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كلمة (القابض) في اللغة اسم فاعل من القَبْض، وهو أخذ الشيء، وهو ضد...

المولى

كلمة (المولى) في اللغة اسم مكان على وزن (مَفْعَل) أي محل الولاية...

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البِرُّ في اللغة معناه الإحسان، و(البَرُّ) صفةٌ منه، وهو اسمٌ من...

सामूहिक रूप में नमाज़ के अनिवार्य होने एवं व्यापार व अन्य चीज़ों में व्यस्त रहने के कारण इससे लापरवाह होने की अवैधता के १० साक्ष्य।

الهندية - हिन्दी

المؤلف माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी ، ماجد بن سليمان الرسي ، صالح بن عبد الله بن حميد
القسم خطب الجمعة
النوع صورة
اللغة الهندية - हिन्दी
المفردات الفقه الإسلامي - العبادات - الصلاة - الجماعة
موضوع الخطبة:الأدلة العشرة على وجوب السعي لصلاة الجماعة، وتحريم التشاغل عنها بتجارة ونحوهاالخطيب: فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه اللهلغة الترجمة: الهنديةالمترجم:طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4Tशीर्षक:सामूहिक रूप में नमाज़ के अनिवार्य होने एवं व्यापार अन्य चीज़ों में व्यस्त रहने के कारण इससे लापरवाह होने की अवैधता के १० साक्ष्य।إنَّ الْحَمْدَ لِلَّهِ، نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِينُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوذُ بِاللَّهِ مِنْ شُرُورِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا، مَنْ يَهْدِهِ اللَّهُ فَلَا مُضِلَّ لَهُ، وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَا هَادِيَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنْ لَا إلـٰه إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ.प्रशंसाओं के पश्चात:सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है एवं सबसे दुष्ट चीज़ धर्म में अविष्कार किए गए नवोन्मेष हैं प्रत्येक अविष्कार की गई चीज़ नवाचार है, हर नवाचार गुमराही है एवं हर गुमराही नरक की ओर ले जाने वाली है। मुसलमानो! अल्लाह से भयभीत रहो एवं उसका डर अपनी बुद्धि एवं हृदय में जीवित रखो, उसके आज्ञाकार बने रहो एवं अवज्ञा से वंचित रहो, याद रखो कि नमाज़ तुम्हारे सर्वश्रेष्ठ पुण्य कर्मों में से एक है, स्वच्छ एवं सर्वोच्च अल्लाह ने मुसलमानों को सामूहिक रूप में मस्जिद में नमाज़ अदा करने का आदेश दिया है एवं बिना किसी धार्मिक बाध्यता के इससे वंचित रहने से रोका है, मस्जिद में नमाज़ अदा करने का आदेश विभिन्न हदीसों के माध्यम से आया है: . अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "मनुष्य का सामूहिक रूप में नमाज़ अदा करना उसके गृह में नमाज़ अदा करने की तुलना में २५ गुना स्थान श्रेष्ठ है, इसका कारण यह है कि एक व्यक्ति जब वुज़ू करता है और उसके संपूर्ण मर्यादाओं का पालन करते हुए अच्छी तरह वुज़ू करता है फिर मस्जिद का मार्ग पकड़ता है और उसका नमाज़ के अतिरिक्त कोई अन्य इच्छा नहीं होती है, तो उसके हर पग के बदले एक स्थान प्राप्त होता है एवं एक पाप क्षमा किया जाता है, एवं जब वह नमाज़ अदा कर लेता है तो देवदूत लगातार उसके हित में उस समय तक प्रार्थना करते रहते हैं जब तक कि वह अपनी नमाज़ के स्थान पर स्थित रहे, देवदूत कहते हैं: [اللھم صل عليه، اللهم ارحمه] अर्थात: "हे अल्लाह! इस पर अपनी रह़मतों को अवतरित कर, हे अल्लाह! तो इस पर कृपा कर!"एवं जब तक तुम नमाज़ की प्रतीक्षा करते रहो मान लो कि तुम नमाज़ ही में व्यस्त हो।"(इसे बुख़ारी:६४७ ने रिवायत किया है एवं मुस्लिम: ६४९ ने इसके कुछ पाठ को रिवायत किया है।) . अब्दुल्लाह बिन मसउ़द रज़ि अल्लाहु अन्हू ने रिवायत किया है कि जिसकी यह इच्छा हो कि वह अल्लाह से (प्रलेय दिन) मुसलमान के रूप में भेंट करे तो उसे इन नमाज़ों के लिए जिस स्थान से बुलाया जाए वह उन नमाज़ो की सुरक्षा करे (वहां मस्जिदों में जाकर अच्छे ढंग से उन्हें अदा करे) क्योंकि अल्लाह ने तुम्हारे दूत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कुछ दिशा-निर्देश दिए हैं और यह (मस्जिदों में सामूहिक रूप में नमाज़ अदा करना) उन्हीं दिशा-निर्देशों में से एक है, क्योंकि यदि तुम नमाज़ अपने गृहों में पढ़ोगे जैसे समूह से वंचित रहने वाला अपने गृह में पढ़ता है तो तुम अपने नबी के मार्ग को त्याग दोगे एवं यदि तुम अपने नबी के मार्ग को त्याग दोगे तो तुम गुमराह हो जाओगे। कोई व्यक्ति जो स्वच्छता प्राप्त करता है (वुज़ू करता है) एवं पूर्ण रूप से वुज़ू करता है इसके पश्चात इन मस्जिदों में से किसी मस्जिद की ओर निकलता है तो अल्लाह तआ़ला उसके हर पग के बदले जिसको वह उठाता है एक पुण्य लिखता है एवं इस कारणवश उसका एक स्थान सर्वोच्च कर देता है एवं एक पाप क्षमा कर देता है, हम (सहाबा गण रज़ि अल्लाहु अन्हुम) में से कोई भी समूह से पीछे नहीं रहता था, ऐसे पाखंडियों के अतिरिक्त जिनके पाखंड से सभी अवगत थे, (बल्कि कभी कभार ऐसा होता कि एक आदमी इस प्रकार लाया जाता कि उसे दो व्यक्तियों के बीच सहारा दिया गया होता (अर्थात: दुर्बलता के कारण वह दो व्यक्तियों के सहारे चल कर आता, देखें: मुअ़जमुल्-वसीत) यहां तक की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया जाता। (इसे मुस्लिम: ६५४ ने रिवायत किया है।). अल्लाह के दासो! जो लोग सामूहिक रूप में मस्जिद में पूरे संयम के साथ पांचों समय नमाज़ अदा करते हैं, उनको अल्लाह तआ़ला प्रलय के दिन अपने छांव तले स्थान देगा, जब के सूर्य सृष्टि से एक मील की दूरी पर होगा, अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "सात व्यक्ति ऐसे हैं जिनको अल्लाह तआ़ला प्रलय के दिन छांव तले छांव देगा (इस हदीस को बैह़क़ी ने अल्-असमाउ--स्सिफ़ात: ७९३ में अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू से इन शब्दों के साथ रिवायत किया है: "सात व्यक्ति ऐसे हैं जिनको अल्लाह तआ़ला प्रलय के दिन अपने सिंहासन तले छांव देगा जिस दिन उसके सिंहासन के छांव के अतिरिक्त कोई छांव नहीं होगा..." हदीस। इस रिवायत को पुस्तक के शोधकर्ता अब्दुल्लाह अल्-हाशिदी ने सहीह कहा है, दोनों हदीसों के बीच कोई टकराव नहीं है, क्योंकि उल्लेख किए गए छांव का संबंध सिंहासन से भी जोड़ना सहीह है एवं अल्लाह की ओर भी, परंतु जब अल्लाह की ओर इसे संबंधित किया जाएगा तो ऐसी स्थिति में सम्मान एवं संपत्ति का संबंध होगा।) जबकि उसके छांव के अतिरिक्त कोई और छांव नहीं होगा: न्याय करने वाला शासक, वह युवा जिसने अल्लाह की उपासना में अपने यौवन को पाला, ऐसा व्यक्ति जिसने एकांत में अल्लाह का स्मरण किया एवं उसके अश्रु निकल पड़े, वह व्यक्ति जिसका ह्रदय मस्जिद की ओर लटका रहता है..."मुस्लिम की रिवायत में ये शब्द आए हैं: "वह व्यक्ति जिसका हृदय मस्जिद से लगा रहता है जब वह मस्जिद से निकलता है तो (उसका हृदय) मस्जिद से ही लटका रहता है, यहां तक कि वह उसमें वापस जाए..."(बुख़ारी:६८०६, मुस्लिम: ६६९, उल्लेख किए गए शब्द मुस्लिम के हैं।) . अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जो व्यक्ति मस्जिद में प्रातः सायं बार-बार उपस्थित होता है, अल्लाह तआ़ला स्वर्ग में उसके लिए सत्कार का सामग्री करता है, वह प्रात: सायं जब भी मस्जिद जाता है।(इसे बुख़ारी: ६६२, मुस्लिम: ६६९ ने रिवायत किया है एवं उल्लेख किए गए शब्द मुस्लिम के हैं।)इसका अर्थ वह स्थान है जो अतिथि के सत्कार हेतु तैयार किया जाता है। (देखें: अन्निहायह, इसके अतिरिक्त देखें: इब्ने ह़जर रहिमहुल्लाह के लेख फ़तह़ुल्-बारी, ऊपर उल्लेख किए गए हदीस के अंतर्गत।). मस्जिद में सामूहिक रूप में नमाज़ अदा करने के अनिवार्य होने का एक साक्ष्य यह भी है कि अल्लाह तआ़ला ने युद्ध की परिस्थिति में भी सामूहिक रूप में नमाज़ अदा करने को अनिवार्य स्थित किया जोकि बहुत ही कठिन परिस्थिति होती है, यह नमाज़ सलातुल्-ख़ौफ़ के नाम से जानी जाती है, अल्लाह का कथन है:وَإِذَا كُنتَ فِیهِمۡ فَأَقَمۡتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلۡتَقُمۡ طَاۤىِٕفَة مِّنۡهُم مَّعَكَ.अर्थात: "जब तुम उन में हो एवं उनके लिए नमाज़ खड़ी करो तो उनका एक समूह तुम्हारे साथ खड़े होना चाहिए।". अल्लाह तआ़ला का कथन है:وَأَقِیمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱرۡكَعُوا۟ مَعَ ٱلرَّ ٰكِعِینَ.अर्थात: "नमाज़ अदा करो, दान-पुण्य दो, एवं रुकू करने वालों के संग रुकू करो।"रुकू करने वालों का अर्थ मस्जिद में नमाज़ अदा करने वालों की मण्डली है।. मोमिनो का गिरोह! मस्जिद में नमाज़ अदा करने में आलस्य को अपनाने एवं लापरवाही बरतने से भयभीत किया गया है, अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू फ़रमाते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "उस जीव की क़सम जिसके हस्त में मेरा प्राण है, मेरी इच्छा हुई थी कि मैं लकड़ियों को इकट्ठा करने का आदेश दूं, फिर नमाज़ के लिए अज़ान देने का, फिर किसी से कहूं कि वह लोगों को नमाज़ पढ़ाए, इसके अतिरिक्त मैं उन लोगों के निकट जाऊं (जो मण्डली में उपस्थित नहीं होते हैं) और मैं उन्हें उनके गृहों समेत अग्नि लगा दूं। क़सम है उस जीव की जिसके हस्त में मेरा प्राण है कि तुम में से यदि किसी को यह आशा हो कि वहां मोटी हड्डी (अर्थात वह हड्डी जिसमें अधिक से अधिक मोटा मांस लगा हो। देखें: अल्-मोअ़जमुल्-वसीत) अथवा बकरी के दो खुरों (इसका अर्थ बकरी के दो खुरों के बीच का मांस है जिसका उद्देश्य उसकी अवमानना का उल्लेख करना है। देखें: अल्-मोअ़जमुल्-वसीत) के बीच का मांस मिलेगा तो वह आवश्यक रूप से (नमाज़) ईशा में उपस्थित हो। मुस्लिम की रिवायत में भी यह शब्द आए हैं: "... फिर कुछ व्यक्तियों को संग लेकर जिनके पास लकड़ियों के ढेर हों, उन लोगों की ओर जाऊं जो नमाज़ में उपस्थित नहीं होते, फिर उनके गृहों को उन पर अग्नि से जला दूं।"(इसे बुख़ारी:७२२४, मुस्लिम: ६५१ ने रिवायत किया है।). अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "जिस व्यक्ति ने अज़ान सुनी एवं वह बिना किसी बाध्यता के मस्जिद को नहीं आया तो उसकी नमाज़ अमान्य है।" (इसे इब्ने माजा:७९३ आदि ने रिवायत किया है एवं अल्-बानी ने अल्- इरवा: /३३७ में सहीह कहा है।) अर्थात: उसकी नमाज़ का पूर्ण रूप से लाभ नहीं मिलेगा।अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हू से रिवायत है उन्होंने कहा कि . "नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक नेत्रहीन व्यक्ति उपस्थित हुआ और कहा: हे अल्लाह के दूत! मेरे पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो मुझे (हाथ पकड़कर) मस्जिद लाए, उसने अल्लाह के रसूल से यह निवेदन किया कि उसे यह अनुमति दी जाए कि वह अपने गृह में नमाज़ अदा कर ले, आपने उसे अनुमति दे दी, जब वह वापस जाने लगा तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे बुलाया और कहा: क्या तुम नमाज़ का बुलावा (अज़ान) सुनते हो? उसने कहा: जी हां! आप ने फ़रमाया: उस पर लब्बैक कहो।"(मुस्लिम:६५३) १०. जाबिर रज़ि अल्लाहु अन्हू फ़रमाते हैं: "जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुमा के दिन खड़े होकर उपदेश दे रहे थे इसी बीच मदीना के व्यापारियों का एक गिरोह गया, (यह सुनकर) सहाबा भी (उपदेश को त्याग कर) उस गिरोह की ओर लपके, केवल १२ लोग शेष रह गए, जिनमें अबू बक्र उ़मर रज़ि अल्लाहु अन्हुमा भी थे, इसी अवसर पर यह श्लोक अवतरित हुआ: (وإذا رأوا تجارة أو لهوا انفضوا إليها) (الجمعة: ۱۱)अर्थात: "जब कोई व्यापार होता देखें अथवा कोई तमाशा दिख

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सामूहिक रूप में नमाज़ के अनिवार्य होने एवं व्यापार व अन्य चीज़ों में व्यस्त रहने के कारण इससे लापरवाह होने की अवैधता के १० साक्ष्य।
सामूहिक रूप में नमाज़ के अनिवार्य होने एवं व्यापार व अन्य चीज़ों में व्यस्त रहने के कारण इससे लापरवाह होने की अवैधता के १० साक्ष्य।