المعارج

تفسير سورة المعارج

الترجمة الهندية

हिन्दी

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ﴾

प्रश्न किया एक प्रश्न करने[1] वाले ने उस यातना के बारे में, जो आने वाली है।

﴿لِلْكَافِرِينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ﴾

काफ़िरों पर। नहीं है जिसे कोई दूर करने वाला।

﴿مِنَ اللَّهِ ذِي الْمَعَارِجِ﴾

अल्लाह ऊँचाईयों वाले की ओर से।

﴿تَعْرُجُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ﴾

चढ़ते हैं फ़रिश्ते तथा रूह़[1] जिसकी ओर, एक दिन में, जिसका माप पचास हज़ार वर्ष है।

﴿فَاصْبِرْ صَبْرًا جَمِيلًا﴾

अतः, (हे नबी!) आप सहन[1] करें अच्छे प्रकार से।

﴿إِنَّهُمْ يَرَوْنَهُ بَعِيدًا﴾

वे समझते हैं उसे दूर।

﴿وَنَرَاهُ قَرِيبًا﴾

और हम देख रहे हैं उसे समीप।

﴿يَوْمَ تَكُونُ السَّمَاءُ كَالْمُهْلِ﴾

जिस दिन हो जायेगा आकाश पिघली हुई धातु के समान।

﴿وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ﴾

तथा हो जायेंगे पर्वत, रंगारंग धुने हुए ऊन के समान।[1]

﴿وَلَا يَسْأَلُ حَمِيمٌ حَمِيمًا﴾

और नहीं पूछेगा कोई मित्र किसी मित्र को।

﴿يُبَصَّرُونَهُمْ ۚ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ﴾

(जबकि) वे उन्हें दिखाये जायेंगे। कामना करेगा पापी कि दण्ड के रूप में दे दे, उस दिन की यातना के, अपने पुत्रों को।

﴿وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ﴾

तथा अपनी पत्नी और अपने भाई को।

﴿وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْوِيهِ﴾

तथा अपने समीपवर्ती परिवार को, जो उसे शरण देता था।

﴿وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنْجِيهِ﴾

और जो धरती में है, सभी[1] को, फिर वह उसे यातना से बचा ले।

﴿كَلَّا ۖ إِنَّهَا لَظَىٰ﴾

कदापि (ऐसा) नहीं (होगा)।

﴿نَزَّاعَةً لِلشَّوَىٰ﴾

वह अग्नि की ज्वाला होगी।

﴿تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّىٰ﴾

खाल उधेड़ने वाली।

﴿وَجَمَعَ فَأَوْعَىٰ﴾

वह पुकारेगी उसे, जिसने पीछा दिखाया[1] तथा मुँह फेरा।

﴿۞ إِنَّ الْإِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا﴾

तथा (धन) एकत्र किया, फिर सौंत कर रखा।

﴿إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا﴾

वास्तव में, मनुष्य अत्यंत कच्चे दिल का पैदा किया गया है।

﴿وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا﴾

जब उसे पहुँचता है दुःख, तो उद्विग्न हो जाता है।

﴿إِلَّا الْمُصَلِّينَ﴾

और जब उसे धन मिलता है, तो कंजूसी करने लगता है।

﴿الَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ﴾

परन्तु, जो नमाज़ी हैं।

﴿وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَعْلُومٌ﴾

जो अनपी नमाज़ का सदा पालन[1] करते हैं।

﴿لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ﴾

और जिनके धनों में निश्चित भाग है, याचक (माँगने वाला) तथा वंचित[1] का।

﴿وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ﴾

तथा जो सत्य मानते हैं प्रतिकार (प्रलय) के दिन को।

﴿وَالَّذِينَ هُمْ مِنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ﴾

तथा जो अपने पालनहार की यातना से डरते हैं।

﴿إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ﴾

वास्तव में, आपके पालनहार की यातना निर्भय रहने योग्य नहीं है।

﴿وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ﴾

तथा जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले हैं।

﴿إِلَّا عَلَىٰ أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ﴾

सिवाय अपनी पत्नियों और अपने स्वामित्व में आये दासियों[1] के, तो वही निन्दित नहीं हैं।

﴿فَمَنِ ابْتَغَىٰ وَرَاءَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْعَادُونَ﴾

और जो चाहे इसके अतिरिक्त, तो वही सीमा का उल्लंघन करने वाले हैं।

﴿وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ﴾

और जो अपनी अमानतों तथा अपने वचन का पालन करते हैं।

﴿وَالَّذِينَ هُمْ بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ﴾

और जो अपने साक्ष्यों (गवाहियों) पर स्थित रहने वाले हैं।

﴿وَالَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ﴾

तथा जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं।

﴿أُولَٰئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُكْرَمُونَ﴾

वही स्वर्गों में सम्मानित होंगे।

﴿فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ﴾

तो क्या हो गया है उनकाफ़िरों को कि आपकी ओर दौड़े चले आ रहे हैं?

﴿عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ﴾

दायें तथा बायें समूहों में होकर।[1]

﴿أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ﴾

क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति लोभ (लालच) रखता है कि उसे प्रवेश दे दिया जायेगा सुख के स्वर्गों में?

﴿كَلَّا ۖ إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِمَّا يَعْلَمُونَ﴾

कदापि ऐसा न होगा, हमने उनकी उत्पत्ति उस चीज़ से की है, जिसे वे[1] जानते हैं।

﴿فَلَا أُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغَارِبِ إِنَّا لَقَادِرُونَ﴾

तो मैं शपथ लेता हूँ पूर्वों (सूर्योदय के स्थानों) तथा पश्चिमों (सूर्यास्त के स्थानों) की, वास्तव में हम अवश्य सामर्थ्यवान हैं।

﴿عَلَىٰ أَنْ نُبَدِّلَ خَيْرًا مِنْهُمْ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ﴾

इस बात पर कि बदल दें उनसे उत्तम (उत्पत्ति) को तथा हम विवश नहीं हैं।

﴿فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّىٰ يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ﴾

अतः, आप उन्हें झगड़ते तथा खेलते छोड़ दें, यहाँ तक कि वे मिल जायें अपने उस दिन से, जिसका उन्हें वचन दिया जा रहा है।

﴿يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ سِرَاعًا كَأَنَّهُمْ إِلَىٰ نُصُبٍ يُوفِضُونَ﴾

जिस दिन वे निकलेंगे क़ब्रों (और समाधियों) से, दौड़ते हुए, जैसे वे अपनी मूर्तियों की ओर दौड़ रहे हों।[1]

﴿خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۚ ذَٰلِكَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ﴾

झुकी होंगी उनकी आँखें, छाया होगा उनपर अपमान, यही वह दिन है जिसका वचन उन्हें दिया जा[1] रहा था।

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: