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العظيم

كلمة (عظيم) في اللغة صيغة مبالغة على وزن (فعيل) وتعني اتصاف الشيء...

المليك

كلمة (المَليك) في اللغة صيغة مبالغة على وزن (فَعيل) بمعنى (فاعل)...

الحق

كلمة (الحَقِّ) في اللغة تعني: الشيءَ الموجود حقيقةً.و(الحَقُّ)...

الترجمة الهندية

ترجمة معاني القرآن الكريم للغة الهندية ترجمها مولانا عزيز الحق العمري، نشرها مجمع الملك فهد لطباعة المصحف الشريف. عام الطبعة 1433هـ.

1- ﴿بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ وَالْمُرْسَلَاتِ عُرْفًا﴾


शपथ है भेजी हुई निरन्तर धीमी वायुओं की!

2- ﴿فَالْعَاصِفَاتِ عَصْفًا﴾


फिर झक्कड़ वाली हवाओं की!

3- ﴿وَالنَّاشِرَاتِ نَشْرًا﴾


और बादलों को फैलाने वालियों की![1]

4- ﴿فَالْفَارِقَاتِ فَرْقًا﴾


फिर अन्तर करने[1] वालों की!

5- ﴿فَالْمُلْقِيَاتِ ذِكْرًا﴾


फिर पहुँचाने वालों की वह़्यी (प्रकाशना[1]) को!

6- ﴿عُذْرًا أَوْ نُذْرًا﴾


क्षमा के लिए अथवा चेतावनी[1] के लिए!

7- ﴿إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَاقِعٌ﴾


निश्चय जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है, वह अवश्य आनी है।

8- ﴿فَإِذَا النُّجُومُ طُمِسَتْ﴾


फिर जब तारे धुमिल हो जायेंगे।

9- ﴿وَإِذَا السَّمَاءُ فُرِجَتْ﴾


तथा जब आकाश खोल दिया जायेगा।

10- ﴿وَإِذَا الْجِبَالُ نُسِفَتْ﴾


तथा जब पर्वत चूर-चूर करके उड़ा दिये जायेंगे।

11- ﴿وَإِذَا الرُّسُلُ أُقِّتَتْ﴾


और जब रसूलों का एक समय निर्धारित किया जायेगा।[1]

12- ﴿لِأَيِّ يَوْمٍ أُجِّلَتْ﴾


किस दिन के लिए इसे निलम्बित रखा गया है?

13- ﴿لِيَوْمِ الْفَصْلِ﴾


निर्णय के दिन के लिए।

14- ﴿وَمَا أَدْرَاكَ مَا يَوْمُ الْفَصْلِ﴾


आप क्या जानें कि क्या है वह निर्णय का दिन?

15- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

16- ﴿أَلَمْ نُهْلِكِ الْأَوَّلِينَ﴾


क्या हमने विनाश नहीं कर दिया (अवज्ञा के कारण) अगली जातियों का?

17- ﴿ثُمَّ نُتْبِعُهُمُ الْآخِرِينَ﴾


फिर पीछे लगा[1] देंगे उनके पिछलों को।

18- ﴿كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ﴾


इसी प्रकार, हम करते हैं अपराधियों के साथ।

19- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

20- ﴿أَلَمْ نَخْلُقْكُمْ مِنْ مَاءٍ مَهِينٍ﴾


क्या हमने पैदा नहीं किया है तुम्हें तुच्छ जल (वीर्य) से?

21- ﴿فَجَعَلْنَاهُ فِي قَرَارٍ مَكِينٍ﴾


फिर हमने रख दिया उसे एक सुदृढ़ स्थान (गर्भाशय) में।

22- ﴿إِلَىٰ قَدَرٍ مَعْلُومٍ﴾


एक निश्चित अवधि तक।[1]

23- ﴿فَقَدَرْنَا فَنِعْمَ الْقَادِرُونَ﴾


तो हमने सामर्थ्य[1] रखा, अतः हम अच्छा सामर्थ्य रखने वाले हैं।

24- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

25- ﴿أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفَاتًا﴾


क्या हमने नहीं बनाया धरती को समेटकर[1] रखने वाली?

26- ﴿أَحْيَاءً وَأَمْوَاتًا﴾


जीवित तथा मुर्दों को।

27- ﴿وَجَعَلْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ شَامِخَاتٍ وَأَسْقَيْنَاكُمْ مَاءً فُرَاتًا﴾


तथा बना दिये हमने उसमें बहुत-से ऊँचे पर्वत और पिलाया हमने तुम्हें मीठा जल।

28- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

29- ﴿انْطَلِقُوا إِلَىٰ مَا كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ﴾


(कहा जायेगाः) चलो उस (नरक) की ओर जिसे तुम झुठलाते रहे।

30- ﴿انْطَلِقُوا إِلَىٰ ظِلٍّ ذِي ثَلَاثِ شُعَبٍ﴾


चलो ऐसी छाया[1] की ओर जो तीन शाखाओं वाली है।

31- ﴿لَا ظَلِيلٍ وَلَا يُغْنِي مِنَ اللَّهَبِ﴾


जो न छाया देगी और न ज्वाला से बचायेगी।

32- ﴿إِنَّهَا تَرْمِي بِشَرَرٍ كَالْقَصْرِ﴾


वह (अग्नि) फेंकती होगी चिँगारियाँ भवन के समान।

33- ﴿كَأَنَّهُ جِمَالَتٌ صُفْرٌ﴾


जैसे वह पीले ऊँट हों।

34- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

35- ﴿هَٰذَا يَوْمُ لَا يَنْطِقُونَ﴾


ये वो दिन है कि वे बोल[1] नहीं सकेंगे।

36- ﴿وَلَا يُؤْذَنُ لَهُمْ فَيَعْتَذِرُونَ﴾


और न उन्हें अनुमति दी जायेगी कि वे बहाने बना सकें।

37- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

38- ﴿هَٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ ۖ جَمَعْنَاكُمْ وَالْأَوَّلِينَ﴾


ये निर्णय का दिन है, हमने एकत्र कर लिया है तुम्हें तथा पूर्व के लोगों को।

39- ﴿فَإِنْ كَانَ لَكُمْ كَيْدٌ فَكِيدُونِ﴾


तो यदि तुम्हारे पास कोई चाल[1] हो, तो चल लो।

40- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

41- ﴿إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي ظِلَالٍ وَعُيُونٍ﴾


निःसंदेह, आज्ञाकारी उस दिन छाँव तथा जल स्रोतों में होंगे।

42- ﴿وَفَوَاكِهَ مِمَّا يَشْتَهُونَ﴾


तथा मन चाहे फलों में।

43- ﴿كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ﴾


खाओ तथा पिओ मनमानी उन कर्मों के बदले, जो तुम करते रहे।

44- ﴿إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ﴾


हम इसी प्रकार प्रतिफल देते हैं।

45- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

46- ﴿كُلُوا وَتَمَتَّعُوا قَلِيلًا إِنَّكُمْ مُجْرِمُونَ﴾


(हे झुठलाने वालो!) तुम खा लो तथा आनन्द ले लो कुछ[1] दिन। वास्तव में, तुम अपराधी हो।

47- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

48- ﴿وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ارْكَعُوا لَا يَرْكَعُونَ﴾


जब उनसे कहा जाता है कि (अल्लाह के समक्ष) झुको, तो झुकते नहीं।

49- ﴿وَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ﴾


विनाश है उस दिन झुठलाने वालों के लिए।

50- ﴿فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَهُ يُؤْمِنُونَ﴾


तो (अब) वे किस बात पर इस (क़ुर्आन) के पश्चात् ईमान[1] लायेंगे?

الترجمات والتفاسير لهذه السورة: