझी है और न अपमान से बचाने के लिए उसका कोई समर्थक है और आप उसकी महिमा का वर्णन करें।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: