المبين
كلمة (المُبِين) في اللغة اسمُ فاعل من الفعل (أبان)، ومعناه:...
हे मनुष्यो! अपने पालनहार से डरो, वास्तव में, क़्यामत (प्रलय) का भूकम्प बड़ा ही घोर विषय है।
जिस दिन, तुम उसे देखोगे, सुध न होगी प्रत्येक दूध पिलाने वाली को अपने दूध पीते शिशु की और गिरा देगी प्रत्येक गर्भवती अपना गर्भ तथा तुम देखोगे लोगों को मतवाले, जबकि वे मतवाले नहीं होंगे, परन्तु अल्लाह की यातना बहुत कड़ी[1] होगी।
और कुछ लोग विवाद करते हैं, अल्लाह के विषय में, बिना किसी ज्ञान के तथा अनुसरण करते हैं प्रत्येक उध्दत शैतान का।
जिसके भाग में लिख दिया गया है कि जो उसे मित्र बनायेगा, वह उसे कुपथ कर देगा और उसे राह दिखायेगा नरक की यातना की ओर।
हे लोगो! यदि तुम किसी संदेह में हो, पुनः जीवित होने के विषय में, तो (सोचो कि) हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर रक्त के थक्के से, फिर मांस के खण्ड से, जो चित्रित तथा चित्र विहीन होता है[1], ताकि हम उजागर कर[2] दें तुम्हारे लिए और स्थिर रखते हैं गर्भाशयों में जब तक चाहें; एक निर्धारित अवधि तक, फिर तुम्हें निकालते हैं शिशु बनाकर, फिर ताकि तुम पहुँचों अपने योवन को और तुममें से कुछ, पहले ही मर जाते हैं और तुममें से कुछ, जीर्ण आयु की ओर फेर दिये जाते हैं ताकि उसे कुछ ज्ञान न रह जाये, ज्ञान के पश्चात् तथा तुम देखते हो धरती को सूखी, फिर जब, हम उसपर जल-वर्षा करते हैं, तो सहसा लहलहाने और उभरने लगी तथा उगा देती है प्रत्येक प्रकार की सुदृश्य वनस्पतियाँ।
ये इसलिए है कि अल्लाह ही सत्य है तथा वही जीवित करता है मुर्दों को तथा वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।
ये इस कारण है कि क़्यामत (प्रलय) अवश्य आनी है, जिसमें कोई संदेग नहीं और अल्लाह ही उन्हें पुनः जीवित करेगा, जो समाधियों (क़ब्रों) में हैं।
तथा लोगों में वह (भी) है, जो विवाद करता है अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान और मार्गदर्शन एवं बिना किसी ज्योतिमय पुस्तक के।
अपना पहलू फेरकर ताकि अल्लाह की राह[1] से कुपथ कर दे। उसी के लिए संसार में अपमान है और हम उसे प्रलय के दिन दहन की यातना चखायेंगे।
ये उन कर्मों का परिणाम है, जिन्हें तेरे हाथों ने आगे भेजा है और अल्लाह अत्याचारी नहीं है (अपने) भक्तों के लिए।
तथा लोगों में वह (भी) है जो इबादत (वंदना) करता है अल्लाह की, एक किनारे पर होकर[1] , फिर यदि उसे कोई लाभ पहुँचता है, तो वह संतोष हो जाता है और यदि उसे कोई परीक्षा आ लगे, तो मुँह के बल फिर जाता है। वह क्षति में पड़ गया लोक तथा परलोक की और यही खुली क्षति है।
वह पुकारता है अल्लाह के अतिरिक्त उसे, जो न हानि पहुँचा सके उसे और न लाभ, यही दूर[1] का कुपथ है।
वह उसे पुकारता है, जिसकी हानि अधिक समीप है उसके लाभ से, वास्तव में, वह बुरा संरक्षक तथा बुरा साथी है।
निश्चय अल्लाह उन्हें प्रवेश देगा, जो ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, ऐसे स्वर्गों में, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वास्तव में, अल्लाह करता है, जो चाहता है।
जो सोचता है कि उस[1] की सहायता नहीं करेगा अल्लाह लोक तथा प्रलोक में, तो उसे चाहिए कि तान ले कोई रस्सी आकाश की ओर, फिर फाँसी देकर मर जाये। फिर देखे कि क्या दूर कर देती है उसका उपाय, उसके रोष (क्रोध)[2] को?
तथा इसी प्रकार हमने इस (क़ुर्आन) को खुली आयतों में अवतरित किया है और अल्लाह सुपथ दर्शा देता है, जिसे चाहता है।
जो ईमान लाये, जो यहूदी हुए, जो साबी तथा ईसाई हैं, जो मजूसी हैं तथा जिन्होंने शिर्क किया है, अल्लाह निर्णय[1] कर देगा उनके बीच प्रलय के दिन। निश्चय अल्लाह प्रत्येक वस्तु पर साक्षी है।
(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह ही को सज्दा[1] करते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं, सूर्य और चाँद, तारे और पर्वत, वृक्ष और पशु, बहुत-से मनुष्य और बहुत-से वे भी हैं, जिनपर यातना सिध्द हो चुकी है। और जिसे अल्लाह अपमानित कर दे, उसे कोई सम्मान देने वाला नहीं है। निःसंदेह अल्लाह करता है, जो चाहता है।
ये दो पक्ष हैं, जिन्होंने विभेद किया[1] अपने पालनहार के विषय में, तो इनमें से काफ़िरों के लिए ब्योंत दिये गये हैं अग्नि के वस्त्र, उनके सिरों पर धारा बहायी जायेगी खोलते हुए पानी की।
जिससे गला दी जायेँगी उनके पेटों के भीतर की वस्तुएँ और उनकी खालें।
जबभी उस (अग्नि) से निकलना चाहेंगे व्याकूल होकर, तो उसीमें फेर दिये जायेंगे तथा (कहा जायेगा कि) दहन की यातना चखो।
निश्चय अल्लाह प्रवेश देगा उन्हें, जो ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, ऐसे स्वर्गों में, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी, उनमें उन्हें सोने के कंगन पहनाये जायेंगे तथा मोती और उनका वस्त्र उसमें रेशम का होगा।
तथा उन्हें मार्ग दर्शा दिया गया पवित्र बात[1] का और उन्हें दर्शा दिया गया प्रशंसित (अल्लाह) का[2] मार्ग।
जो काफ़िर हो गये[1] और रोकते हैं अल्लाह की राह से और उस मस्जिदे ह़राम से, जिसे सबके लिए हमने एक जैसा बना दिया है; उसके वासी हों अथवा प्रवासी तथा जो उसमें अत्याचार से अधर्म का विचार करेगा, हम उसे दुःखदायी यातना चखायेंगे[1]।
तथा वह समय याद करो, जब हमने निश्चित कर दिया इब्राहीम के लिए इस घर (काबा) का स्थान[1] (इस प्रतिबंध के साथ) कि साझी न बनाना मेरा किसी चीज़ को तथा पवित्र रखना मेरे घर को परिकर्मा करने, खड़े होने, रुकूअ (झुकने) और सज्दा करने वालों के लिए।
और घोषणा कर दो लोगों में ह़ज की, वे आयेंगे तेरे पास पैदल तथा प्रत्येक दुबली-पतली स्वारियों पर, जो प्रत्येक दूरस्थ मार्ग से आयेंगी।
ताकि वह उपस्थित हों अपने लाभ प्राप्त करने के लिए और ताकि अल्लाह का नाम[1] लें निश्चित[2] दिनों में, उसपर, जो उन्हें प्रदान किया है पालतू चौपायों में से। फिर उसमें से स्वयं खाओ तथा भूखे निर्धन को खिलाओ।
फिर अपना मैल-कुचैल दूर[1] करें तथा अपनी मनौतियाँ पूरी करें और परिकर्मा करें प्राचीन घर[2] की।
ये है (आदेश) और जो अल्लाह के निर्धारित किये प्रतिबंधों का आदर करे, तो ये उसके लिए अच्छा है, उसके पालनहार के पास और ह़लाल (वैध) कर दिये गये तुम्हारे लिए चौपाये, उनके सिवा जिनका वर्णन तुम्हारे समक्ष कर दिया[1] गया है, अतः मूर्तियों की गन्दगी से बचो तथा झूठ बोलने से बचो।
अल्लाह के लिए एकेश्वरवादी होतो हुए, उसका साझी न बनाते हुए और जो साझी बनाता हो अल्लाह का, तो मानो वह आकाश से गिर गया, फिर उसे पक्षी उचक ले जाये अथवा वायु का झोंका किसी दूर स्थान में फेंक[1] दे।
ये (अल्लाह का आदेश है), और जो आदर करे अल्लाह के प्रतीकों (निशानों)[1] का, तो ये निःसंदेह दिलों के आज्ञाकारी होने की बात है।
तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से लाभ[1] हैं, एक निर्धारित समय तक, फिर उनके वध करने का स्थान प्राचीन घर के पास है।
तथा प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुर्बानी की विधि निर्धारित की है, ताकि वे अल्लाह का नाम लें उसपर, जो प्रदान किये हैं उन्हें पालतू चौपायों में से। अतः, तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है, उसी के आज्ञाकारी रहो और (हे नबी!) आप शुभ सूचना सुना दें विनीतों को।
जिनकी दशा ये है कि जब अल्लाह की चर्चा की जाये, तो उनके दिल डर जाते हैं तथा धैर्य रखते हैं उस विपदा पर, जो उन्हें पहुँचे और नमाज़ की स्थापना करने वाले हैं तथा उसमें से जो हमने उन्हें दिया है, दान करते हैं।
और ऊँटों को हमने बनाया है तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में, तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः अल्लाह का नाम लो उनपर (वध करते समय) खड़े करके और जब धरती से लग जायें[1] उनके पहलू, तो स्वयं खाओ उनमें से और खिलाओ उनमें से संतोषी तथा भिक्षु को, इसी प्रकार, हमने उसे वश में कर दिया है तुम्हारे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
नहीं पहुँचते अल्लाह को उनके माँस और न उनके रक्त, परन्तु उसे पहुँचता है तुम्हारा आज्ञा पालन। इसी प्रकार, उस (अल्लाह) ने उन (पशुओं) को तुम्हारे वश में कर दिया है, ताकि तुम अल्लाह की महिमा का वर्णन करो,[1] उस मार्गदर्शन पर जो तुम्हें दिया है और आप सत्कर्मियों को शुभ सूचना सुना दें।
निश्चय ही अल्लाह प्रतिरक्षा करता है उनकी ओर से, जो ईमान लाये हैं, वास्तव में अल्लाह किसी विश्वासघाती, कृतघ्न से प्रेम नहीं करता।
उन्हें अनुमति दे दी गयी, जिनसे युध्द किया जा रहा है, क्योंकि उनपर अत्याचार किया गया है और निश्चय अल्लाह उनकी सहायता पर पूर्णतः सामर्थ्यवान है[1]।
जिन्हें उनके घरों से अकारण निकाल दिया गया, केवल इस बात पर कि वे कहते थे कि हमारा पालनहार अल्लाह है और यदि अल्लाह प्रतिरक्षा न कराता कुछ लोगों की, कुछ लोगों द्वारा, तो ध्वस्त कर दिये जाते आश्रम तथा गिरजे और यहूदियों के धर्म स्थल तथा मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का नाम अधिक लिया जाता है और अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उस (के सत्य) की सहायता करेगा, वास्तव में, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।
ये[1] वो लोग हैं कि यदि हम इन्हें धरती में अधिपत्य प्रदान कर दें, तो नमाज़ की स्थापना करेंगे, ज़कात देंगे, भलाई का आदेश देंगे, बुराई से रोकेंगे और अल्लाह के अधिकार में है सब कर्मों का परिणाम।
और (हे नबी!) यदि वे आपको झुठलायें, तो इनसे पूर्व झुठला चुकी है नूह़ की जाति और (आद) तथा (समूद)
तथा मद्यन वाले[1] और मूसा (भी) झुठलाये गये, तो मैंने अवसर दिया काफ़िरों को, फिर उन्हें पकड़ लिया, तो मेरा दण्ड कैसा रहा?
तो कितनी ही बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने ध्वस्त कर दिया, जो अत्याचारी थीं, वे अपनी छतों के समेत गिरी हुई हैं और बेकार कुएं तथा पक्के ऊँचे भवन।
तो क्या वे धरती में फिरे नहीं? तो उनके ऐसे दिल होते, जिनसे समझते अथवा ऐसे कान होते, जिनसे सुनते, वास्तव में, आँखें अन्धी नहीं हो जातीं, परन्तु वो दिल अन्धे हो जाते हैं, जो सीनों में[1] हैं।
तथा वे आपसे शीघ्र यातना की माँग कर रहे हैं और अल्लाह कदापि अपना वचन भंग नहीं करेगा और निश्चय आपके पालनहार के यहाँ एक दिन तुम्हारी गणना से हज़ार वर्ष के बराबर[1] है।
और बहुत-सी बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने अवसर दिया, जबकि वो अत्याचारी थीं, फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और मेरी ही ओर (सबको) वापस आना है।
(हे नबी!) आप कह दें कि हे लोगो! मैंतो बस तुम्हें खुला सावधान करने वाला हूँ।
तो जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उन्हीं के लिए क्षमा और सम्मानित जीविका है।
और जिन्होंने प्रयास किया हमारी आयतों में विवश करने का, तो वही नारकी हैं।
और (हे नबी!) हमने नहीं भेजा आपसे पूर्व किसी रसूल और न किसी नबी को, किन्तु जब, उसने (पुस्तक) पढ़ी, तो संशय डाल दिया शैतान ने उसके पढ़ने में। फिर निरस्त कर देता है अल्लाह शैतान के संशय को, फिर सुदृढ़ कर देता है अल्लाह अपनी आयतों को और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ[1] है।
ये इसलिए, ताकि अल्लाह शैतानी संशय को उनके लिए परीक्षा बना दे, जिनके दिलों में रोग (द्विधा) है और जिनके दिल कड़े हैं और वास्तव में, अत्याचारी विरोध में बहुत दूर चले गये हैं।
और इसलिए (भी) ताकि विश्वास हो जाये उन्हें, जो ज्ञान दिये गये हैं कि ये (क़ुर्आन) सत्य है आपके पालनहार की ओर से और इसपर ईमान लायें और इसके लिए झुक जायें उनके दिल, और निःसंदेह अल्लाह ही पथ प्रदर्शक है उनका, जो ईमान लायें सुपथ की ओर।
तथा जो काफ़िर हो गये, तो वे सदा संदेह में रहेंगे इस (क़ुर्आन) से, यहाँतक कि उनके पास सहसा प्रलय आ जाये अथवा उनके पास बाँझ[1] दिन की यातना आ जाये।
राज्य उस दिन अल्लाह ही का होगा, वही उनके बीच निर्णय करेगा, तो जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो वे सुख के स्वर्गों में होंगे।
और जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
तथा जिन लोगों ने हिजरत (प्रस्थान) की अल्लाह की राह में, फिर मारे गये अथवा मर गये, तो उन्हें अल्लाह अवश्य उत्तम जीविका प्रदान करेगा और वास्तव में, अल्लाह ही सर्वोत्तम जीविका प्रदान करने वाला है।
वह उन्हें प्रवेश देगा, ऐसे स्थान में, जिससे वे प्रसन्न हो जायेंगे और वास्तव में अल्लाह सर्वज्ञ, सहनशील है।
ये वास्तविक्ता है और जिसने बदला लिया वैसा ही, जो उसके साथ किया गया, फिर उसके साथ अत्याचार किया जाये, तो अल्लाह उसकी अवश्य सहायता करेगा, वास्तव में, अल्लाह अति क्षान्त, क्षमाशील है।
ये इसलिए कि अल्लाह प्रवेश देता है, रात्रि को दिन में और प्रवेश देता है, दिन को रात्रि में और अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला[1] है।
ये इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वही असत्य है और अल्लाह ही सर्वोच्च, महान है।
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह अकाश से जल बरसाता है, तो भूमि हरी हो जाती है, वास्तव में, अल्लाह सुक्ष्मदर्शी, सर्वसूचित है।
उसी का है, जो आकाशों तथा जो धरती में है और वास्तव में, अल्लाह ही निस्पृह, प्रशंसित है।
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने वश में कर दिया[1] है तुम्हारे, जो कुछ धरती में है तथा नाव को जो चलती है सागर में उसके आदेश से और रोकता है आकाश को धरती पर गिरने से, परन्तु उसकी अनुमति से? वास्तव में, अल्लाह लोगों के लिए अति करुणामय, दयान् है।
तथा वही है, जिसने तुम्हें जीवित किया, फिर तुम्हें मारेगा, फिर तुम्हे जीवित करेगा, वास्तव में, मनुष्य बड़ा ही कृतघ्न है।
(हे नबी!) हमने प्रत्येक समुदाय के लिए (इबादत की) विधि निर्धारित कर दी थी, जिसका वे पालन करते रहे, अतः उन्हें आपसे इस (इस्लाम के नियम) के संबन्ध में विवाद नहीं करना चाहिए और आप अपने पालनहार की ओर लोगों को बुलाएँ, वास्तव में, आप सीधी राह पर हैं[1]।
और यदि वे आपसे विवाद करें, तो कह दें कि अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
अल्लाह ही तुम्हारे बीच निर्णय करेगा क़्यामत (प्रलय) के दिन, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।
(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह जानता है, जो आकाश तथा धरती में है, ये सब एक किताब में (अंकित) है। वास्तव में, ये अल्लाह के लिए अति सरल है।
और वे इबादत (वंदना) अल्लाह के अतिरिक्त उसकी कर रहे हैं, जिसका उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा है और न उन्हें उसका कोई ज्ञान है और अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं होगा।
और जब उन्हें सुनाई जाती हैं, हमारी खुली आयतें, तो आप पहचान लेते हैं, उनके चेहरों में, जो काफ़िर हो गये बिगाड़ को और लगता है कि वे आक्रमण कर देंगे उनपर, जो उन्हें हमारी आयतें सुनाते हैं। आप कह दें: क्या मैं तुम्हें इससे बुरी चीज़ बता दूँ? वह, अग्नि है, जिसका वचन अल्लाह ने काफ़िरों को दिया है और वह बहुत ही बुरा आवास है।
हे लोगो! एक उदाहरण दिया गया है, इसे ध्यान से सुनो, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पुकारते हो, वे सब एक मक्खी नहीं पैदा कर सकते, यद्यपि सब इसके लिए मिल जायें और यदि उनसे मक्खी कुछ छीन ले, तो उससे वापस नहीं ला सकते। माँगने वाले निर्बल और जिनसे माँगा जाये, वे दोनों ही निर्बल हैं।
उन्होंने अल्लाह का आदर किया ही नहीं, जैसे उसका आदर करना चाहिये! वास्तव में, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभुत्वशीली है।
अल्लाह ही निर्वाचित करता है फ़रिश्तों में से तथा मनुष्यों में से रसूलों को। वास्तव में, वह सुनने तथा देखने[1] वाला है।
वह जानता है, जो उनके सामने है और जो कुछ उनसे ओझल है और उसी की ओर सबकाम फेरे जाते हैं।
हे ईमान वालो! रुकूअ करो तथा सज्दा करो और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करो और भलाई करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
तथा अल्लाह के लिए जिहाद करो, जैसे जिहाद करना[1] चाहिए। उसीने तुम्हें निर्वाचित किया है और नहीं बनाई तुमपर धर्म में कोई संकीर्णता (तंगी)। ये तुम्हारे पिता इब्राहीम का धर्म है, उसीने तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा है, इस (क़ुर्आन) से पहले तथा इसमें भी। ताकि रसूल गवाह हूँ तुमपर और तुम गवाह[2] बनो सब लोगों पर। अतः नमाज़ की स्थापना करो तथा ज़कात दो और अल्लाह को सुदृढ़ पकड़[3] लो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो वह क्या ही अच्छा संरक्षक तथा क्या ही अच्छा सहायक है।