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عبارات مقترحة:

الحميد

(الحمد) في اللغة هو الثناء، والفرقُ بينه وبين (الشكر): أن (الحمد)...

المهيمن

كلمة (المهيمن) في اللغة اسم فاعل، واختلف في الفعل الذي اشتقَّ...

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

1- ﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ عَبَسَ وَتَوَلَّىٰ﴾


(नबी ने) त्योरी चढ़ाई तथा मुँह फेर लिया।

2- ﴿أَنْ جَاءَهُ الْأَعْمَىٰ﴾


इस कारण कि उसके पास एक अँधा आया।

3- ﴿وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُ يَزَّكَّىٰ﴾


और तुम क्या जानो शायद वह पवित्रता प्राप्त करे।

4- ﴿أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنْفَعَهُ الذِّكْرَىٰ﴾


या नसीह़त ग्रहण करे, जो उसे लाभ देती।

5- ﴿أَمَّا مَنِ اسْتَغْنَىٰ﴾


परन्तु, जो विमुख (निश्चिन्त) है।

6- ﴿فَأَنْتَ لَهُ تَصَدَّىٰ﴾


तुम उनकी ओर ध्यान दे रहे हो।

7- ﴿وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ﴾


जबकि तुमपर कोई दोष नहीं, यदि वह पवित्रता ग्रहण न करे।

8- ﴿وَأَمَّا مَنْ جَاءَكَ يَسْعَىٰ﴾


तथा जो तुम्हारे पास दौड़ता आया।

9- ﴿وَهُوَ يَخْشَىٰ﴾


और वह डर भी रहा है।

10- ﴿فَأَنْتَ عَنْهُ تَلَهَّىٰ﴾


तुम उसकी ओर ध्यान नहीं देते।[1]

11- ﴿كَلَّا إِنَّهَا تَذْكِرَةٌ﴾


कदापि ये न करो, ये (अर्थात क़ुर्आन) एक स्मृति (याद दहानी) है।

12- ﴿فَمَنْ شَاءَ ذَكَرَهُ﴾


अतः, जो चाहे स्मरण (याद) करे।

13- ﴿فِي صُحُفٍ مُكَرَّمَةٍ﴾


माननीय शास्त्रों में है।

14- ﴿مَرْفُوعَةٍ مُطَهَّرَةٍ﴾


जो ऊँचे तथा पवित्र हैं।

15- ﴿بِأَيْدِي سَفَرَةٍ﴾


ऐसे लेखकों (फ़रिश्तों) के हाथों में है।

16- ﴿كِرَامٍ بَرَرَةٍ﴾


जो सम्मानित और आदरणीय हैं।[1]

17- ﴿قُتِلَ الْإِنْسَانُ مَا أَكْفَرَهُ﴾


इन्सान मारा जाये, वह कितना कृतघ्न (नाशुक्रा) है।

18- ﴿مِنْ أَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهُ﴾


उसे किस वस्तु से (अल्लाह) ने पैदा किया?

19- ﴿مِنْ نُطْفَةٍ خَلَقَهُ فَقَدَّرَهُ﴾


उसे वीर्य से पैदा किया, फिर उसका भाग्य बनाया।

20- ﴿ثُمَّ السَّبِيلَ يَسَّرَهُ﴾


फिर उसके लिए मार्ग सरल किया।

21- ﴿ثُمَّ أَمَاتَهُ فَأَقْبَرَهُ﴾


फिर मौत दी, फिर समाधि में डाल दिया।

22- ﴿ثُمَّ إِذَا شَاءَ أَنْشَرَهُ﴾


फिर जब चाहेगा, उसे जीवित कर लेगा।

23- ﴿كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَا أَمَرَهُ﴾


वस्तुतः, उसने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया।[1]

24- ﴿فَلْيَنْظُرِ الْإِنْسَانُ إِلَىٰ طَعَامِهِ﴾


इन्सान अपने भोजन की ओर ध्यान दे।

25- ﴿أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاءَ صَبًّا﴾


हमने मूसलाधार वर्षा की।

26- ﴿ثُمَّ شَقَقْنَا الْأَرْضَ شَقًّا﴾


फिर धरती को चीरा फाड़ा।

27- ﴿فَأَنْبَتْنَا فِيهَا حَبًّا﴾


फिर उससे अन्न उगाया।

28- ﴿وَعِنَبًا وَقَضْبًا﴾


तथा अंगूर और तरकारियाँ।

29- ﴿وَزَيْتُونًا وَنَخْلًا﴾


तथा ज़ैतून एवं खजूर।

30- ﴿وَحَدَائِقَ غُلْبًا﴾


तथा घने बाग़।

31- ﴿وَفَاكِهَةً وَأَبًّا﴾


एवं फल तथा वनस्पतियाँ।

32- ﴿مَتَاعًا لَكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ﴾


तुम्हारे तथा तुम्हारे पशुओं के लिए।[1]

33- ﴿فَإِذَا جَاءَتِ الصَّاخَّةُ﴾


तो जब कान फाड़ देने वाली (प्रलय) आ जायेगी।

34- ﴿يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ﴾


उस दिन इन्सान अपने भाई से भागेगा।

35- ﴿وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ﴾


तथा अपने माता और पिता से।

36- ﴿وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ﴾


एवं अपनी पत्नी तथा अपने पुत्रों से।

37- ﴿لِكُلِّ امْرِئٍ مِنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ﴾


प्रत्येक व्यक्ति को उस दिन अपनी पड़ी होगी।

38- ﴿وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ مُسْفِرَةٌ﴾


उस दिन बहुत से चेहरे उज्ज्वल होंगे।

39- ﴿ضَاحِكَةٌ مُسْتَبْشِرَةٌ﴾


हंसते एवं प्रसन्न होंगे।

40- ﴿وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌ﴾


तथा बहुत-से चेहरों पर धूल पड़ी होगी।

41- ﴿تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ﴾


उनपर कालिमा छाई होगी।

42- ﴿أُولَٰئِكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ﴾


वही काफ़िर और कुकर्मी लोग हैं।[1]

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: