الرّوم

تفسير سورة الرّوم

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم﴾

अलिफ, लाम, मीम।

﴿غُلِبَتِ الرُّومُ﴾

पराजित हो गये रूमी।

﴿فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُمْ مِنْ بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ﴾

समीप की धरती में और वे अपने पराजित होने के पश्चात् जल्द ही विजयी हो जायेंगे!

﴿فِي بِضْعِ سِنِينَ ۗ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِنْ قَبْلُ وَمِنْ بَعْدُ ۚ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ﴾

कुछ वर्षों में, अल्लाह ही का अधिकार है पहले (भी) और बाद में (भी) और उस दिन प्रसन्न होंगे ईमान वाले।

﴿بِنَصْرِ اللَّهِ ۚ يَنْصُرُ مَنْ يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ﴾

अल्लाह की सहायता से तथा वही अति प्रभुत्वशाली, दयावान् है।

﴿وَعْدَ اللَّهِ ۖ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ وَعْدَهُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾

ये अल्लाह का वचन है, नहीं विरुध्द करेगा अल्लाह अपने वचन[1] के और परन्तु अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।

﴿يَعْلَمُونَ ظَاهِرًا مِنَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ عَنِ الْآخِرَةِ هُمْ غَافِلُونَ﴾

वे तो जानते हैं बस ऊपरी सांसारिक जीवन को तथा[1] वे परलोक से अचेत हैं।

﴿أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا فِي أَنْفُسِهِمْ ۗ مَا خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُسَمًّى ۗ وَإِنَّ كَثِيرًا مِنَ النَّاسِ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ لَكَافِرُونَ﴾

क्या और उन्होंने अपने में सोच-विचार नहीं किया कि नहीं उत्पन्न किया है अल्लाह ने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन[1] दोनों के बीच है, परन्तु सत्यानुसार और एक निश्चित अवधि के लिए? और बहुत-से लोग अपने पालनहार से मिलने का इन्कार करने वाले हैं।

﴿أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ كَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَأَثَارُوا الْأَرْضَ وَعَمَرُوهَا أَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ ۖ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَٰكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ﴾

क्या वे चले-फिरे नहीं धरती में, फिर देखते कि कैसा रहा उनका परिणाम, जो इनसे पहले थे? वे इनसे अधिक थे शक्ति में। उन्होंने जोता-बोया धरती को और उसे आबाद किया, उससे अधिक, जितना इन्होंने आबाद किया और आये उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ (प्रमाण) लेकर। तो नहीं था अल्लाह कि उनपर अत्याचार करता और परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।

﴿ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَىٰ أَنْ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُونَ﴾

फिर हो गया उनका बुरा अन्त, जिन्होंने बुराई की, इसलिए कि उन्होंने झूठ कहा अल्लाह की आयतों को और वे उनका उपहास कर रहे थे।

﴿اللَّهُ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ﴾

अल्लाह ही उत्पत्ति का आरंभ करता है, फिर उसे दुहरायेगा तथा उसी की ओर, तुम फेरे[1] जाओगे।

﴿وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُبْلِسُ الْمُجْرِمُونَ﴾

और जब स्थापित होगी प्रलय, तो निराश[1] हो जायेंगे अपराधी।

﴿وَلَمْ يَكُنْ لَهُمْ مِنْ شُرَكَائِهِمْ شُفَعَاءُ وَكَانُوا بِشُرَكَائِهِمْ كَافِرِينَ﴾

और नहीं होगा उनके साझियों में उनका अभिस्तावक (सिफ़ारिशी) और वे अपने साझियों का इन्कार करने वाले[1] होंगे।

﴿وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَتَفَرَّقُونَ﴾

और जिस दिन स्थापित होगी प्रलय, तो उस दिन सब अलग अलग हो जायेंगे।

﴿فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَهُمْ فِي رَوْضَةٍ يُحْبَرُونَ﴾

तो जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, वही स्वर्ग में प्रसन्न किये जायेंगे।

﴿وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَلِقَاءِ الْآخِرَةِ فَأُولَٰئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ﴾

और जिन्होंने क्फ़्र किया और झुठलाया हमारी आयतों को और परलोक के मिलन को, तो वही यातना में उपस्थित किये हुए होंगे।

﴿فَسُبْحَانَ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَحِينَ تُصْبِحُونَ﴾

अतः, तुम अल्लाह की पवित्रता का वर्णन संध्या तथा सवेरे किया करो।

﴿وَلَهُ الْحَمْدُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَعَشِيًّا وَحِينَ تُظْهِرُونَ﴾

तथा उसी की प्रशंसा है आकाशों तथा धरती में तीसरे पहर तथा जब दो पहर हो।

﴿يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَيُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَيُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ وَكَذَٰلِكَ تُخْرَجُونَ﴾

वह निकालता है[1] जीवित से निर्जीव को तथा निकालता है निर्जीव से जीव को और जीवित कर देता है धरती को, उसके मरण (सूखने) के पश्चात् और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَكُمْ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ إِذَا أَنْتُمْ بَشَرٌ تَنْتَشِرُونَ﴾

और उसकी (शक्ति) के लक्षणों में से ये भी है कि तुम्हें उत्पन्न किया मिट्टी से, फिर अब तुम मनुष्य हो (कि धरती में) फैलते जा रहे हो।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ خَلَقَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا لِتَسْكُنُوا إِلَيْهَا وَجَعَلَ بَيْنَكُمْ مَوَدَّةً وَرَحْمَةً ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ﴾

तथा उसकी निशानियों (लक्षणें) में से ये (भी) है कि उत्पन्न किये, तुम्हारे लिए, तुम्हीं में से जोड़े, ताकि तुम शान्ति प्राप्त करो उनके पास तथा उत्पन्न कर दिया तुम्हारे बीच प्रेम तथा दया, वास्तव में, इसमें कई निशाननियाँ हैं उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافُ أَلْسِنَتِكُمْ وَأَلْوَانِكُمْ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِلْعَالِمِينَ﴾

तथा उसकी निशानियों में से है, आकाशों तथा धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी बोलियों और रंगों का विभिन्न होना। निश्चय इसमें कई निशानियाँ हैं, ज्ञानियों[1] के लिए।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ مَنَامُكُمْ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَابْتِغَاؤُكُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَسْمَعُونَ﴾

तथा उसकी निशानियों में से है, तुम्हारा सोना रात्रि में तथा दिन में और तुम्हारा खोज करना उसकी अनुग्रह (जीविका) का। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सुनते हैं।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَيُحْيِي بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ﴾

और उसकी निशानियों में से (ये भी) है कि वह दिखाता है तुम्हें बिजली को, भय तथा आशा बनाकर और उतारता है आकाश से जल, फिर जीवित करता है उसके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्, वस्तुतः, इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सोचते हैं।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ تَقُومَ السَّمَاءُ وَالْأَرْضُ بِأَمْرِهِ ۚ ثُمَّ إِذَا دَعَاكُمْ دَعْوَةً مِنَ الْأَرْضِ إِذَا أَنْتُمْ تَخْرُجُونَ﴾

और उसकी निशानियों में से है कि स्थापित हैं आकाश तथा धरती उसके आदेश से। फिर जब तुम्हें पुकारेगा एक बार धरती से, तो सहसा तुम निकल पड़ोगे।

﴿وَلَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ كُلٌّ لَهُ قَانِتُونَ﴾

और उसी का है, जो आकाशों तथा धरती में है। सब उसी के अधीन हैं।

﴿وَهُوَ الَّذِي يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَهُوَ أَهْوَنُ عَلَيْهِ ۚ وَلَهُ الْمَثَلُ الْأَعْلَىٰ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ﴾

तथा वही है, जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर वह उसे दुहरायेगा और वह अति सरल है उसपर और उसी का सर्वोच्च गुण है आकाशों तथा धरती में और वही प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।

﴿ضَرَبَ لَكُمْ مَثَلًا مِنْ أَنْفُسِكُمْ ۖ هَلْ لَكُمْ مِنْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ مِنْ شُرَكَاءَ فِي مَا رَزَقْنَاكُمْ فَأَنْتُمْ فِيهِ سَوَاءٌ تَخَافُونَهُمْ كَخِيفَتِكُمْ أَنْفُسَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نُفَصِّلُ الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ﴾

उसने एक उदाहरण दिया है स्वयं तुम्हाराः क्या तुम्हारे[1] दासों में से तुम्हारा कोई साझी है उसमें, जो जीविका प्रदान की है हमने तुम्हें, तो तुम उसमें उसके बराबर हो, उनसे डरते हो जैसे अपनों से डरते हो? इसी प्रकार, हम वर्णन करते हैं आयतों का, उन लोगों के लिए, जो समझ रखते हैं।

﴿بَلِ اتَّبَعَ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَهْوَاءَهُمْ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۖ فَمَنْ يَهْدِي مَنْ أَضَلَّ اللَّهُ ۖ وَمَا لَهُمْ مِنْ نَاصِرِينَ﴾

बल्कि चले हैं अत्याचारी अपनी मनमानी पर बिना समझे, तो कौन राह दिखाये उसे, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और नहीं है उनका कोई सहायक।

﴿فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا ۚ فِطْرَتَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا ۚ لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ﴾

तो (हे नबी!) आप सीधा रखें अपना मुख इस धर्म की दिशा में, एक ओर होकर, उस स्वभाव पर, पैदा किया है अल्लाह ने मनुष्यों को जिस[1] पर। बदलना नहीं है अल्लाह के धर्म को, यही स्वभाविक धर्म है, किन्तु अधिक्तर लोग नहीं[2] जानते।

﴿۞ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَاتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ﴾

ध्यान करके अल्लाह की ओर और डरो उससे तथा स्थापना करो नमाज़ की और न हो जाओ मुश्रिकों में से।

﴿مِنَ الَّذِينَ فَرَّقُوا دِينَهُمْ وَكَانُوا شِيَعًا ۖ كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ﴾

उनमें से जिन्होंने अलग बना लिया अपना धर्म और हो गये कई गिरोह, प्रत्येक गिरोह उसीमें[1] जो उसके पास है, मगन है।

﴿وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا أَذَاقَهُمْ مِنْهُ رَحْمَةً إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ﴾

और जब पहुँचता है मनुष्यों को कोई दुःख, तो वह पुकारते हैं अपने पालनहार को ध्यान लगाकर उसकी ओर। फिर जब वह चखाता है उनको, अपनी ओर से कोई दया, तो सहसा एक गिरोह उनमें से अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।

﴿لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ ۚ فَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ﴾

ताकि वे कृतघ्न हो जायें (उसके), जो हमने प्रदान किया है उन्हें। तो तुम आन्नद ले लो, तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा।

﴿أَمْ أَنْزَلْنَا عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا فَهُوَ يَتَكَلَّمُ بِمَا كَانُوا بِهِ يُشْرِكُونَ﴾

क्या हमने उतारा है उनपर कोई प्रमाण, जो वर्णन करता है उसका, जिसे वे अल्लाह का साझी बना[1] रहे हैं।

﴿وَإِذَا أَذَقْنَا النَّاسَ رَحْمَةً فَرِحُوا بِهَا ۖ وَإِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ إِذَا هُمْ يَقْنَطُونَ﴾

और जब हम चखाते हैं लोगों को कुछ दया, तो वे उसपर इतराने लगते हैं और यदि पहुँचता है उन्हें कोई दुःख उनके करतूतों के कारण, तो वह सहसा निराश हो जाते हैं।

﴿أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ﴾

क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह फैला देता है जीविका, जिसके लिए चाहता है और नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।

﴿فَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ لِلَّذِينَ يُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ﴾

तो दो समीपवर्तियों को उनका अधिकार तथा निर्धनों और यात्रियों को। ये उत्तम है उन लोगों के लिए, जो चाहते हों अल्लाह की प्रसन्नता और वही सफल होने वाले हैं।

﴿وَمَا آتَيْتُمْ مِنْ رِبًا لِيَرْبُوَ فِي أَمْوَالِ النَّاسِ فَلَا يَرْبُو عِنْدَ اللَّهِ ۖ وَمَا آتَيْتُمْ مِنْ زَكَاةٍ تُرِيدُونَ وَجْهَ اللَّهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُضْعِفُونَ﴾

और जो तुम व्याज देते हो, ताकि अधिक हो जाये लोगों के धनों[1] में मिलकर, तो वह अधिक नहीं होता अल्लाह के यहाँ तथा तुम जो ज़कात देते हो, चाहते हुए अल्लाह की प्रसन्नता, तो वही लोग सफल होने वाले हैं।

﴿اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُمْ ثُمَّ رَزَقَكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ۖ هَلْ مِنْ شُرَكَائِكُمْ مَنْ يَفْعَلُ مِنْ ذَٰلِكُمْ مِنْ شَيْءٍ ۚ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ﴾

अल्लाह ही है, जिसने उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम्हें जीविका प्रदान की, फिर तुम्हें मारेगा, फिर जीवित करेगा, तो क्या तुम्हारे साझियों में से कोई है, जो इसमें से कुछ कर सके? वह पवित्र है और उच्च है, उनके साझी बनाने से।

﴿ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِي النَّاسِ لِيُذِيقَهُمْ بَعْضَ الَّذِي عَمِلُوا لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ﴾

फैल गया उपद्रव जल तथा[1] थल में लोगों के करतूतों के कारण, ताकि वह चखाये उन्हें उनका कुछ कर्म, संभवतः वे रूक जायें।

﴿قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلُ ۚ كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُشْرِكِينَ﴾

आप कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि कैसा रहा उनका अन्त, जो इनसे पहले थे। उनमें अधिक्तर मुश्रिक थे।

﴿فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ الْقَيِّمِ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ ۖ يَوْمَئِذٍ يَصَّدَّعُونَ﴾

अतः, आप सीधा रखें अपना मुख सत्धर्म की दिशा में, इससे पहले कि आ जाये वह दिन, जिसे फिरना नहीं है अल्लाह की ओर से, उस दिन लोग अलग-अलग हो[1] जायेंगे।

﴿مَنْ كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِأَنْفُسِهِمْ يَمْهَدُونَ﴾

जिसने कुफ़्र किया, तो उसीपर उसका कुफ़्र है और जिसने सदाचार किया, तो वे अपने ही लिए (सफलता का मार्ग) बना रहे हैं।

﴿لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْ فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْكَافِرِينَ﴾

ताकि अल्लाह बदला दे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, अपने अनुग्रह से। निश्चय वह प्रेम नहीं करता काफ़िरों से।

﴿وَمِنْ آيَاتِهِ أَنْ يُرْسِلَ الرِّيَاحَ مُبَشِّرَاتٍ وَلِيُذِيقَكُمْ مِنْ رَحْمَتِهِ وَلِتَجْرِيَ الْفُلْكُ بِأَمْرِهِ وَلِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ﴾

और उसकी निशानियों में से है कि भेजता है वायु को शुभ सूचना देने के लिए और ताकि चखाये तुम्हें अपनी दया (वर्षा) में से और ताकि नाव चले उसके आदेश से और ताकि तुम खोजो उसकी जीविका और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।

﴿وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ رُسُلًا إِلَىٰ قَوْمِهِمْ فَجَاءُوهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَانْتَقَمْنَا مِنَ الَّذِينَ أَجْرَمُوا ۖ وَكَانَ حَقًّا عَلَيْنَا نَصْرُ الْمُؤْمِنِينَ﴾

और हमने भेजा आपसे पहले रसूलों को, उनकी जातियों की ओर। तो वे लाये उनके पास खुली निशानियाँ, अन्ततः, हमने बदला ले लिया उनसे, जिन्होंने अपराध किया और अनिवार्य था हमपर ईमान वालों की सहायता[1] करना।

﴿اللَّهُ الَّذِي يُرْسِلُ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَيَبْسُطُهُ فِي السَّمَاءِ كَيْفَ يَشَاءُ وَيَجْعَلُهُ كِسَفًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ ۖ فَإِذَا أَصَابَ بِهِ مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ﴾

अल्लाह ही है, जो वायुओं को भेजता है, फिर वह बादल उठाती हैं, फिर वह उसे फैलाता है आकाश में, जैसे चाहता है और उसे घंघोर बना देता है। तो तुम देखते हो बूंदों को निकलते उसके बीच से, फिर जब उसे पहुँचाता है जिसे चाहता है, अपने भक्तों में से, तो सहसा वे प्रफुल्ल हो जाते हें।

﴿وَإِنْ كَانُوا مِنْ قَبْلِ أَنْ يُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ مِنْ قَبْلِهِ لَمُبْلِسِينَ﴾

यद्यपि वे थे इससे पहले कि उनपर उतारी जाये, अति निराश।

﴿فَانْظُرْ إِلَىٰ آثَارِ رَحْمَتِ اللَّهِ كَيْفَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ لَمُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾

तो देखो अल्लाह की दया के लक्षणों को, वह कैसे जीवित करता है धरती को, उसके मरण के पश्चात्, निश्चय वही जीवित करने वाला है मुर्दों को तथा वह सब कुछ कर सकता है।

﴿وَلَئِنْ أَرْسَلْنَا رِيحًا فَرَأَوْهُ مُصْفَرًّا لَظَلُّوا مِنْ بَعْدِهِ يَكْفُرُونَ﴾

और यदि हम भेज दें उग्र वायु, फिर वे देख लें उसे (खेती को) पीली, तो इसके पश्चात् कुफ्र करने लगते हैं।

﴿فَإِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ﴾

तो (हे नबी!) आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दों[1] को और नहीं सुना सकेंगे बहरों को पुकार, जब वे भाग रहे हों, पीठ फेरकर।

﴿وَمَا أَنْتَ بِهَادِ الْعُمْيِ عَنْ ضَلَالَتِهِمْ ۖ إِنْ تُسْمِعُ إِلَّا مَنْ يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ مُسْلِمُونَ﴾

तथा नहीं हैं आप मार्ग दर्शाने वाले अंधों को उनके कुपथ से, आप सुना सकेंगे उन्हींको, जो ईमान लाते हैं हमारी आयतों पर, फिर वही मुस्लिम हैं।

﴿۞ اللَّهُ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ ضَعْفٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْ بَعْدِ ضَعْفٍ قُوَّةً ثُمَّ جَعَلَ مِنْ بَعْدِ قُوَّةٍ ضَعْفًا وَشَيْبَةً ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْعَلِيمُ الْقَدِيرُ﴾

अल्लाह ही है, जिसने उत्पन्न किया तुम्हें निर्बल दशा से, फिर प्रदान किया निर्बलता के पश्चात् बल, फिर कर दिया बल के पश्चात् निर्बल तथा बूढ़ा,[1] वह उत्पन्न करता है, जो चाहता है और वही सर्वज्ञ, सब सामर्थ्य रखने वाला है।

﴿وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يُقْسِمُ الْمُجْرِمُونَ مَا لَبِثُوا غَيْرَ سَاعَةٍ ۚ كَذَٰلِكَ كَانُوا يُؤْفَكُونَ﴾

और जिस दिन व्याप्त होगी प्रलय, तो शपथ लेंगे अपराधी कि वे नहीं रहे क्षणभर[1] के सिवा और इसी प्रकार, वे बहकते रहे।

﴿وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَالْإِيمَانَ لَقَدْ لَبِثْتُمْ فِي كِتَابِ اللَّهِ إِلَىٰ يَوْمِ الْبَعْثِ ۖ فَهَٰذَا يَوْمُ الْبَعْثِ وَلَٰكِنَّكُمْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ﴾

तथा कहेंगे, जो ज्ञान दिये गये तथा ईमान कि तुम रहे हो अल्लाह के लेख में प्रलय के दिन तक, तो अब ये प्रलय का दिन है और परन्तु, तुम विश्वास नहीं रखते थे।

﴿فَيَوْمَئِذٍ لَا يَنْفَعُ الَّذِينَ ظَلَمُوا مَعْذِرَتُهُمْ وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ﴾

तो उस दिन, नहीं काम देगा अत्याचारियों को उनका तर्क और न उनसे क्षमायाचना करयी जायेगी।

﴿وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ ۚ وَلَئِنْ جِئْتَهُمْ بِآيَةٍ لَيَقُولَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا مُبْطِلُونَ﴾

और हमने वर्णन कर दिया है लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण का और यदि आप ले आयें उनके पास कोई निशानी, तो भी अवश्य कह देंगे, जो काफ़िर हो गये कि तुम तो केवल झूठ बनाते हो।

﴿كَذَٰلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ﴾

इसी प्रकार, मुहर लगा देता है अल्लाह उनके दिलों पर, जो समझ नहीं रखते।

﴿فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ وَلَا يَسْتَخِفَّنَّكَ الَّذِينَ لَا يُوقِنُونَ﴾

तो आप सहन करें, वास्तव में, अल्लाह का वचन सत्य है और कदापि वो आप[1] को हल्का न समझें, जो विश्वास नहीं रखते।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: