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الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

1- ﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ إِنَّا أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِ أَنْ أَنْذِرْ قَوْمَكَ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ﴾


निःसंदेह, हमने भेजा नूह़ को उसकी जाति की ओर कि सावधान कर अपनी जाति को, इससे पूर्व कि आये उनके पास, दूःखदायी यातना।

2- ﴿قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُبِينٌ﴾


उसने कहाः हे मेरी जाति! वास्तव में, मैं खुला सावधान करने वाला हूँ, तुम्हें।

3- ﴿أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ وَأَطِيعُونِ﴾


कि इबादत (वंदना) करो अल्लाह की तथा डरो उससे और बात मानो मेरी।

4- ﴿يَغْفِرْ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ إِنَّ أَجَلَ اللَّهِ إِذَا جَاءَ لَا يُؤَخَّرُ ۖ لَوْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ﴾


वह क्षमा कर देगा तुमहारे लिए तुम्हारे पापों को तथा अवसर देगा तुम्हें निर्धारित समय[1] तक। वास्तव में, जब अल्लाह का निर्धारित समय आ जायेगा, तो उसमें देर न होगी। काश तुम जानते!

5- ﴿قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوْتُ قَوْمِي لَيْلًا وَنَهَارًا﴾


नूह़ ने कहाः मेरे पालनहार! मैंने बुलाया अपनी जाति को (तेरी ओर) रात और दिन।

6- ﴿فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَائِي إِلَّا فِرَارًا﴾


तो मेरे बुलावे ने उनके भागने ही को अधिक किया।

7- ﴿وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوا أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَأَصَرُّوا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًا﴾


और मैंने जब-जब उन्हें बुलाया, तो उन्होंने दे लीं अपनी उँगलियाँ अपने कानों में तथा ओढ़ लिए अपने कपड़े[1] तथा अड़े रह गये और बड़ा घमण्ड किया।

8- ﴿ثُمَّ إِنِّي دَعَوْتُهُمْ جِهَارًا﴾


फिर मैंने उन्हें उच्च स्वर में बुलाया।

9- ﴿ثُمَّ إِنِّي أَعْلَنْتُ لَهُمْ وَأَسْرَرْتُ لَهُمْ إِسْرَارًا﴾


फिर मैंने उनसे खुलकर कहा और उनसे धीरे-धीरे (भी) कहा।

10- ﴿فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا﴾


मैंने कहाः क्षमा माँगो अपने पालनहार से, वास्तव में वह बड़ा क्षमाशील है।

11- ﴿يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَارًا﴾


वह वर्षा करेगा आकाश से तुमपर धाराप्रवाह वर्षा।

12- ﴿وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ أَنْهَارًا﴾


तथा अधिक देगा तुम्हें पुत्र तथा धन और बना देगा तुम्हारे लिए बाग़ तथा नहरें।

13- ﴿مَا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا﴾


क्या हो गया है तुम्हें कि नहीं डरते हो अल्लाह की महिमा से?

14- ﴿وَقَدْ خَلَقَكُمْ أَطْوَارًا﴾


जबकि उसने पैदा किया है तुम्हें विभिन्न प्रकार[1] से।

15- ﴿أَلَمْ تَرَوْا كَيْفَ خَلَقَ اللَّهُ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا﴾


क्या तुमने नहीं देखा कि कैसे पैदा किये हैं अल्लाह ने सात आकाश, ऊपर-तले?

16- ﴿وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا﴾


और बनाया है चन्द्रमा को उनमें प्रकाश और बनाया है सूर्य को प्रदीप।

17- ﴿وَاللَّهُ أَنْبَتَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ نَبَاتًا﴾


और अल्लाह ही ने उगाया है तुम्हें धरती[1] से अद्भुत रूप से।

18- ﴿ثُمَّ يُعِيدُكُمْ فِيهَا وَيُخْرِجُكُمْ إِخْرَاجًا﴾


फिर वह वापस ले जायेगा तुम्हें उसमें और निकालेगा तुम्हें उससे।

19- ﴿وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ بِسَاطًا﴾


और अल्लाह ने बनाया है तुम्हारे लिए धरती को बिस्तर।

20- ﴿لِتَسْلُكُوا مِنْهَا سُبُلًا فِجَاجًا﴾


ताकि तुम चलो उसकी खुली राहों में।

21- ﴿قَالَ نُوحٌ رَبِّ إِنَّهُمْ عَصَوْنِي وَاتَّبَعُوا مَنْ لَمْ يَزِدْهُ مَالُهُ وَوَلَدُهُ إِلَّا خَسَارًا﴾


नूह ने निवेदन कियाः मेरे पालनहार! उन्होंने मेरी अवज्ञा की और अनुसरण किया उसका[1] जिसके धन और संतान ने उसकी क्षति ही को बढ़ाया।

22- ﴿وَمَكَرُوا مَكْرًا كُبَّارًا﴾


और उन्होंने बड़ी चाल चली।

23- ﴿وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا﴾


और उन्होंने कहाः तुम कदापि न छोड़ना अपने पूज्यों को और कदापि न छोड़ना वद्द को, न सुवाअ को और न यग़ूस को और न यऊक़ को तथा न नस्र[1] को।

24- ﴿وَقَدْ أَضَلُّوا كَثِيرًا ۖ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا ضَلَالًا﴾


और कुपथ (गुमराह) कर दिया है उन्होंने बहुतों को और अधिक कर दे तू भी अत्याचारियों के कुपथ[1] (कुमार्ग) को।

25- ﴿مِمَّا خَطِيئَاتِهِمْ أُغْرِقُوا فَأُدْخِلُوا نَارًا فَلَمْ يَجِدُوا لَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَنْصَارًا﴾


वे अपने पापों के कारण डुबो दिये गये, फिर पहुँचा दिये गये नरक में और नहीं पाया उन्होंने अपने लिए अल्लाह के मुक़ाबले में कोई सहायक।

26- ﴿وَقَالَ نُوحٌ رَبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا﴾


तथा कहा नूह़ नेः मेरे पालनहार! न छोड़ धरती पर काफ़िरों का कोई घराना।

27- ﴿إِنَّكَ إِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا﴾


क्योंकि यदि तू उन्हें छोड़ेगा, तो वे कुपथ करेंगे तेरे भक्तों को और नहीं जन्म देंगे, परन्तु दुष्कर्मी, बड़े काफ़िर को।

28- ﴿رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا﴾


मेर पालनहार! क्षमा कर दे मुझे तथा मेरे माता-पिता को और उसे, जो प्रवेश करे मेरे घर में ईमान लाकर तथा ईमान वालों और ईमान वालियों को तथा काफ़िरों के विनाश ही को अधिक कर।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: